राजस्थान लेखन के साधन के रूप में स्मारक, मूर्तियां एवं चित्रकला
राजस्थान लेखन के साधन के रूप में स्मारक एवं मूर्तियां
- राजस्थान में अनेक स्थलों से प्राप्त भवन, दुर्ग, मंदिर, स्तूप, स्तम्भ आदि स्तूप तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक इतिहास की जानकारी प्राप्त होती हैं।
- प्राचीन दुर्ग एवं भवन राजस्थान में स्थान-स्थान पर देखे जा सकते हैं।
- चित्तौड़, जालौर, गागरोन, रणथम्भौर, आमेर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, कुम्भलगढ, अचलगढ़ आदि दुर्ग इतिहास के बोलते साक्ष्य हैं।
- दुर्गों में बने महल, मन्दिर, जलाशय आदि तत्कालीन समाज एवं धर्म की जानकारी देते हैं ।
- राजस्थान के प्रसिद्ध मन्दिर यथा देलवाडा एवं रणकपुर के जैन मन्दिर आमेर का जगत शिरोमणि मंदिर, नागदा का सास-बहू का मंदिर उदयपुर का जगदीश मंदिर, ओसियां का सच्चिमाता एवं जैन मंदिर, झालरापाटन का सूर्य मंदिर आदि उल्लेखनीय हैं।
- इनके अतिरिक्त किराडू बाडोली, पुष्कर आदि स्थानों के मंदिर भी इतिहास के अध्ययन के लिए उपयोगी है। ये मंदिर धर्म एवं कला के अध्ययन के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।
- मूर्तियों के गहन अध्ययन से तत्कालीन वेशभूषा, श्रृंगार के तौर-तरीकों, आभूषणों, विविध वाद्य यंत्रों नृत्य की मुद्राओं आदि का बोध होता है।
- राजस्थान में स्थापत्य एवं तक्षणकला के लिए चित्तौड़ दुर्ग स्थित कीर्ति स्तम्भ एक श्रेष्ठ उदाहरण है आमेर का जगत शिरोमणि का मंदिर, मुगल राजपूत समन्वय की दृष्टि से उल्लेखनीय है ।
राजस्थान लेखन के साधन के रूप में चित्रकला
- राजस्थान के लोगों की चित्रकला में रुचि आदि काल से रही है। शैलचित्र इसके उदाहरण हैं ।
- जैसलमेर के जैन भण्डार से प्राचीनतम सचित्र ग्रंथ प्राप्त हुए हैं ।
- ग्यारहवीं से पन्द्रहवीं शताब्दी तक के सचित्र ग्रंथों में निशीथचूर्णि त्रिषीष्टश्लाका पुरुष चरित्र, नेमिनाथ चरित्र, सुपासन चरित्रम् गीत गोविन्द आदि प्रमुख हैं ।
- विभिन्न राज दरबारों में आश्रित चित्रकारों ने अपने-अपने ढंग से चित्र बनाने प्रारम्भ किये ।
- विभिन्न चित्र शैलियों मेवाड शैली आमेर शैली, मारवाड शैली, बूंदी शैली, किशनगढ़ शैली, कोटा शैली, नाथद्वारा शैली आदि का विकास हुआ माखाड शैली के अन्तर्गत चित्रित उत्तराध्ययन सूत्र, पंचतन्त्र तथा जयपुर शैली में बारहमासा, रागमाला आदि राजस्थानी चित्र शैली के तो श्रेष्ठ उदाहरण है ही, साथ ही इतिहास के स्रोत भी।
- नाथद्वारा की कलम से बने पुष्टिमार्ग से प्रभावित श्रीनाथजी के चित्र तथा प्राकृतिक चित्रण अत्यन्त सजीव हैं ।
- किशनगढ़ एवं बूँदी का नारी का श्रृंगार चित्रण तथा कोटा का शिकार दृश्य उल्लेखनीय हैं।
- राजस्थान चित्रकला से सांस्कृतिक इतिहास को लिखने में काफी सहायता मिलती है।