पाहन पूजे हरि मिले दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या | Paahan Puje Hari Mile Ka Hindi Arth - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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सोमवार, 27 सितंबर 2021

पाहन पूजे हरि मिले दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या | Paahan Puje Hari Mile Ka Hindi Arth

 

पाहन पूजे हरि मिले दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या

पाहन पूजे हरि मिले दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या | Paahan Puje Hari Mile Ka Hindi Arth



पाहन पूजे हरि मिले , तो मैं पूजूं पहार 

याते चाकी भली जो पीस खाए संसार। ।

 

निहित शब्द – 

  • पाहन पत्थर
  • हरि भगवान , पहार पहाड़
  • चाकी अन्न पीसने वाली चक्की।

 
पाहन पूजे हरि मिले दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या

 

कबीरदास का स्पष्ट मत है कि व्यर्थ के कर्मकांड ना किए जाएं। ईश्वर अपने हृदय में वास करते हैं लोगों को अपने हृदय में हरि को ढूंढना चाहिए , ना की विभिन्न प्रकार के आडंबर और कर्मकांड करके हरि को ढूंढना चाहिए। हिंदू लोगों के कर्मकांड पर विशेष प्रहार करते हैं और उनके मूर्ति पूजन पर अपने स्वर को मुखरित करते हैं। उनका कहना है कि पाहन अर्थात पत्थर को पूजने से यदि हरी मिलते हैं , यदि हिंदू लोगों को एक छोटे से पत्थर में प्रभु का वास मिलता है , उनका रूप दिखता है तो क्यों ना मैं पहाड़ को पूजूँ।

 

वह तो एक छोटे से पत्थर से भी विशाल है उसमें तो अवश्य ही ढेर सारे भगवान और प्रभु मिल सकते हैं। और यदि पत्थर पूजने से हरी नहीं मिलते हैं तो इससे तो चक्की भली है जिसमें अन्न को पीसा जाता है।

 

उस अन्य को ग्रहण करके मानव समाज का कल्याण होता है। उसके बिना जीवन असंभव है तो क्यों ना उस चक्की की पूजा की जाए।