राजा रंक फ़कीर दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या
आए हैं तो जायेंगे राजा रंक फ़कीर।
एक सिंघासन चढ़ चले एक बंधे जंजीर। ।
शब्द –
- राजा – महाराज ,
- रंक – गुलाम ,
- फ़क़ीर – घूम – घूमकर भक्ति करने वाला।
राजा रंक फ़कीर दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या
कबीरदास का नाम समाजसुधारकों में बड़े आदर के
साथ लिया जाता है। उन्होंने विभिन्न आडंबरों और कर्मकांडों को मिथ्या साबित किया।
उन्होंने स्पष्ट कहा है कि कर्म किया जाए। अर्थात अपने जन्म के उद्देश्य को पूरा
किया जाए , ना
कि विभिन्न आडंबरों और कर्मकांडों में फंसकर यहां का दुख भोगा जाए। वह कहते हैं कि
मृत्यु सत्य है चाहे राजा हो या फकीर हो या एक बंदीगृह का एक साधारण आदमी हो। मरना
अर्थात मृत्यु तो सभी के लिए समान है।
चाहे वह राजा हो या फकीर हो बस फर्क इतना है कि
एक सिंहासन पर बैठे हुए जाता है और एक भिक्षाटन करते हुए चाहे एक बंदीगृह में बंदी
बने बने।
अर्थात कबीर दास कहते हैं मृत्यु को सत्य मानकर अपने कर्म को सुधारते हुए अपना जीवन सफल बनाना चाहिए।