ऐसे घट घट राम है , दुनिया जानत नाही दोहे का हिन्दी अर्थ
कस्तूरी कुंडली मृग बसे , मृग फिरे वन माहि।
ऐसे घट घट राम है , दुनिया जानत नाही
निहित शब्द –
- कस्तूरी – सुगंध जो हिरन की नाभि से उत्त्पन्न होती है ,
- कुंडली – नाभि ,
- मृग
– हिरन
,
ऐसे घट घट राम है , दुनिया जानत नाही दोहे का हिन्दी अर्थ
इस
कबीर के दोहे का अर्थ यह है की कबीरदास यहां अज्ञानता का वर्णन करते हैं। वह कहतें
हाँ कि मनुष्य में किस प्रकार से अज्ञानता के वशीभूत है। स्वयं के अंदर ईश्वर के
होते हुए भी बाहर यहां-वहां , तीर्थ पर ईश्वर को ढूंढते हैं। कबीरदास बताते हैं कि किस प्रकार एक
कस्तूरी की गंध जो हिरण की नाभि (कुंडली) में बास करती है। कस्तूरी एक प्रकार की
सुगंध है वह हिरण की नाभि में वास करती है और हिरण जगह-जगह ढूंढता फिरता है कि यह
खुशबू कहां से आ रही है।
इस खोज में वह वन – वन भटकते-भटकते मर जाता है , मगर उस कस्तूरी की गंध को नहीं ढूंढ
पाता।
उसी प्रकार मानव भी घट – घट राम को ढूंढते रहते हैं मगर अपने अंदर कभी राम को नहीं ढूंढते। राम का वास तो प्रत्येक मानव में है फिर भी मानव यहां-वहां मंदिर में मस्जिद में तीर्थ में ढूंढते रहते हैं।