कालीबंगा की नगर योजना, कालीबंगा का सामाजिक आर्थिक जीवन
हड़प्पा युगीन कालीबंगा
- राजस्थान के उत्तरी भाग के अतिरिक्त हडप्पा संस्कृति से सम्बद्ध स्थल अभी तक अन्यत्र प्राप्त नहीं हुए हैं इससे स्पष्ट है कि हड़प्पा संस्कृति का विस्तार राजस्थान के उत्तरी भाग तक ही सीमित था।
हड़प्पा युगीन कालीबंगा की नगर योजना:
- हड़प्पा संस्कृति के अन्य पुरास्थलों की भांति कालीबंगा में भी दो टीले दिखाई देते हैं पश्चिम में ऊँचा एवं छोटा टीला, पूर्व में अपेक्षाकृत कम ऊँचा एवं बड़ा टीला | छोटे टीले को गढ़ी क्षेत्र कहा जाता है तथा बड़े टीले को नगरीय क्षेत्र ।
- इन दोनों को अलग-अलग परकोटे से सुरक्षित किया गया है। यह परकोटे की दीवार 900 मी. मोटी है तथा इसके निर्माण में 40x20x10 तथा 30x15x7 5 सेमी की ईटों का प्रयोग किया गया है।
- कालीबंगा के नगर की व्यवस्था को देखकर ऐसा लगता है कि इसे एक निश्चित योजना के आधार पर बसाया गया था।
- सम्पूर्ण नगर में उत्तर से दक्षिण की ओर तथा पूर्व से पश्चिम की ओर जाने बाली चौड़ी-चौड़ी सड़कें जो 7.20 मी. चौड़ी थी और एक दूसरे को समकोण पर काटती थी। इन सडको के जाल से सम्पूर्ण नगर कई चौकोर खण्डों में विभक्त हो गया था। इन चौकोर खण्डों को मोहल्ला या कॉलोनी कहा जा सकता है इन सड़कों के किनारे ऊँचे-ऊँचे चबूतरे मिले हैं जिन पर सम्भवतया दुकानें लगती थी ।
- मोहल्लों में जाने के लिए इन प्रमुख सड़कों से आधी चौड़ी (36 मी0) मोहल्ले की सड़क होती थी तथा इससे आधी चौड़ी (1.80 मी.) गली की सड़क होती थी।
- प्रायः भवनों के प्रमुख द्वार गली की सड़क पर खुलते थे । इन तीनों प्रकार की सड़कों के दोनों ओर पक्की ईटों से निर्मित गंदे पानी के निकास हेतु नालियाँ बनायी गयी थी जो ढकी हुई थी ।
- सामान्यतः घर पर्याप्त लम्बे चौड़े होते थे । इनके मध्य में आँगन तथा तीन ओर कक्षों का निर्माण किया जाता था। इनके मुख्य द्वार गली की ओर खुलते थे जो 70-75 सेमी. चौड़े थे। द्वार पर प्राय: एक ही फाटक लगाया जाता था। मिट्टी कूट कर मकानों के फर्श का निर्माण किया जाता था ।
- मकानों की छत समतल होती थी जिनका निर्माण लकड़ी की शहतीरों से किया जाता था। मकानों से गंदे पानी के निकास हेतु नालियाँ थी जो गली की नाली में खुलती थी और यह गली की नाली मोहल्ले की नाली में जो मुख्य सड़क के पार्शव में बनी नाली में खुलती थी। इस प्रकार अंततः गंदा पानी शहर के बाहर चला जाता था। इन नालियों की सफाई की समुचित व्यवस्था थी।
हड़प्पा युगीन कालीबंगा का सामाजिक जीवन
- कालीबंगा के नगर एवं मकानों के भग्नावशेषों से अनुमान लगाया जा सकता है कि अधिकांश लोगों का जीवन सामान्य रूप से समृद्ध था। समाज में धर्मगुरु (पुरोहित), चिकित्सक, कृषक, कुंभकार, बढ़ई, सोनार, दस्तकार, जुलाहे, ईंट एवं मणके निर्माता, व्यापारी आदि व्यवसायों से समबद्ध लोग निवास करते थे। संभवतः धर्मगुरू का तत्कालीन समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान था। यह वर्ग गढ़ी क्षेत्र में निवास करता था और धार्मिक क्रियायें करता एवं करवाता था। इसके साथ ही गढ़ी क्षेत्र में शासक वर्ग एवं अन्य महत्वपूर्ण कर्मचारी तथा सम्पन्न लोग निवास करते थे। नगर क्षेत्र में सामान्य जन रहते थे।
- उत्खनन में प्राप्त साक्ष्यों से यह स्पष्ट होता है कि ये लोग दोनों प्रकार की भोज्य सामग्री का उपयोग करते थे शाकाहारी लोग फल, फूल, दूध, दही, जी, गेहूँ आदि का प्रयोग करते थे तथा मांसाहारी लोग भेड़, बकरी, हिरण, सुअर, मछली, कछुआ, मुर्गा आदि के मांस का । कालीबंगा के निवासियों के जीवन में त्यौहार एवं धार्मिक उत्सवों का महत्व था साथ ही खिलौने, पासे, मत्स्य कांटे आदि की उपलब्धता ने इनके जीवन में मनोविनोद के महत्व को भी प्रदर्शित किया है ।
हड़प्पा युगीन कालीबंगा धार्मिक जीवन
- धार्मिक जीवन उत्खनन में प्राप्त मूर्तियाँ, मुद्राएँ, मृदपात्र तथा कुछ पाषाण की कलाकृतियाँ ऐसी उपलब्ध हुई हैं जिनसे तत्कालीन निवासियों के धार्मिक जीवन का ज्ञान होता है कालीबंगा के गढ़ी क्षेत्र में कच्ची ईटों के चबूतरे पर सात आयताकार अग्निवेदिकाएं प्राप्त हुई हैं। इनमें कुछ जले हुए अन्न के दाने तथा कोयले भी प्राप्त हुए हैं। इनको देखकर यह अनुमान किया जा सकता है ये किसी न किसी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान का अंग थी । इस प्रकार की अग्निवेदिकाएँ तत्कालीन अन्य पुरास्थलों जैसे बाणावली, राखीगढ़ी आदि में हुए उत्खनन में भी प्राप्त हुई हैं ।
- कालीबंगा के निवासियों के जीवन में सरस्वती नदी का विशेष महत्व तो था ही साथ ही घरों में अण्डाकार कुएँ भी मिले हैं और अग्निवेदिकाओं के पास भी कुआँ मिला है, संभवतः स्नान या पवित्रता संबन्धित किसी प्रकार की अवधारणा विद्यमान थी ।
- मृत्यु के पश्चात् के विषय में कालीबंगा के निवासी किस प्रकार का विश्वास रखते थे यह तो स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता लेकिन उत्खनन में जो शवाधान प्राप्त हुए हैं उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि दे मृत्युपरांत जीवन के विषय में किसी न किसी प्रकार का विश्वास अवश्य रखते थे क्योंकि मृतकों के साथ खाद्य सामग्री, आभूषण मणके, दर्पण तथा विभिन्न प्रकार के मृगाण्ड आदि रखे हुए मिले हैं।
हड़प्पा युगीन कालीबंगा का आर्थिक जीवन:
- कालीबंगा के भग्नावशेषों से अनुमान लगाया जा सकता है कि सामान्यतया सभी लोगों का जीवन समृद्ध था। सुख एवं समृद्धि के लिये लोगों ने विविध प्रकार के साधनों का उपयोग किया था ।
- सरस्वती नदी द्वारा लाई जाने वाली उपजाऊ मिट्टी उनके कृषि जीवन की समृद्धि का कारण थी । अस्थि अवशेषों, मृदभाण्डों पर अंकित चित्रों तथा खिलौनों से उनके पशु धन का ज्ञान होता है; वे भेड़ बकरी, गाय-भैंस, बैल सुअर एवं ऊँट आदि पालते थे ।
हड़प्पा संस्कृति के नगरों की समृद्धि का मुख्य स्रोत
- हड़प्पा संस्कृति के नगरों की समृद्धि का मुख्य स्रोत उस समय का उन्नत व्यापार एवं वाणिज्य था । यह व्यापार एवं वाणिज्य देश के अन्य क्षेत्रों से तथा विदेशों से, जल एवं स्थल दोनों मार्गों से हुआ करता था । कालीबंगा से हडप्पा संस्कृति के अन्य केन्द्रों को अनाज, मणके तथा ताम्बा भेजा जाता था । कालीबंगा को तामा संभवतः गणेश्वर क्षेत्र (सीकर एवं झुन्झुनू) से प्राप्त होता था | ताम्बे का प्रयोग, अस्त्र-शस्त्र तथा दैनिक जीवन में उपयोग आने वाले उपकरण, बर्तन एवं आभूषण बनाने में होता था ।
- स्थानीय उद्योग पर्याप्त विकसित थे। कुभंकार का मृद्राण्ड उद्योग अत्यन्त विकसित था वह विभिन्न प्रकार के मृद्राण्ड चाक पर बनाता था तथा भट्टों में अच्छी तरह पकाता था। इनमें मर्तबान, कलश बीकर, तश्तरियाँ, पाले, टोंटीदार बर्तन, छिद्रित भाण्ड एवं थालियाँ मुख्य हैं । हस्त निर्मित कुछ बड़े मृद्राण्ड भी प्राप्त हुए हैं जो अन्नादि संग्रह हेतु काम में लिये जाते थे । इन मृदभाण्डों पर का एवं सफेद वर्णकों से चित्रण भी किया जाता था जिसमें आडी तिरछी रेखाएँ, लूप, बिन्दुओं का समूह, वर्ग, वर्गजालक, त्रिभुज, तरंगाकार रेखाएँ, अर्द्धवृत्त, एक दूसरे को काटते वृत्त, शल्कों का समूह आदि के प्रारूप मुख्य हैं। इनके अतिरिक्त पीपल की पत्तियाँ तथा चौपतिया फूल आदि का अंकन भी प्राप्त हुआ है। बड़े एवं मोटे बर्तनों पर 'कुरेदकर' भी अलंकरण किया गया है। किन्ही किन्हीं मृदपात्रों पर 'ठप्पे' लगे हुए मिले हैं तथा कुछ पर तत्कालीन लिपि में लिखे लेख भी प्राप्त हुए हैं। उत्खनन में विभिन्न प्रकार की मुद्राएँ (मोहरे), मूर्तियां, चूड़ियाँ, मणके, औजार आदि से ज्ञात होता है कि हड़प्पा सभ्यता कालीन कालीबंगा समाज में शिल्पकला का उचित स्थान रहा है ।
- सोना, चाँदी, अर्द्ध बहु मूल्य प्रस्तर शंख आदि से आभूषणों का निर्माण किया जाता था। स्त्रियों कानों में कर्णाभरण कर्णफूल, बालियाँ पहनती थी, बालों में पिने लगाती थी। गले में गणकों का हार धारण करती थी। हाथों में शंख, मिट्टी, ताम्र एवं शेलखड़ी से निर्मित चूड़ियाँ पहनती थी । अंगुलियों में अंगूठी पहनती थी। एक शव के साथ ताम्रदर्पण एवं कान पास कुण्डल भी मिला है। स्पष्टतया कालीबंगा निवासी प्रसाधन प्रेमी थे।
कालीबंगा के लोग मृतकों के शव तीन प्रकार से विसर्जित किया करते थे :
(1) सशरीर शवाधान :
- इस विधि में आयताकार या अण्डाकार गर्त में शव को पीठ के बल लिटा दिया जाता था जिसका सिर उत्तर की ओर एवं पैर दक्षिण की ओर रखे जाते थे।
- शवों के साथ उनकी सामाजिक स्थिति के अनुसार मृदपात्र एवं अन्य सामग्री भी रखी जाती थी। यहाँ एक शवाधिगर्त ऐसा मिला है जिसकी दीवारें ईटों से बनायी गयी है, उन पर पलस्तर किया गया है तथा इसमें रखे गये शव के साथ 72 मृदुपात्र प्राप्त हुए हैं इससे सहज ही यह अनुमान होता है कि यह किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति का शव था।
(2) आयताकार गड्डे:
- ये शवाधान गर्त आयताकार हैं लेकिन इनमें शवों के अस्थि अवशेष नहीं मिले हैं। संभवतः यह प्रतीकात्मक शवाधान विधि रही होगी । संभवतः जब किसी व्यक्ति की मृत्यु दूरस्थ प्रदेश में हो जाती थी और उसका शव यहाँ नहीं लाया जा सकता था तब ऐसी विधि द्वारा धार्मिक कर्मकाण्ड सम्पन्न किये जाते रहे होंगे।
(3) प्रतीकात्मक शवाधान
- इस विधि में एक अण्डाकार गर्त बनाया जाता था जिसमें मृदुपात्र, आभूषण, मणके, दर्पण इत्यादि सामग्री रख दी जाती थी। इनमें भी शवों के अवशेष नहीं मिले हैं ।