राजस्थान लेखन के साधन के रूप में स्मारक, मूर्तियां एवं चित्रकला | Rajsthan Itihaas Lekhan Me Smarak - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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मंगलवार, 9 अप्रैल 2024

राजस्थान लेखन के साधन के रूप में स्मारक, मूर्तियां एवं चित्रकला | Rajsthan Itihaas Lekhan Me Smarak

  राजस्थान लेखन के साधन के रूप में स्मारक, मूर्तियां एवं चित्रकला

राजस्थान लेखन के साधन के रूप में स्मारक, मूर्तियां एवं चित्रकला | Rajsthan Itihaas Lekhan Me Smarak



  राजस्थान लेखन के साधन के रूप में स्मारक एवं  मूर्तियां 

 

  • राजस्थान में अनेक स्थलों से प्राप्त भवनदुर्गमंदिरस्तूपस्तम्भ आदि स्तूप तत्कालीन सामाजिकधार्मिक एवं सांस्कृतिक इतिहास की जानकारी प्राप्त होती हैं। 
  • प्राचीन दुर्ग एवं भवन राजस्थान में स्थान-स्थान पर देखे जा सकते हैं।
  • चित्तौड़जालौरगागरोनरणथम्भौरआमेरजोधपुरबीकानेरजैसलमेरकुम्भलगढअचलगढ़ आदि दुर्ग इतिहास के बोलते साक्ष्य हैं। 
  • दुर्गों में बने महलमन्दिरजलाशय आदि तत्कालीन समाज एवं धर्म की जानकारी देते हैं । 
  • राजस्थान के प्रसिद्ध मन्दिर यथा देलवाडा एवं रणकपुर के जैन मन्दिर आमेर का जगत शिरोमणि मंदिरनागदा का सास-बहू का मंदिर उदयपुर का जगदीश मंदिरओसियां का सच्चिमाता एवं जैन मंदिरझालरापाटन का सूर्य मंदिर आदि उल्लेखनीय हैं।
  • इनके अतिरिक्त किराडू बाडोलीपुष्कर आदि स्थानों के मंदिर भी इतिहास के अध्ययन के लिए उपयोगी है। ये मंदिर धर्म एवं कला के अध्ययन के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। 
  • मूर्तियों के गहन अध्ययन से तत्कालीन वेशभूषाश्रृंगार के तौर-तरीकोंआभूषणोंविविध वाद्य यंत्रों नृत्य की मुद्राओं आदि का बोध होता है। 
  • राजस्थान में स्थापत्य एवं तक्षणकला के लिए चित्तौड़ दुर्ग स्थित कीर्ति स्तम्भ एक श्रेष्ठ उदाहरण है आमेर का जगत शिरोमणि का मंदिरमुगल राजपूत समन्वय की दृष्टि से उल्लेखनीय है ।

 

  राजस्थान लेखन के साधन के रूप में  चित्रकला

 

  • राजस्थान के लोगों की चित्रकला में रुचि आदि काल से रही है। शैलचित्र इसके उदाहरण हैं । 
  • जैसलमेर के जैन भण्डार से प्राचीनतम सचित्र ग्रंथ प्राप्त हुए हैं । 
  • ग्यारहवीं से पन्द्रहवीं शताब्दी तक के सचित्र ग्रंथों में निशीथचूर्णि त्रिषीष्टश्लाका पुरुष चरित्रनेमिनाथ चरित्रसुपासन चरित्रम् गीत गोविन्द आदि प्रमुख हैं । 
  • विभिन्न राज दरबारों में आश्रित चित्रकारों ने अपने-अपने ढंग से चित्र बनाने प्रारम्भ किये ।
  • विभिन्न चित्र शैलियों मेवाड शैली आमेर शैलीमारवाड शैलीबूंदी शैलीकिशनगढ़ शैलीकोटा शैलीनाथद्वारा शैली आदि का विकास हुआ माखाड शैली के अन्तर्गत चित्रित उत्तराध्ययन सूत्रपंचतन्त्र तथा जयपुर शैली में बारहमासारागमाला आदि राजस्थानी चित्र शैली के तो श्रेष्ठ उदाहरण है हीसाथ ही इतिहास के स्रोत भी। 
  • नाथद्वारा की कलम से बने पुष्टिमार्ग से प्रभावित श्रीनाथजी के चित्र तथा प्राकृतिक चित्रण अत्यन्त सजीव हैं । 
  • किशनगढ़ एवं बूँदी का नारी का श्रृंगार चित्रण तथा कोटा का शिकार दृश्य उल्लेखनीय हैं। 
  • राजस्थान चित्रकला से सांस्कृतिक इतिहास को लिखने में काफी सहायता मिलती है।