मन का मनका फेर दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या
Man ka Manka Fer Dohe ka Hindi Arth
माला फेरत जुग भया , फिरा न मन का फेर।
करका मनका डार दे , मन का मनका फेर। ।
निहित शब्द –
- माला – जाप करने का साधन ,
- फेरत – फेरना जाप करना ,
- जुग – युग ,
- करका – हाथ का ,
- मनका – माला ,
- डार – डाल ,फेंक देना ,
- मन का – मष्तिष्क का ,
- मनका – माला।
विशेष – अनुप्रास अलंकार ‘ म ‘ की आवृत्ति हो रही है।
मन का मनका फेर दोहे का हिन्दी अर्थ व्याख्या –
कबीरदास का नाम समाज सुधारकों में अग्रणी रूप
से लिया जाता है .वह धर्म में फैले कुरीति और अविश्वास अंधविश्वास को सिरे से
नकारते हुए कहते हैं। माला फेरने से कुछ नहीं होता, माला फेरते – फिरते युग बीत जाता है , फिर भी मन में वह सद्गति नहीं अभी जो
एक प्राणी में होना चाहिए। इसलिए वह कहते हैं कि यह सब मनके के मालाएं व्यर्थ है। इन सबको छोड़ देना चाहिए , यह सब मन का , मन का फेर है कि माला फेरने से मन की
शुद्धि होती है।
मन में सदविचार आते हैं और ईश्वर की प्राप्ति
होती है।
यह सब आडंबर है अपने हृदय को अपने मस्तिष्क को
स्वच्छ साफ और निश्चल रखिए ईश्वर की प्राप्ति अवश्य होगी और उसे ढूंढने के लिए
कहीं बाहर नहीं जाना , अपने अंदर स्वयं खोजना है।
ईश्वर अपने अंदर विराजमान है बस उसे ढूंढने की जरूरत है।