लाली मेरे लाल की दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या | Laali Mere lal Ki Dohe Ka Arth - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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सोमवार, 27 सितंबर 2021

लाली मेरे लाल की दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या | Laali Mere lal Ki Dohe Ka Arth

  लाली मेरे लाल की दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या 

लाली मेरे लाल की दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या | Laali Mere lal Ki Dohe Ka Arth



लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल। 

लाली देखन मै गई मै भी हो गयी लाल। ।

 

निहित शब्द – 

  • लाली रंगा हुआ ,
  • लाल प्रभु
  • जित जिधर
  • देखन देखना।

 

विशेष अनुप्रास अलंकार , और उत्प्रेक्षा अलंकार का मेल है।

 

लाली मेरे लाल की दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या 

 

कबीरदास यहां अपने ईश्वर के ज्ञान प्रकाश का जिक्र करते हैं। वह कहते हैं कि यह सारी भक्ति यह सारा संसार , यह सारा ज्ञान मेरे ईश्वर का ही है। मेरे लाल का ही है जिसकी मैं पूजा करता हूं , और जिधर भी देखता हूं उधर मेरे लाल ही लाल नजर आते हैं। एक छोटे से कण में भी , एक चींटी में भी , एक सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवों में भी मेरे लाल का ही वास है। उस ज्ञान उस प्राण उस जीव को देखने पर मुझे लाल ही लाल के दर्शन होते है और नजर आते हैं। स्वयं मुझमें भी मेरे प्रभु का वास नजर आता है।