चाणक्य नीति संस्कृत हिन्दी अँग्रेजी: पन्द्रहवां अध्यायChanakya Niti in Sanskrit Hindi English 15th Chapter
चाणक्य नीति संस्कृत हिन्दी अँग्रेजी: पन्द्रहवां अध्याय
01
यस्य चितं द्रवीभूतं कृपया सर्वजन्तुषु ।
तस्य ज्ञानेन मोक्षेण किं जटाभस्मलेपनैः ।।१।।
वह
व्यक्ति जिसका ह्रदय हर प्राणी मात्र के प्रति करुणा से पिघलता है. उसे जरूरत क्या
है किसी ज्ञान की, मुक्ति की, सर के ऊपर जटाजूट रखने की और अपने
शारीर पर राख मलने की.
For one whose heart melts with compassion for all creatures;
what is the necessity of knowledge, liberation, matted hair on the head, and
smearing the body with ashes?
एकमेवाक्षरं यस्तु गुरुः शिष्यं प्रबोधयेत् ।
इस
दुनिया में वह खजाना नहीं है जो आपको आपके सद्गुरु ने ज्ञान का एक अक्षर दिया उसके
कर्ज़ से मुक्त कर सके.
There is no treasure on earth the gift of which will cancel the debt a disciple owes his guru for having taught him even a single letter (that leads to Krsna consciousness).
खलानां कण्टकानां च द्विविधैव प्रतिक्रिया ।
उपानद् मुखभङ्गो वा दूरतैव विसर्जनम् ।।३।।
काँटों से और दुष्ट लोगों से बचने के दो उपाय है. पैर में जूते पहने और
उन्हें इतना शर्मसार करो की वह अपना सर उठा ना सके और आपसे दूर रहे.
There are two ways to get rid of thorns and wicked persons;
using footwear in the first place and in the second shaming them so that they
cannot raise their faces again thus keeping them at a distance.
कुचैलिनं दन्तमलोपधारिणां बह्वाशिनंनिष्ठुरभाषिणां च ।
सूर्योदये वाऽस्तमिते शयानं विमुञ्चति श्रीर्यदि चक्रपाणिः ।।४।।
जो
अस्वच्छ कपड़े पहनता है. जिसके दात साफ़ नहीं. जो बहुत खाता है. जो कठोर शब्द
बोलता है. जो सूर्योदय के बाद उठता है. उसका कितना भी बड़ा व्यक्तित्व क्यों न हो, वह लक्ष्मी की कृपा से वंचित रह
जायेगा.
He who wears unclean garments, has dirty teeth, is a glutton,
speaks unkindly and sleeps after sunrise — although he may be the greatest
personality — will lose the favour of Lakshmi.
त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं दाराश्च भृत्याश्च सुहृज्जनाश्च ।
तं चार्थवन्तं पुनराश्रयन्ते ह्यर्थो हि लोके पुरुषस्य बन्धुः ।।५।।
जब
व्यक्ति दौलत खोता है तो उसके मित्र, पत्नी, नौकर, सम्बन्धी उसे छोड़कर चले जाते है. और जब वह दौलत वापस हासिल करता है
तो ये सब लौट आते है. इसीलिए दौलत ही सबसे अच्छा रिश्तेदार है.
He who loses his money is forsaken by his friends, his wife,
his servants and his relations; yet when he regains his riches those who have
forsaken him come back to him. Hence wealth is certainly the best of relations.
अन्यायोपार्जितं द्रव्यं दश वर्षाणि तिष्ठति ।
प्राप्ते एकादशे वर्षे समूलं च विनश्यति ।।६।।
पाप
से कमाया हुआ पैसा दस साल रह सकता है. ग्यारवे साल में वह लुप्त हो जाता है, उसकी मुद्दत के साथ.
Sinfully acquired wealth may remain for ten years; in the eleventh year it disappears with even the original stock.
अयुक्तं स्वामिनो युक्तं युक्तं नीचस्य दूषणम् ।
एक
महान आदमी जब कोई गलत काम करता है तो उसे कोई कुछ नहीं कहता. एक नीच आदमी जब कोई
अच्छा काम भी करता है तो उसका धिक्कार होता है. देखिये अमृत पीना तो अच्छा है
लेकिन राहू की मौत अमृत पीने से ही हुई. विष पीना नुकसानदायक है लेकिन भगवान शंकर
ने जब विष प्राशन किया तो विष उनके गले का अलंकार हो गया.
A bad action
committed by a great man is not censured (as there is none that can reproach
him), and a good action performed by a low-class man comes to be condemned
(because none respects him). Just see: the drinking of nectar is excellent, but
it became the cause of Rahu’s demise; and the drinking of poison is harmful,
but when Lord Shiva (who is exalted) drank it, it became an ornament to his
neck (nila-kantha).
08
तद्भोजनं यद् द्विजभुक्तशेषं
तत्सौहृदं यत्क्रियते परस्मिन् ।
सा प्राज्ञता या न करोति पापं
दम्भं विना यः क्रियते पापं
दम्भं विना यः क्रियते स धर्मः ।।८।।
एक
सच्चा भोजन वह है जो ब्राह्मण को देने के बाद शेष है. प्रेम वह सत्य है जो दूसरों
को दिया जाता है. खुद से जो प्रेम होता है वह नहीं. वही बुद्धिमत्ता है जो पाप
करने से रोकती है. वही दान है जो बिना दिखावे के किया जाता है.
A true meal is that which consists of the remnants left after
a brahmana’s meal. Love, which is shown to others, is true love, not that which
is cherished for one’s own self. To abstain from sin is true wisdom. That is an
act of charity, which is performed without ostentation.
09
मणिर्लुण्ठति पादाग्रे काचः शिरसि धार्यते ।
क्रय विक्रयवेलायां काचः काचो मणिर्मणिः ।।९।।
यदि
आदमी को परख नहीं है तो वह अनमोल रत्नों को तो पैर की धूल में पड़ा हुआ रखता है और
घास को सर पर धारण करता है. ऐसा करने से रत्नों का मूल्य कम नहीं होता और घास के
तिनकों की महत्ता नहीं बढ़ती. जब विवेक बुद्धि वाला आदमी आता है तो हर चीज को उसकी
जगह दिखाता है.
For want of discernment the most precious jewels lie in the
dust at the feet of men while bits of glass are worn on their heads. But we
should not imagine that the gems have sunk in value, and the bits of glass have
risen in importance. When a person of critical judgement shall appear, each
will be given its right position.
10
अनन्तंशास्त्रं बहुलाश्च विद्याः अल्पं च कालो बहुविघ्नता च ।
यत्सारभूतं तदुपासनीयं, हंसो यथा क्षीरमिवम्बुमध्यात् ।।१०।।
शास्त्रों का ज्ञान अगाध है. वह कलाएं अनंत जो हमें सीखनी चाहिये. हमारे
पास समय थोड़ा है. जो सीखने के मौक़े है उसमें अनेक विघ्न आते है. इसीलिए वही सीखे
जो अत्यंत महत्वपूर्ण है. उसी प्रकार जैसे हंस पानी छोड़कर उसमें मिला हुआ दूध पी
लेता है.
Sastric (scriptural) knowledge is unlimited, and the arts to
be learned are many; the time we have is short, and our opportunities to learn
are beset with obstacles. Therefore select for learning that which is most
important, just as the swan drinks only the milk in water.
दूरागतं पथि श्रान्तं वृथा च गृहमागतम् ।
वह
आदमी चंडाल है जो एक दूर से अचानक आये हुए थके माँदे अतिथि को आदर सत्कार दिए बिना
रात्रि का भोजन खुद खाता है.
He is a chandala who eats his dinner without entertaining the
stranger who has come to his house quite accidentally, having travelled from a
long distance and is wearied.
12
पठन्ति चतुरो वेदान् धर्मशास्त्राण्यनेकशः ।
आत्मानं नैव जानन्ति दवी पाकरसं यथा ।।१२।।
एक
व्यक्ति को चारों वेद और सभी धर्म शास्त्रों का ज्ञान है. लेकिन उसे यदि अपने
आत्मा की अनुभूति नहीं हुई तो वह उसी चमचे के समान है जिसने अनेक पकवानों को
हिलाया लेकिन किसी का स्वाद नहीं चखा.
One may know the four Vedas and the Dharma-sastras, yet if he
has no realisation of his own spiritual self, he can be said to be like the
ladle (spoon) which stirs all kinds of foods but knows not the taste of any.
13
धन्या द्विजमयि नौका विपरीता भवार्णवे ।
तरन्त्यधोगताः सर्वे उपरिस्थाः पतन्त्यधः ।।१३।।
वह
लोग धन्य है, ऊँचे उठे हुए है जिन्होंने संसार
समुद्र को पार करते हुए एक सच्चे ब्राह्मण की शरण ली. उनकी शरणागति ने नौका का काम
किया. वे ऐसे मुसाफ़िरों की तरह नहीं है जो ऐसे सामान्य जहाज पर सवार है जिसके
डूबने का खतरा है.
Those blessed souls are certainly elevated who, while
crossing the ocean of life, take shelter of a genuine brahmana, who is likened
unto a boat. They are unlike passengers aboard an ordinary ship that runs the
risk of sinking.
अयममृतनिधानं नायकोऽप्यौषधीनां ।
अमृतमयशरीरः कान्तियुक्तोऽपि चन्द्रः ।।
भवति विगतरश्मिर्मण्डलं प्राप्य भानोः ।
परसदननिविष्टः को लघुत्वं न याति ।।१४।।
चन्द्रमा जो अमृत से लबालब है और जो औषधियों की देवता माना जाता है, जो अमृत के समान अमर और दैदीप्यमान है.
उसका क्या हश्र होता है जब वह सूर्य के घर जाता है अर्थात दिन में दिखाई देता है.
तो क्या एक सामान्य आदमी दूसरे के घर जाकर लघुता को नहीं प्राप्त होगा.
The moon, who is the abode of nectar and the presiding deity of all medicines, although immortal like amrta and resplendent in form, loses the brilliance of his rays when he repairs to the abode of the sun (day time). Therefore, will not an ordinary man be made to feel inferior by going to live at the house of another?
अलिरयं नलिनीदलमध्यगः कमलिनीमकरन्दमदालसः ।
विधिवशात्परदेशमुपागतः कुटजपुष्परसं बहु मन्यते ।।१५।।
यह
मधु मक्खी जो कमल की नाजुक पँखुडियां में बैठ कर उसके मीठे मधु का पान करती थी, वह अब एक सामान्य कुटज के फूल पर अपना
ताव मारती है. क्यों की वह ऐसे देश में आ गयी है जहाँ कमल है ही नहीं, उसे कुटज के पराग ही अच्छे लगते है.
This humble bee, which always resides among the soft petals
of the lotus and drinks abundantly its sweet nectar, is now feasting on the
flower of the ordinary kutaja. Being in a strange country where the lotuses do
not exist, he is considering the pollen of the kutaja to be nice.
16
पीतः क्रुध्देन तातश्चरणतलहता वल्लभो येन रोषा-
दाबाल्याद्विप्रवर्यैः स्ववदनविवरे धार्यते वैरिणी में ।
गेहं मे छेदयन्ति प्रतिदिवसमुमाकान्तपूजानिमित्तं
तस्मात्खिन्नासदात्हंद्विजकुलनिलयं नाथ युक्तं त्यजामि ।।१६।।
हे
भगवान विष्णु, मेरे स्वामी, मैं ब्राह्मणों के घर में इस लिए नहीं
रहती क्यों की….. अगस्त्य ऋषि ने ग़ुस्से में समुद्र को
( जो मेरे पिता है) पी लिया. भृगु मुनि ने आपकी छाती पर लात मारी. ब्राह्मणों को पढ़ने
में बहुत आनंद आता है और वे मेरी जो स्पर्धक है उस सरस्वती की हरदम कृपा चाहते है.
और वे रोज कमल के फूल को जो मेरा निवास है जलाशय से निकलते है और भगवान शिव की
पूजा करते है.
(Lord Visnu asked His spouse Lakshmi why She did not care to
live in the house of a brahmana.She replied:) “O Lord a rishi named Agastya
drank up My father (the ocean) in anger; Brighu Muni kicked You; brahmanas
pride themselves on their learning having sought the favour of My competitor
Sarasvati; and lastly they pluck each day the lotus which is My abode, and
therewith worship Lord Shiva. Therefore, O Lord, I fear to dwell with a
brahmana”.
17
बंधनानि खलु सन्ति बहूनि प्रेमरज्जुकृतबन्धनमन्यत् ।
दारुभेदनिपुणोऽपिषण्डघ्निर्निष्क्रियोभवति पंकजकोशे ।।१७।।
दुनिया में बांधने के ऐसे अनेक तरीके है जिससे व्यक्ति को प्रभाव में लाया
जा सकता है और नियंत्रित किया जा सकता है. सबसे मजबूत बंधन प्रेम का है. इसका
उदाहरण वह मधु मक्खी है जो लकड़ी को छेड़ सकती है लेकिन फूल की पंखुडियो को छेदना
पसंद नहीं करती चाहे उसकी जान चली जाए.
There are many ways of binding by which one can be dominated
and controlled in this world, but the bond of affection is the strongest. For
example, take the case of the humble bee, which, although expert at piercing
hardened wood, becomes caught in the embrace of its beloved flowers (as the
petals close at dusk).
छिन्नोऽपि चंदनतरुर्न जहाति गन्धं
वृध्दोऽपि वारणपतिर्न जहाति लीलाम् ।
यंत्रार्पितो मधुरतां न जहाति चेक्षुः
क्षीणोऽपि न त्यजति शीलगुणान् कुलीनः ।।१८।।
चन्दन कट जाने पर भी अपनी महक नहीं छोड़ते. हाथी बूढ़ा होने पर भी अपनी लीला
नहीं छोड़ता. गन्ना निचोड़े जाने पर भी अपनी मिठास नहीं छोड़ता. उसी प्रकार ऊँचे
कुल में पैदा हुआ व्यक्ति अपने उन्नत गुणों को नहीं छोड़ता भले ही उसे कितनी भी
गरीबी में क्यों ना बसर करना पड़े.
Although sandalwood is cut, it does not forsake its natural
quality of fragrance; so also the elephant does not give up sportiveness though
he should grow old. The sugarcane does not cease to be sweet though squeezed in
a mill; so the man of noble extraction does not lose his lofty qualities, no
matter how pinched he is by poverty.
उर्व्यां कोऽपि महीधरो लघुतरो दोर्भ्यां धृतो लीलया
तेन त्वांदिवि भूतले च ससतं गोवर्धनी गीयसे ।
त्वां त्रैलोक्यधरं वहामि कुचयोरग्रेण तद् गण्यते
किंवा केशव भाषणेन बहुनापुण्यैर्यशो लभ्यते ।।१९।।
रुक्मिणी भगवान् से कहती हैं हे केशव! आपने एक छोटे से पहाड को दोनों हाथों से उठा लिया वह इसीलिये स्वर्ग और पृथ्वी दोनों लोकों में गोवर्धनधारी कहे जाने लगे। लेकिन तीनों लोकों को धारण करनेवाले आपको मैं अपने कुचों के अगले भाग से ही उठा लेती हूँ, फिर उसकी कोई गिनती ही नहीं होती। हे नाथ! बहुत कुछ कहने से कोई प्रयोजन नहीं, यही समझ लीजिए कि बडे पुण्य से यश प्राप्त होता है।