कालीबंगा का इतिहास : प्राक् हड़प्पा युगीन कालीबंगा, कालीबंगा का सामाजिक जीवन | Kalibanga Ka Itihaas - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

कालीबंगा का इतिहास : प्राक् हड़प्पा युगीन कालीबंगा, कालीबंगा का सामाजिक जीवन | Kalibanga Ka Itihaas

 राजस्थान का इतिहास 

कालीबंगा का इतिहास : प्राक् हड़प्पा युगीन कालीबंगा, कालीबंगा का सामाजिक जीवन | Kalibanga Ka Itihaas



एतेहासिक राजस्थान सामान्य परिचय 

  • 1856 ई में अंग्रेजों द्वारा लाहौर से कराँची के मध्य रेल्वे लाइन का कार्य करते समय पंजाब में रावी नदी के किनारे टीलों में दबे हुए पुरावशेषों का सर्वप्रथम ज्ञान हुआ। 
  • 1872 ई. में अलेक्जेण्डर कनिंघम ने भी पुरावशेषों का अध्ययन किया तथा प्राचीन सभ्यता का अनुमान लगाया। 
  • 1921 ई. में दयाराम साहनी ने सर्वप्रथम इन टीलों में पुरातात्विक उत्खन्न प्रारम्भ किया तथा यह उजागर हुआ कि हडप्पा ग्राम के समीप इन टीलों में हमारे देश की प्राचीन सभ्यता के अवशेष दबे हुए हैं। इसीलिए इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता कहा जाने लगा। 
  • कालान्तर में यहाँ अन्य अनेक विद्वानों ने भी उत्खनन कार्य किया जिनमें माधोस्वरूप वत्स, केदारनाथ शास्त्री, मार्टीमर कीलर आदि उल्लेखनीय है । 
  • 1922 ई. में राखल दास बनर्जी ने सिंध क्षेत्र में हड़प्पा से लगभग 600 कि.मी. दक्षिण-पश्चिम में मोहनजोदड़ो का उत्खनन किया धीरे-धीरे हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की तरह अन्य अनेक पुरास्थल खोज डाले गये जिनमें चनहुदड़ों, सुत्कगेनडोर उल्लेखनीय हैं। 
  • न पुरास्थलों की खोज से सर्च विश्व को यह ज्ञात हो गया कि भारत में भी प्राचीनकाल में एक महान सभ्यता का विकास हुआ था जिसमें बड़े-बड़े नगरों की स्थापना हो चुकी थी। यही नहीं विश्व के अब क्षेत्रों में ज्ञात हुई तत्कालीन अन्य सभ्यताओं की तुलना में विशिष्ट थी जैसे-सुरक्षात्मक दीवार द्वारा रक्षित गढ़ी क्षेत्र सीधी और चौड़ी सड़कें तथा उनके दोनों ओर पक्की नालियाँ आदि हडप्पा सभ्यता के नगरों की प्रमुख विशेषतायें थी ।
 
  • 1947 ई. में स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही हमारे देश का विभाजन हो गया हडप्पा, मोहनजोदड़ो जैसे प्राचीन हड़पा सभ्यता के प्रमुख केन्द्र पाकिस्तानी भू-भाग के अन्तर्गत चले गये। तत्पश्चात् भारतीय पुरातत्ववेत्ताओं एवं इतिहासकारों ने भारतीय क्षेत्र का गहन सर्वेक्षण कार्य किया। 
  • 1952 ई में अमलानन्द घोष के द्वारा उत्तरी राजस्थान में घग्घर नदी (प्राचीन सरस्वती नदी घाटी) के क्षेत्र में 25 से अधिक टीले खोज डाले गये । इनमें से एक कालीबंगा नामक पुरास्थल भी प्रकाश में आया। 
  • कालीबंगा, दिल्ली से 310 कि. मी. उत्तर पश्चिम में सूखी घग्घर नदी के बायें किनारे पर दो टीलों के रूप में स्थित है। घग्घर नदी को प्राचीन काल में सरस्वती नदी कहा जाता था। इसका वैदिक साहित्य में उल्लेख प्राप्त होता है ।

 

कालीबंगा का उत्खनन (कालीबंगा का इतिहास) 

 

  • 1960-61 ई में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के बी बी लाल एवं बी. के. थापड़ के निर्देशन में कालीबंगा का उत्खनन प्रारम्भ हुआ जो लगभग एक दशक तक विभिन्न सत्रों में किया गया । 
  • कालीबंगा के ये टीले आस पास की भूमी से लगभग 12 मीटर ऊँचे थे तथा आधा कि.मी. तक विस्तृत थे । इस उत्खनन कार्य से यह स्पष्ट हुआ कि यहाँ इन टीलों में केवल हडप्पा युगीन सभ्यता के ही अवशेष नहीं दबे हैं बल्कि उससे भी पहले की सभ्यता के अवशेष हैं। हडप्पा सभ्यता से पहले की सभ्यता को विद्वानों ने प्राक् हड़पा सभ्यता कह कर संबोधित किया है । 
  • कालीबंगा में मुख्यत: दो टीले हैं, प्रथम पश्चिमी टीला, जो अपेक्षाकृत छोटा लेकिन ऊंचा है, द्वितीय पूर्वी टीला, जो अपेक्षाकृत नीचा (कम ऊंचाई का) तथा विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। 
  • पश्चिमी टीले को जड़ी क्षेत्र तथा ही टीले को नगरीय क्षेत्र ढहा जाता है। पश्चिमी टीले के निम्न स्तरों में प्राक्-हड़पा संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए है। इन्हीं प्राकूहडप्पा कालीन पुरावशेषों के ऊपरी स्तरों में हड़पा कालीन संस्कृति के पुरावशेष प्राप्त हुए हैं ।

 

प्राक् हड़प्पा युगीन कालीबंगा

 

  • कालीबंगा में प्राक्हड़प्पा युगीन निवासियों की बस्ती एक सुरक्षात्मक दीवार (परकोटा) द्वारा सुरक्षित की गई थी। यह दीवार 4.10 मी. मोटी एवं 30 x 20 X 10 सेमी के आकार की कच्ची ईटों द्वारा निर्मित की गई थी। 
  • यह परकोटा उत्तर से दक्षिण 250 मी. लम्बा तथा पूर्व से पश्चिम 180 मी. चौड़ा था। इस बस्ती में मकानों के निर्माण के लिए भी कच्ची ईटों का ही प्रयोग हुआ था
  • पक्की ईटें केवल स्नानागार, नाली एवं कुएँ आदि के निर्माण में प्रयुक्त हुई है। प्राक् हडप्पा युगीन कालीबंगा की संस्कृति के परिचय का प्रमुख माध्यम उनकी विशिष्ट कुंभकार कला थी जिसका प्रमाण है विभिन्न प्रकार के मृदभाण्ड विद्वानों ने इन्हें छः भागों में वर्गीकृत किया है जिन्हें फेबरिक '', फेबरिक 'बी' सी, 'डी', '', 'एफ' नाम दिया गया है। 


कालीबंगा के मृदभाण्ड 

  • फेबरिक '' ये मृद्राण्ड लाल एवं गुलाबी रंग के थे तथा इनकी बनावट सुथरी नहीं थी इन पर काले एवं सफेद रंग से अलंकरण किया गया था । 


  • फेबरिक 'बी' इन्हें सावधानी से बनाया गया था तथा ऊपरी भाग पर लाल जिल्द चढ़ाई गयी थी तथा निचले भाग को खुरदरा बनाया गया था । 


  • फेबरिक 'सी': इस श्रेणी में लाल एवं बैंगनी झाई युक्त मृगाण्ड थे। इन पर काले रंग से अलंकरण किया गया था । 


  • फेबरिक 'डी' : ये लाल रंग के मोटे तथा मजबूत किस्म के पात्र थे। इनमें भारी घड़े एवं तसलें मुख्य थे तसलों के भीतरी भाग में खुरच कर अलंकरण किया जाता था फेबरिक '' इस श्रेणी के पात्रों में लाल रंग के छोटे तथा मझोले आकार के मृद्राण्ड यथा ढक्कन, कटोरियाँ सपीठ पात्र थालियाँ आदि प्राप्त हुई हैं ।

 

  • फेबरिक 'एफ'  इस श्रेणी में सलेटी रंग के पात्र थे। इन पर सफेद एवं काले वर्णक से अलंकरण किया गया है ।

 

अन्य घरेलू सामग्री के अन्तर्गत त्रिभुजाकार पक्की मिट्टी के केक, घीया प्रस्तर तथा तामड़े प्रस्तर के मणके, शंख की चुड़ियाँ, पक्की मिट्टी की खिलौना गाड़ी, पहिये, खण्डित बैल की मृणमूर्ति कड़े, हड्डी की बनी सलाइयाँ, पत्थर के सिलबट्टे, मिट्टी की गेंद, ताम्बे के परशु आदि भी प्राप्त हुए। 

 

प्राक् हड़प्पा युगीन कालीबंगा का सामाजिक जीवन

 

  • प्राक् हड़प्पा युगीन कालीबंगा की बस्ती के चारों तरफ परकोटे की उपस्थिति तत्कालीन समाज में असुरक्षा की भावना का संकेत है। संभव है बाढ़ से भी सुरक्षार्थ इसका निर्माण किया गया है । ये लोग अपने आवासों का निर्माण कच्ची ईटों से करते थे । 
  • स्नानागार तथा नालियों के निर्माण में पक्की ईटों का प्रयोग किया गया है। घरों की दीवार तथा फर्श पर गारे का पलस्तर किया जाता था । खाना बनाने के लिए तन्दूर तथा चूल्हों का प्रयोग होता था । इन पर भी पलस्तर किया जाता था । इनके आर्थिक जीवन में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान था। ये उन्नत तरीके से कृषि कार्य करते थे । एक साथ दो फसलों की उपज प्राप्त करना जानते थे। हल, संभवतया लकड़ी के होते थे । 
  • सिंचाई के लिए बांध एवं नहरों का प्रयोग करते थे। ये लोग जी एवं गेहूँ का मुख्य रूप से उत्पादन करते थे। सिलबट्टों से अनाज पीसकर रोटी बनायी जाती होंगी जिन्हें तन्दूर एवं चूल्हों पर पकाया जाता था। 
  • ये लोग मांसाहारी भी थे । भेड़, बकरी, एवं मछली आदि का मांस खाया जाता था पशुपालन, यहाँ के निवासियों का प्रमुख व्यवसाय था। ये लोग गाय, भैंस, भेड़ बकरी एवं बैल को विशेष रूप से पालते थे। बैल कृषि कर्म हेतु तथा बैलगाड़ी द्वारा सामान ढोने में काम लिया जाता था । 
  • प्राक् हड़प्पा कालीन कालीबंगा के निवासी सौन्दर्य प्रिय थे। गले में मणिकाओं की माला धारण करते थे। आँखों में अंजन या सुरमा डालने में सलाइयों का प्रयोग करते थे । बाल संवारते थे। हाथ एवं पैरों में चुड़ियाँ एवं कड़े पहनते थे । 

प्राक् हड़प्पा कालीन बस्ती का तिथिक्रम 

  • कार्बन 14 पद्धति के आधार पर प्राक् हड़प्पा कालीन बस्ती का तिथिक्रम 2400 ई. पु. निर्धारित हुआ है। इसके पश्चात् इस बस्ती को रेत द्वारा आवृत किये जाने के प्रमाण मिले हैं। संभव है का विस्तार किसी प्रकार के भूकम्प का संकेत हो । स्पष्ट है जलवायु परिवर्तन के कारण इन लोगों ने इस स्थान को त्याग दिया था ।