राजस्थान इतिहास लेखन के साहित्यिक स्रोत
राजस्थान इतिहास साहित्यिक स्रोतों में संस्कृत साहित्य
➽ राजस्थान इतिहास लेखन के लिए संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, हिन्दी, फारसी आदि कृतियाँ बडी उपयोगी हैं। इन कृतियों के रचयिता या तो राज्याश्रय प्राप्त थे या स्वांत सुखाय की दृष्टि से लिखने वाले थे ।
➽ इन कृतियों से तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों, सामाजिक एवं धार्मिक जीवन, युद्ध प्रणाली आदि पर काफी प्रकाश पड़ता है।
➽ यद्यपि इन ग्रंथों में अक्सर अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन मिलता है, फिर भी इसका ऐतिहासिक महत्त्व कम नहीं हो जाता है। निसन्देह ये ग्रंथ अपने रचना काल की ।
➽ प्रवृत्तियों तथा गतिविधियों के बहु मूल्य साक्ष्य हैं किन्तु इनका उपयोग सन्तुलित एवं पैनी दृष्टि करने की जरूरत है
राजस्थान ऐतिहासिक साहित्यिक स्रोतों में संस्कृत साहित्य
➽ ऐतिहासिक साहित्यिक स्रोतों में संस्कृत साहित्य का बड़ा महत्व है ।
➽मध्यकालीन राजस्थान के इतिहास के लिए कई ग्रंथ हैं जो अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर पुस्तक प्रकाश, जोधपुर प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर: उदयपुर साहित्य संस्थान, उदयपुर: प्रताप शोध संस्थान, उदयपुर: नटनागर शोध संस्थान, सीतामऊ (मध्यप्रदेश) आदि में सुरक्षित हैं ।
➽ पृथ्वीराज विजयजयानक ने 12वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में पृथ्वीराज विजय महाकाव्य लिखा था। इस कार्य में सपादलक्ष चौहानों की राजनीतिक एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन मिलता है। यह अजमेर के उत्तरोत्तर विकास को जानने के लिए भी उपयोगी है ।
➽ हम्मीर महाकाव्यनयनचन्द्र सूरी कृत 1403 ई. का
हम्मीर महाकाव्य चौहानों के इतिहास की जानकारी तो उपलब्ध कराता ही है, साथ ही अलाउद्दीन खिलजी की रणथभौर विजय
एवं उस समय की सामाजिक, धार्मिक अवस्था का बोध कराने में बड़ा
सहायक है। इसमें दिये गये वर्णन को यदि फारसी तवारीखों से तुलना करते हैं तो प्रतीत
होता है कि लेखक ने बड़े छानबीन के साथ तथा समसामयिक इतिहास सामग्री के आधार पर
रणथम्भौर के चौहानों का वर्णन किया है। अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा किये गये
रणथम्भौर के आक्रमण की कई घटनाओं को समझने के लिए इसका एक स्वतन्त्र महत्व है।
इससे हम्मीर के चरित्र पर अच्छा प्रकाश पड़ता है ।
➽ राजवल्लभमहाराणा
कुम्भा के मुख्य शिल्पी मण्डन ने 15वी शताब्दी में इसकी रचना की थी यह ग्रंथ
स्थापत्य कला को समझने की दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण है। इसके द्वारा नगर, ग्राम, दुर्ग, राजप्रसाद, मन्दिर, बाजार आदि के निर्माण की पद्धति पर पूरा प्रकाश पड़ता है। इस ग्रंथ
में कुल 14 अध्याय हैं ।
➽ भीट्टकाव्ययह काव्य 15वीं शताब्दी में रचा गया
था। इसमें जैसलमेर की राजनीतिक तथा सामाजिक स्थिति का वर्णन है। महाराजा अक्षयसिंह
के प्रासादों का तथा तुलादान आदि का इसमें रोचक वर्णन है ।
➽ राजविनोद इस ग्रंथ की रचना भट्ट सदाशिव ने बीकानेर के महाराजा कल्याणमल (16वीं) शताब्दी) की आज्ञा से की थी। इसमें विविध विषयों जैसे सामाजिक, आर्थिक, सैन्य आदि का वर्णन है लेखक ने इसमें किलों के निर्माण तथा सैनिक उपकरणों संम्बन्धी विषयों पर भी प्रकाश डाला है। एकलिंग महात्म्यमहाराणा कुम्भा रचित एकलिंग महात्म्य से गुहिल शासकों की वंशावली तथा मेवाड के सामाजिक संगठन की झांकी मिलती है ।
➽ कर्मचन्द्र वंशोत्कीर्तनकं काव्यम्जयसोम विरचित
16वि शताब्दी का यह ग्रंथ बीकानेर के शासकों के वैभव और विद्यानुराग पर अच्छा
प्रकाश डालता है। इस युग के पुस्तकालय, मन्दिर, पाठशालाएँ, भिक्षुग्रह, नगर फाटक, बाजार, बस्तियों, राजप्रसाद आदि से सम्बन्धित जानकारी के
लिए भी यह ग्रंथ उपयोगी है।
➽ अमरसार इसकी रचना पंडित जीवाधार ने 16वीं
शताब्दी में की थी। इस काक से महाराणा प्रताप और अमरसिंह प्रथम के सम्बन्ध में अच्छा
प्रकाश पड़ता है। तत्कालीन रहन-सहन, आमोद-प्रमोद, जनजीवन की झांकी के लिए अमरसार एक
महत्वपूर्ण स्रोत है ।
➽ राजरत्नाकर इस ग्रंथ की रचना 17वीं शताब्दी में
विद्वान लेखक सदाशिव ने महाराणा राजसिंह के समय में की थी। इसमें 22 सर्ग हैं।
महाराणा राजसिंह के समय के समाज चित्रण तथा दरबारी जीवन के वर्णन में लेखक ने अपनी
निपुणता का परिचय दिया है । तत्कालीन शिक्षण व्यवस्था एवं पाठ्यक्रम के लिए भी यह
ग्रंथ उपयोगी है ।
➽ अजितोदय जोधपुर नरेश अजीतसिंह के दरबारी कवि
जगजीवन भट्ट द्वारा रचित अजितोदय (17वीं शताब्दी) मारवाड के इतिहास की रचना के लिए
एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इस ग्रंथ में महाराजा जसवंतसिंह और अजीतसिंह के समय में
युद्धों, सन्धियों, विजयों के साथ-साथ उस समय के प्रचलित
रीतिरिवाजों और परम्पराओं की भी जानकारी मिलती है। मारवाड की कई ऐतिहासिक घटनाओं
के अध्ययन के लिए इस ग्रंथ का बड़ा उपयोग है.