निंदक नियरे राखिए दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या
निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय 1 ।
बिन पानी साबुन बिना, निरमल करत सुभाय ।।
निंदक नियरे राखिए का अर्थ
- आपने अनुभव किया होगा कि अधिकतर लोगों को अपनी प्रशंसा बहुत अच्छी लगती है, जबकि अपनी आलोचना करने वालों को कोई पसंद नहीं करता। यों भी समाज में ऐसे लोग तो अक्सर मिल जाते हैं, जो मुँह पर तारीफ करते हैं और पीठ पीछे निंदा। मगर ऐसे लोग बड़ी मुश्किल से मिलते हैं, जो सामने ही हमारी आलोचना करें, हमारी कमियाँ बताएँ प्रायः हम ऐसे लोगों से मिलने से कतराते हैं, उन्हें पसंद नहीं करते।
- कबीर ने ऐसे आलोचकों से बचने की नहीं, बल्कि उनको अपने नज़दीक रखने की आवश्यकता पर बल दिया है। वे कहते हैं कि निंदक को तो आँगन में कुटी बनवाकर अपने पास ही रखना चाहिए, निंदा से हमें अपनी कमियों का पता चलता है और हम उन्हें दूर कर लेते हैं। इस प्रकार, साबुन और पानी के बिना ही वे हमारे स्वभाव को निर्मल बना देते हैं।
- अब ज़रा सोचिए कि आदमी अपना शरीर तो साबुन पानी से साफ़ कर लेता है, पर वह अपने व्यवहार, आदतों और स्वभाव की कमियों और बुराइयों से कैसे छुटकारा पाए ? आदमी को अपनी कमियाँ, कमजोरियाँ, बुराइयाँ खुद तो दिखती नहीं। दूसरे लोग आम तौर पर उसके सामने इनका उल्लेख नहीं करते। केवल आलोचक ही हैं, जिनसे हमें पता चलता है कि हममें कहाँ और क्या कमी है? तो फिर उनसे कतराएँ क्यों? क्यों न उनकी सुनें, जिससे हमें अपनी कमियों का पता चले और हम उनको दूर करने का प्रयास करें और अपने स्वभाव को निर्मल बनाएँ। इस दोहे में कबीर हमसे यही कहना चाहते
निंदक नियरे राखिए दोहे की व्याख्या
1. प्रस्तुत दोहे में निंदक से दूर रहने के प्रचलित रिवाज़ के विपरीत उससे लाभ उठाने का संदेश दिया गया है।
2. कविता में जहाँ पास-पास आने वाले शब्दों में एक ही वर्ण का बार-बार दुहराव ( आवृत्ति) हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। यहाँ 'निंदक नियरे' में 'न' वर्ण की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार है।
3. प्रस्तुत दोहे में 'आत्म-बोध' और 'विश्लेषणात्मक चिंतन' जैसे जीवन-कौशलों को उभारा गया है।