राजस्थान में प्रागैतिहासिक चरण |निम्न पुरापाषाणकालीन उपकरण |Prehistoric Stages in Rajasthan - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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मंगलवार, 20 जुलाई 2021

राजस्थान में प्रागैतिहासिक चरण |निम्न पुरापाषाणकालीन उपकरण |Prehistoric Stages in Rajasthan

राजस्थान में प्रागैतिहासिक चरण |निम्न पुरापाषाणकालीन उपकरण |Prehistoric Stages in Rajasthan

राजस्थान पुरापाषाणकालीन संस्कृति के पाए जाने वाले प्रस्तर


राजस्थान में प्रागैतिहासिक चरण



  • राजस्थान के मरुभूमि क्षेत्र में प्रारंभिक पुरापाषाणकालीन संस्कृति के पाए जाने वाले प्रस्तर उपकरणों में हस्तकुठार (हैण्ड एक्स) कुल्हाडीक्लीवर और खंडक (चौपर) मुख्य है यहाँ से प्राप्त प्रस्तर उपकरण सोहनघाटी क्षेत्र में पाए जाने वाले प्रस्तर उपकरणों की तरह ही हैं। प्राप्त उपकरण पंजाब की सोन संस्कृति एवं मद्रास की हस्त कुल्हाडी संस्कृति के मध्य संबंध स्थापित करती है ।

 

  • चित्तौडगढ (मेवाड) मे सर्वेक्षण कर डॉ.वी.एन मिश्रा ने 1959 में गंभीरी नदी के पेटे से जो चित्तौड़गढ़ के किले के दक्षिणी किनारे पर स्थित है 242 पाषाण उपकरण खोजे थे। यह 242 उपकरण दो कर सर्वेक्षण कर एकत्रित किए गए। प्रथम संग्रह मे 135 उपकरण तथा दूसरे संग्रह मे 107 उपकरण एकत्र किए गए हैं। 135 उपकरणों में से तीन हस्त कुल्हाड़ी दो छीलनी (स्क्रेपर) एक कछुए की पीठके सदृश क्रोड और नौ फलक हैं । द्वितीय संग्रह में सात हस्त कुल्हाड़ी दो विदलक (क्लीवर) तथा चार क्रोड हैं । वि.एन. मिश्रा से पूर्व 1953-54 में भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण दिमाग के प्रयासों से

 

  • चित्तौडगढ़ के गंभीरी और बेड़च नदी के पेटे से चौपर हस्त कुल्हाडी तथा फलक) प्रस्तर उपकरण खोजे थे । राजस्थान के प्रागैतिहासिक कालीन संस्कृति को जानने के लिए यह खोज अत्यन्त महत्वपूर्ण थी और इससे प्रारंभिक पाषाण संस्कृतियों के अध्ययन की व्यापक संभावनाएँ निर्मित हुई थी इसी क्रम में 1954-55 से 1963-64 तक इस मेवाड के भू-भाग मे आने बाले पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा प्राकइतिहास की दृष्टि से सर्वेक्षण किया गया। जिसके अन्तर्गत गंभीरी बेडचकादमली और चंबल नदी के समीपवर्ती क्षेत्रों से जिसमें चित्तौड़ नगरी और भैंसरोड़गढ़सोन्नीताबल्लूखेडाबानसेनभूटियाचांपाखेडीहाजारी खेड़ीसिरडी तथा टुकरडा से क्वार्टजाईटचर्ट जैस्परचेल्सीडोनी तथा नोट आदि के प्रस्तर उपकरण मिले |


  • राजस्थान में प्रागैतिहासिक काल का विकास कई चरणों में हुआ है। अरावली पर्वतमाला यहां के क्षेत्र को उत्तरी-पूर्वी और दक्षिणी-पश्चिमी भागों में विभाजित करती हैपश्चिमी भाग मरुस्थलीय है और मारवाड के नाम से जाना जाता हैजहां पर छोटी-छोटी पहाड़िया रेत के टीलों के रूप में विकीसत हुई हैं। इस क्षेत्र मे लूणी नदी बहती है पूर्वी भाग में बेडचगंभीरीवाजनकांदमली और चंबल नदियां बहती हैंयह क्षेत्र मेवाड के नाम से जाना जाता हैं। इस क्षेत्र में पुरावनस्पति वैज्ञानिकोंपुराविदो एवं अन्य विद्वानों को समय-समय पर किये गये उत्खननों सर्वेक्षणों से नदियों के किनारों पर विभिन्न प्रकार के पुरावशेष प्राप्त हुए हैं जो तत्कालीन मानव के क्रिया कलापों के बारे में जानकारी देते हैं । राजस्थान के इस भू-भाग से प्राप्त पाषाण उपकरणों के आकार प्रकार एवं इन पर धार बनाने के लिए फलकीकरण के आधार पर किये गये परिवर्तनों को देखते हुए उपकरणों के निर्माण व विकास को निम्न भागों में बांटा गया है

 

01 राजस्थान में प्रागैतिहासिक चरण निम्न पुरापाषाणकालीन उपकरण

 

  • इस काल के उपकरणों में मुख्यतः पेबुलउपकरणहैन्डएक्सक्लीवर फ्लेक्स पर बने ब्लेड और स्क्रेपरचौपर और चांपिंग उपकरण आदि हैंइन्हें कोर उपकरण समूह में सम्मिलित किया जाता हैइन उपकरणों के निर्माण हेतु क्वार्टजाइट (Quartzit) ट्रेप (Trap) जैसे कठोर पाषाणों का प्रयोग किया जाता था 


  • राजस्थान मे इन उपकरणों को प्रकाश मे लाने का श्रेय प्रो. वी. एनमिश्राएस. एन. राजगुरूडी. पी अग्रवालगोढीगुरुदीप सिंह वासनआर. पी. धीर को जाता हैंइन्होनें जायल और डीडवाना मेवाड मे चित्तौड़गढ़ (गंभीरी बेसीन) कोटा (चम्बल बेसीन) और नगरी (बेड़च बेसीन) क्षेत्रों में अनेक निम्न पुरापाषाणकालीन स्थल स्तरीकृत ग्रेवेल से प्राप्त किये इन ग्रेवेलो से तत्कालीन समय की पर भी पर्याप्त प्रकाश पडता हैं.