ऊँचे कुल का जनमिया दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या
ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँच न होइ ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदै सोइ ।।
दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या
कबीर कहते हैं कि अगर अच्छे घर-ख़ानदान में पैदा हुए व्यक्ति का व्यवहार और उसके कर्म अच्छे न हों, तो वह उसी प्रकार निंदा का पात्र होता है, जिस प्रकार शराब भरे सोने के कलश को सज्जन निंदनीय समझते हैं।
कहने का मतलब है कि जिस प्रकार सोने का घड़ा भी अपने अंदर शराब जैसी वस्तु भरी होने के कारण अपनी महत्ता खो देता है और बुराई का पात्र बनता है, उसी प्रकार अच्छे कुल या परिवार में जन्म लेने वाले व्यक्ति का आचरण अगर अच्छा न हो, तो वह भी लोगों की तारीफ़ का नहीं, बल्कि निंदा का पात्र बन जाता है।
इस दोहे में कवि ने बताया है कि आदमी की पहचान
उसके घर ख़ानदान से, उसके वर्ण और जाति से, उसके धनवान और निर्धन होने से नहीं, बल्कि उसके आचरण, उसके व्यवहार और चाल-चलन से होती है।
अच्छे कर्म करने वाले व्यक्ति की प्रशंसा की जाती है और बुरे कर्म करने वाले की
निंदा होती है।
टिप्पणी
1. मनुष्य के बारे में अपनी बात को अधिक स्पष्ट करने के लिए कबीर ने इस दोहे में सोने के कलश का उदाहरण दिया है। जब किसी बात को समझाने के लिए जीवन-जगत् के किसी दूसरे व्यवहार को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तो उसे दृष्टांत कहते हैं। अतः यहाँ दृष्टांत अलंकार का प्रयोग है।
2. मनुष्य
का तन सोने के घड़े जैसा है। ऐसा तन पाकर उसमें अच्छाई का विकास करने की जगह उसे
बुराइयों का घर बनाना किसी भी तरह प्रशंसा की बात नहीं हो सकती।
3. बहुत आसान तरीके से अच्छे कर्म करने की बात कही गई है।