महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई? महामृत्युंजय मंत्र की रचना किसने की | Maha Mryutumjay Mantra ki Utpatti - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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सोमवार, 7 जून 2021

महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई? महामृत्युंजय मंत्र की रचना किसने की | Maha Mryutumjay Mantra ki Utpatti

महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई?

 महामृत्युंजय मंत्र की रचना किसने की 

महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई? महामृत्युंजय मंत्र की रचना किसने की | Maha Mryutumjay Mantra ki Utpatti

महामृत्युंजय मंत्र की रचनाकार मार्कंडेय ऋषि

महामृत्युंजय मंत्र की रचना करनेवाले मार्कंडेय ऋषि तपस्वी और तेजस्वी मृकण्ड ऋषि के पुत्र थे। बहुत तपस्या के बाद मृकण्ड ऋषि के यहां संतान के रूप में एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम उन्होंने मार्कंडेय रखा। लेकिन बच्चे के लक्षण देखकर ज्योतिषियों ने कहा कि यह शिशु अल्पायु है और इसकी उम्र मात्र 12 वर्ष है।

जब मार्कंडेय का शिशुकाल बीता और वह बोलने और समझने योग्य हुए तब उनके पिता ने उन्हें उनकी अल्पायु की बात बता दी। साथ ही शिवजी की पूजा का बीजमंत्र देते हुए कहा कि शिव ही तुम्हें मृत्यु के भय से मुक्त कर सकते हैं। तब बालक मार्कंडेय ने शिव मंदिर में बैठकर शिव साधना शुरू कर दी। जब मार्कंडेय की मृत्यु का दिन आया उस दिन उनके माता-पिता भी मंदिर में शिव साधना के लिए बैठ गए. 

जब मार्कंडेय की मृत्यु की घड़ी आई तो यमराज के दूत उन्हें लेने आए। लेकिन मंत्र के प्रभाव के कारण वह बच्चे के पास जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए और मंदिर के बाहर से ही लौट गए। उन्होंने जाकर यमराज को सारी बात बता दी। इस पर यमराज स्वयं मार्कंडेय को लेने के लिए आए। यमराज की रक्तिम आंखें, भयानक रूप, भैंसे की सवारी और हाथ में पाश देखकर बालक मार्कंडेय डर गए और उन्होंने रोते हुए शिवलिंग का आलिंगन कर लिया।

जैसे ही मार्कंडेय ने शिवलिंग का आलिंगन किया स्वयं भगवान शिव प्रकट हुए और क्रोधित होते हुए यमराज से बोले कि मेरी शरण में बैठे भक्त को मृत्युदंड देने का विचार भी आपने कैसे किया? इस पर यमराज बोले- प्रभु मैं क्षमा चाहता हूं। विधाता ने कर्मों के आधार पर मृत्युदंड देने का कार्य मुझे सौंपा है, मैं तो बस अपना दायित्व निभाने आया हूं। इस पर शिव बोले मैंने इस बालक को अमरता का वरदान दिया है। शिव शंभू के मुख से ये वचन सुनकर यमराज ने उन्हें प्रणाम किया और क्षमा मांगकर वहां से चले गए। यह कथा मार्कंडेय पुराण में वर्णित है।

 

संपूर्ण महामृत्युंजय मंत्र

 

- ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ॥

 


महामृत्युंजय मंत्र के शब्दों का अर्थ 


त्र्यंबकम् तीन नेत्रोंवाले

यजामहे जिनका हम हृदय से सम्मान करते हैं और पूजते हैं

सुगंधिम -जो एक मीठी सुगंध के समान हैं

पुष्टिः फलने फूलनेवाली स्थिति

वर्धनम् जो पोषण करते हैं, बढ़ने की शक्ति देते हैं

उर्वारुकम् ककड़ी

इव जैसे, इस तरह

बंधनात् बंधनों से मुक्त करनेवाले

मृत्योः = मृत्यु से

मुक्षीय = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें

मा = न

अमृतात् = अमरता, मोक्ष


महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ 

हम भगवान शिवशंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो संपूर्ण जगत का पालन पोषण अपनी कृपादृष्टि से कर रहे हैं। उनसे हमारी प्रार्थना है कि वह हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें। जिस प्रकार एक ककड़ी इस बेल रूपी संसार में पककर उसके बंधनों से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार रूपी में पक जाएं और आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आपमें लीन हो जाएं।