राजस्थान इतिहास के स्रोत के रूप में पुरालेखीय सामग्री
पुरालेखीय सामग्री और राजस्थान का इतिहास
- पुरालेखीय सामग्री राजस्थान इतिहास जानने के मूल स्रोतों में लेखबद्ध सामग्री का बड़ा महत्व है ।
- वर्तमान काल से पूर्व लिखे अथवा लिखवाये गये राजकीय, अर्द्ध राजकीय अथवा लोक लिखित साधन पुरालेखीय सामग्री के अन्तर्गत आते हैं ।
- विशिष्ट प्रशासकीय सामग्री को जिस अधिकृत रूप से कार्यालय विशेष या पुरालेखागार की अभिरक्षा और भावी संदर्भ के लिए सुरक्षित रखा जाता है, पुरालेखागार कहलाता है ।
- पुरालेखागार में रखे पुराने अभिलेखों का शोध आदि प्रयोजन के लिए पाठक बिना किसी प्रतिबन्ध के देख एवं प्रयोग कर सकते हैं ।
- मध्यकाल एवं आधुनिक काल में राजस्थान की विभिन्न रियासतों में प्रशासकीय प्रलेखों को व्यवस्थित रूप से रखा जाता था, साथ ही, पाण्डुलिपियों, ग्रंथों आदि का भी संग्रह किया जाता था । ऐसे संग्रह स्वतन्त्र रूप से भी मन्दिरों, मठों, हवेलियों, ठिकानेदारों के आवासों में भी मिलते हैं ।
राजस्थान इतिहास की प्रमुख पुरालेखीय सामाग्री
- मुगल प्रशासन में सरकारी कागज पत्रों को संग्रहित करने की प्रवृत्ति थी। मुगलों का प्रभाव राजपूत शासकों पर भी पड़ा । इन्होंने भी राजकीय पत्रावलियों के संग्रह की ओर ध्यान देना प्रारम्भ किया राजस्थान में पुरालेखीय स्रोत का विशाल संग्रह राज्य अभिलेखागार, बीकानेर और उसके अधीन विभिन्न वृत्त अथवा जिला अभिलेखागारों में सुरक्षित है ।
- राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली में भी राजस्थान से संबन्धित काफी रिकॉर्ड उपलब्ध हैं । यह रिकॉर्ड उत्तर मध्यकालीन और आधुनिक काल के इतिहास के मुगल शासन एवं ब्रिटिश सरकार से सम्बन्धित हैं.
- सम्पूर्ण अभिलेख सामग्री को राजकीय संग्रह तथा संस्थागत या निजी सामग्री को व्यक्तिगत संग्रह के रूप में विभाजित करते हुए फारसी उर्दू राजस्थानी और अंग्रेजी भाषा में लिखित पुरालेख साधन में वर्गीकृत किया जा सकता है.
(अ) फारसी / उर्दू भाषा में लिखित सामग्री में फरमान, मन्सूर, रुक्का, निशान, अर्जदाश्त, हस्बुलहुक्म सनद, इन्शा वकील रिपोर्ट और अखबारात आदि उपलब्ध होते हैं ।
(ब) राजस्थानी / हिन्दी भाषा में पट्टे परवाने, बहियाँ, खरीदे, खतत, अर्जियाँ, हकीकर्ते याददाश्त, रोजनामचे, गाँवों के नक्शे, हाले हवाले पानडी, अखबार आदि मुख्य है ।
(स) अंग्रेजी भाषा में लिखी अथवा प्रकाशित पुरालेख सामग्री में राजपूताना एजेन्सी रिकॉर्ड, रिकॉर्ड्स ऑफ फॉरेन एण्ड पॉलिटिकल डिपार्टमेन्ट टूर मेमार्स पत्रादि संकलन आदि आते हैं.
उपर्युक्त सामग्री क्षेत्र अथवा प्राचीन रजवाड़ों के सम्बन्धानुसार निम्न रूप में भी जानी जाती
1. जोधपुर रिकॉर्ड, बीकानेर रिकॉर्ड अथवा मारवाड रिकॉर्ड्स ।
2. जयपुर रिकॉर्ड
3. कोटा रिकॉर्ड अथवा हाडौती रिकॉर्ड्स
4. उदयपुर रिकॉर्ड अथवा मेवाड रिकॉईस ।
राजस्थान के संस्थागत या निजी संग्रहालय
संस्थागत या निजी संग्रहालयों में राजस्थानी
शोध संस्थान चौपासनी, जोधपुर में सुरक्षित शाहपुरा राज्य का
रिकॉर्ड, प्रताप शोध संस्थान उदयपुर में
गौरीशंकर हीराचन्द ओझा संग्रह, शोध
संस्थान, जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर में नाथूलाल व्यास संग्रह तथा
राजस्थान के इतिहास एवं साहित्य से सम्बन्धित महत्वपूर्ण पाण्डुलिपियाँ, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर का आबू कलेक्शन, नटनागर शोध संस्थान, सीतामऊ (म. प्र.) में सुरक्षित गुलगुले
रिकॉर्ड्स, अगरचन्द्र नाहटा कलेक्शन, बीकानेर आदि मुख्य हैं ।
जयपुर राज्य से संबन्धित रिकॉईस
जयपुर राज्य से संबन्धित रिकॉईस भी अत्यधिक महल के हैं । डी. वी. एस. भटनागर के अनुसार, यह भण्डार (जयपुर रिकॉईस) ऐतिहासिक तथ्यों को जानने के लिए एक विशाल खजाना है और भण्डार का गहन अध्ययन निश्चित रूप से राजस्थान के इतिहास की अनेक मूलों को सुधारने में सहायक हो सकता है।
जयपुर रिकॉर्ड्स को मुख्य रूप से पाँच भागों में बाँटा जा सकता है
(1) खरीता खरीता उन पत्रों को कहते हैं जो एक
शासक के द्वारा दूसरे शासक को भेजे जाते थे। इन पत्रों से जयपुर के शासकों की नीति, उनका मुगलों-मराठों से संबंध तथा
राजाओं के गोपनीय समझौते,
आदि की जानकारी मिलती है ।
(2) अखबारात यह मुगल दरबार द्वारा प्रकाशित
दैनिक समाचारों का संग्रह है। इनसे मुगल दरबार की महत्वपूर्ण नियुक्तियाँ एवं
राजस्थान के विभिन्न शासकों के कार्य-कलापों की जानकारियाँ मिलती हैं ।
(3) वकील रिपोर्ट्स मुगल दरबार में राजपूत
राज्यों का एक प्रतिनिधि रहता था, जिसे
वकील कहा जाता था । इन वकीलों के माध्यम से शासकों को मुगल दरबार की गतिविधियों की
रिपोर्ट प्राप्त होती थी,
जो वकील रिपोर्ट कहलाती थी। इनके
अध्ययन से न केवल राजपूत शासकों और मुगल सम्राटों के आपसी सम्बन्धो का पता चलता है, अपितु मुगल दरबार में होने वाली
कूटनीतिक घटनाओं, राजनीतिक षड्यन्त्रों, उत्तराधिकार संघर्षो और अमीरों की
दलबन्दी की भी जानकारी मिलती है । वकील रिपोर्ट्स से राजस्थान के तिथिक्रम को ठीक
से निर्धारित करने में भी सहायता मिलती है। मुगलकालीन इन सम्बन्धों से
हिन्दु-मुस्लिम संस्कृतियों के समन्वय की भी जानकारी मिलती है। इनसे मुगलकालीन
जनजीवन की भी जानकारी मिलती है
(4) परवाना शासक द्वारा अपने अधीन कर्मचारियों
अथवा अन्य कर्मचारियों को भेजे गये पत्र फरमान कहलाते थे । इन पत्रों से विभिन्न
राज्यों की राजनीतिक घटनाओं के अतिरिक्त सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक स्थिति की भी जानकारी मिलती है। जयपुर के अलावा
अन्य अभिलेखागारों यथा उदयपुर, जोधपुर, कोटा आदि में भी पर्याप्त सामग्री
मिलती है। 1878 ई. से कोटा अनुभाग का रिकॉर्ड शुरू होता है। इसमें करीब 6000 बस्ते
हैं। प्रत्येक बस्ते में लगभग 6 पत्र सुरक्षित हैं, जो तिथिक्रम में व्यवस्थित हैं। इन्हें चार भागों में विभक्त किया जा
सकता है।
- (अ) दोवर्की दो परतों वाले दस्तावेज दोवर्की नाम से जाने जाते हैं। इन पत्रों में मुख्य रूप से दैनिक प्रशासन, युद्ध संबन्धित खर्चा, घायलों के उपचार आदि पर प्रकाश पड़ता है ।(ब) जमाबंदी ये पत्र राजस्व से संबन्धित हैं। अधिकतर पत्रों में चुंगी तथा जंगलात का हिसाब आदि है। ये पत्र राज्य की आर्थिक स्थिति जानने के लिए उपयोगी हैं ।
- (स) मुल्की ये हिसाब सम्बन्धित बहियाँ हैं जिनमें 3 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक का हिसाब मिलता है। इनमें राज्य की आमदनी, कर्मचारियों के वेतन आदि से सम्बन्धित ब्यौरा है।
- (द) तलकी इनमें राजाओं के आदेश तथा अन्य राज्य के शासकों, सामन्तों एवं अन्य कर्मचारियों को भेजे हुए पत्रों की नकलें हैं ।
(5) सियाद हजुर तथा दस्तूर कौमवार जयपुर राज्य
से सम्बन्धित ये पुरालेख बड़े महत्व के हैं । राज परिवार की दैनिक आवश्यकताओं के
खर्च का विवरण हमें सियादहजूर के प्रलेखों में मिलता है । दस्तूर कौमवार में हमें
राज्य के अधिकारियों के नाम एवं जातिवार ब्यौरा मिलता है, जिससे उस समय की सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक स्थिति का ज्ञान
होता है ।