महाभारत में विदुर कौन था | विदुर कौन थे महाभारत में| MahaBharat Me Vidur Kaun - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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शुक्रवार, 4 जून 2021

महाभारत में विदुर कौन था | विदुर कौन थे महाभारत में| MahaBharat Me Vidur Kaun

महाभारत में विदुर कौन था
विदुर कौन थे महाभारत में
महाभारत मे विदुर कौन था |  विदुर कौन थे महाभारत में| MahaBharat Me Vidur Kaun


विदुर का जन्म 

विदुर का जन्म तो हुआ था हस्तिनापुर के राजप्रासाद में परन्तु कुल की दृष्टि से उन्हें दासीपुत्र कहा गया।  क्योकि उनका जन्म एक साधारण दासी के गर्भ से विचित्रवीर्य के क्षेत्रज्ञ पुत्र के रूप में कृष्ण द्वेपायन  द्वारा निरोध प्रथा से हुआ था। चूकिं वे विचित्रवीर्य के क्षेत्रज्ञ पुत्र थे अतः उन्हें राजकुमारों के अनुरूप शिक्षा दीक्षा दी गयी परन्तु दासीपुत्र होने के कारण अन्य राजकुमारों पाण्डु व ध्रितराष्ट्र  की भांति उन्हें राजा बनने का  अधिकार नहीं दिया गया

विदुर का हस्तिनापुर मे जीवन 

  • विदुर पाण्डु के राजा बनने पर हस्तिनापुर के महामंत्री नियुक्त हुए
  • विदुर की पत्नी का नाम परसंवी था। 
  • दोनों ही पति-पत्नी स्वभाव से साधु एवं परम सात्विक थे ।
  • हस्तिनापुर के महामंत्री नियुक्त शस्त्र विद्या में उतने पारंगत नहीं थे परन्तु शास्त्र के ज्ञान में महर्षिवेदव्यास वेदव्यास को छोड़ किसी की भी उनसे तुलना नहीं की जा सकती थी
  • उनकी माता सत्यवती उनकी इस क्षमता से परिचित थी अतः पाण्डु के मरने के उपरान्त ध्रतराष्ट्र के राजा बनने पर माता सत्यवती ने उनसे सदैव धृतराष्ट्र  के साथ रहने का वचन मांग लिया क्योकि वे विदुर की धर्म नीति को जानती थी और ये भी जानती थी कि विदूर के  रहते धृतराष्ट्र  धर्म के विरुद्ध काम नहीं करेगा और उस पर कोई संकट नहीं आएगा |
  • उन्होंने सदैव धर्म को संरक्षण दिया उन्होंने धर्म और पाण्डु पुत्रो कि रक्षार्थ न केवल हस्तिनापुर में उनका साथ दिया अपितु लाक्षाग्रह जैसे षड़यंत्र से भी पांड्वो की रक्षा की
  • विदुर ने  ही पांड्वो को दुर्योधन के विरूद्ध नीति का मार्ग सुझाया और संगठन की शक्ति का रहस्य बताया।
  • विदुर ने कौरवों और पांड्वो में केवल धर्म का भेद किया अतः वे केवल धर्म के पक्ष में रहे। |जहाँ धर्म होता वो उसी के साथ बोलते थे चाहे वो कौरवों के पक्ष में हो या पांडवों केअगर इस महाभारत  के पात्रो को देखा जाये तो केवल यही व्यक्ति मिलेगा जो अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में भी अपने मार्ग से नहीं डिगा। 
  • यहाँ तक हस्तिनापुर में दुर्योधन से प्राण भय होने के बावजूद वो सदैव सत्य और धर्म की बाते हस्तिनापुर राज्यसभा में बोलते रहे ।
  • उन्होंने द्रोपदी वस्त्रहरण का उस समय भी पुरजोर विरोध किया जब राज्यसभा में पितामह भीष्म ,गुरु द्रोण जैसे सम्मानीय व्यक्ति मौन बैठे थे |वे तो  इस धूतक्रीडा  के ही विरोध में थे जो पांड्वो को कंगाल करने के षड़यंत्र स्वरुप करवाई गयी थी। 
 
  • जब वासुदेव कृष्ण कुरु राज्यसभा में शांति का प्रस्ताव लेकर आये तब एक विधुर ही थे जिन्होंने ध्रितराष्ट्र से उस प्रस्ताव  को मानने की विनती की|परन्तु  नियति की  लिखावट को आज तक कोई विधुर बदल सका है भला!!

  • परन्तु इतिहास गवाह है कि ये महाभारत  हुआ और कौरवों का सर्वनाश भी वो कुरु राज्यसभा में बैठा विदुर भी युद्ध न रोक सका क्योकि विधुर शायद अकेला पड़ गया उन अनेक धृतराष्ट्र  के सामने। 
  • वो महात्मा विधुर प्रकाश का प्रतीक हो गया और धृतराष्ट्र  अन्धकार का|इतिहास की यही लिखावट उस दासीपुत्र को उन कुलीन क्षत्रियो से भी महान बनाती है|