चाणक्य नीति संस्कृत हिन्दी अँग्रेजी: सोलहवां अध्याय | Chanakya Niti in Sanskrit Hindi English 16th Chapter - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

चाणक्य नीति संस्कृत हिन्दी अँग्रेजी: सोलहवां अध्याय | Chanakya Niti in Sanskrit Hindi English 16th Chapter

चाणक्य नीति संस्कृत हिन्दी अँग्रेजी: सोलहवां अध्याय
 Chanakya Niti in Sanskrit Hindi English 16th Chapter
चाणक्य नीति संस्कृत हिन्दी अँग्रेजी: सोलहवां अध्याय | Chanakya Niti in Sanskrit Hindi English 16th Chapter


 

चाणक्य नीति संस्कृत हिन्दी अँग्रेजी: सोलहवां अध्याय


01

   नध्यातं पदमीश्वरस्य विधिवत्संसारविच्छित्तये

    स्वर्गद्वारकृपाटपाटनपटुः धर्मोऽपि नोपार्जितः।

    नारीपीनपयोधरयुगलं स्वप्नेऽपि नार्लिगितं

    मातुः केवलमेव यौवनच्छेदकुठारो वयम्।।1।।


एक ऐसा मनुष्य जो न तो मोक्ष पाने के लिए ईश्वर का ध्यान करता है, न स्वर्ग पाने के लिए धर्म का संचय करता है और न कभी स्वप्न में भी स्त्री के स्तनों का आलिंगन कर सम्भोग करता है| ऐसा मनुष्य केवल जन्म लेकर अपनी माँ का योवन ही ख़राब करता है, ऐसे मनुष्य का जीवन व्यर्थ है.

 

The life of a person is complete scrap and waste who do not pray to the god to attain salvation, not perform a good deed to earn an entry into heaven, and one who has not even dreamt of enjoying a woman. Such a person is compared to an axe which destroyed the forest of his mother youth by taking birth from his bomb.

 

 

 02

जल्पन्ति सार्धमन्येन पश्यन्त्यन्यं सविभ्रमाः।

हृदये चिन्तयन्त्यन्यं न स्त्रीणामेकतो रतिः।।2।।


स्त्री (यहाँ लम्पट स्त्री या पुरुष अभिप्रेत है) का ह्रदय पूर्ण नहीं है वह बटा हुआ है. जब वह एक आदमी से बात करती है तो दूसरे की ओर वासना से देखती है और मन में तीसरे को चाहती है.

 

The heart of a woman is not united; it is divided. While she is talking with one man, she looks lustfully at another and thinks fondly of a third in her heart.

 


 03

यो मोहयन्मन्यते मूढो रत्तेयं मयि कामिनी।

स तस्य वशगो भूत्वा नृत्येत क्रीडा शकुन्तवत्।।3।।


मूर्ख को लगता है की वह हसीन लड़की उसे प्यार करती है. वह उसका गुलाम बन जाता है और उसके इशारों पर नाचता है.

 

The fool (mudha) who fancies that a charming young lady loves him, becomes her slave and he dances like a shakuntal bird tied to a string.

 

04

कोऽर्थान्प्राप्यन गर्वितो विषयिणः कस्यापदोऽस्तंगताः।

स्त्रीभिः कस्य न खण्डितं भुवि मनः को नाम राज्ञप्रियः।।

कः कालस्य न गोचरत्वमगमत् कोऽर्थों गतो गौरवम्।

को वा दुर्जनदुर्गुणेषु पतितः क्षेमेण यातः पथिः।।4।।

 

ऐसा यहाँ कौन है जिसमे दौलत पाने के बाद मस्ती नहीं आई. क्या कोई बेलगाम आदमी अपने संकटों पर रोक लगा पाया. इस दुनिया में किस आदमी को औरत ने कब्जे में नहीं किया. किस के ऊपर राजा की हरदम मेहरबानी रही. किस के ऊपर समय के प्रकोप नहीं हुए. किस भिखारी को यहाँ शोहरत मिली. किस आदमी ने दुष्ट के दुर्गुण पाकर सुख को प्राप्त किया.

 

Who is there who, having become rich, has not become proud? What licentious man has put an end to his calamities? What man in this world has not been overcome by a woman? Who is always loved by the king? Who is there who has not been overcome by the ravages of time? What beggar has attained glory? Who has become happy by contracting the vices of the wicked? 


 05

न निर्मिता केन न दृष्टपूर्वा न श्रूयते हेममयी कुरंगी।।

तथाऽपि तृष्णा रघुनन्दनस्य विनाशकाले विपरीतबुद्धिः।।5।।


जब मनुष्य का बुरा समय आने से पहले, उसकी बुद्धि उसका साथ छोड़ देती है| इसको सिद्ध करने के लिए वह एक उदहारण देते हैं. सोने का हिरन कभी होता नहीं है और न ही किसी ने कभी सुना, लेकिन तब भी भगवान् राम सोने के हिरन को पकड़ने के लिए चले गए| क्योंकि वक्त बुरा आने वाला था और बुद्धि ने साथ देना छोड़ दिया|

 

the wisdom of a man deserts before the arrival of a bad time. Acharya illustrates, there are no golden dear spices in this world. Even if, Bhagwan Ram saw it and rush to catch him because hard time is about to come.

 

06

 न निर्मिता केन न दृष्टपूर्वा न श्रूयते हेममयी कुरंगी।।

तथाऽपि तृष्णा रघुनन्दनस्य विनाशकाले विपरीतबुद्धिः।।6।।


व्यक्ति को महत्ता उसके गुण प्रदान करते है वह जिन पदों पर काम करता है सिर्फ उससे कुछ नहीं होता. क्या आप एक कौवे को गरुड कहेंगे यदि वह एक ऊंची इमारत के छत पर जाकर बैठता है.

 

A man attains greatness by his merits, not simply by occupying an exalted seat. Can we call a crow an eagle (garuda) simply because he sits on the top of a tall building.

 


 07

गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते न महत्योऽपि सम्पदः।

पूर्णेन्दु किं तथा वन्यो निष्कलंको यथा कुशः।।7।।


गुणों की ही सर्वत्र पूजा होती है, गुणी व्यक्ति का ही सभी सम्मान करते हैं चाहे उसके पास धन कम हो| चाणक्य कहते हैं, पूर्णिमा का चन्द्रमा पूर्ण होता है, सबसे ज्यादा रोशनी देता है, लेकिन उसकी कोई पूजा नहीं करता क्योंकि उसमें दाग होता है| लेकिन दूज के चन्द्रमा की सभी पूजा करते हैं क्योंकि उसमें कोई दाग नहीं होता|

 

a Man with good quality and virtue respected in society even if with less money. the full moon is not worshiped even if it emits good light and look beautiful because it has stains. But Moon of Douj is worshiped because it is clear and show no stains at all. 


 08

परमोक्तगुणो यस्तु निर्गुणोऽपि गुणी भवेत्।

इन्द्रोऽपि लघुतां याति स्वयं प्रख्यापितैर्गुणैः।।8।।


जो व्यक्ति गुणों से रहित है लेकिन जिसकी लोग सराहना करते है वह दुनिया में काबिल माना जा सकता है. लेकिन जो आदमी खुद की ही डींगें हाँकता है वह अपने आप को दूसरे की नज़रों में गिराता है भले ही वह स्वर्ग का राजा इंद्र हो.

 

The man who is praised by others as great is regarded as worthy though he may be really void of all merit. But the man who sings his own praises lowers himself in the estimation of others though he should be Indra (the possessor of all excellences).

 


 09

 

परमोक्तगुणो यस्तु निर्गुणोऽपि गुणी भवेत्।

इन्द्रोऽपि लघुतां याति स्वयं प्रख्यापितैर्गुणैः।।9।।


यदि एक विवेक संपन्न व्यक्ति अच्छे गुणों का परिचय देता है तो उसके गुणों की आभा को रत्न जैसी मान्यता मिलती है. एक ऐसा रत्न जो प्रज्वलित है और सोने के अलंकार में मढने पर और चमकता है.

 

If good qualities should characterise a man of discrimination, the brilliance of his qualities will be recognised just as a gem, which is essentially bright, really shines when fixed in an ornament of gold.


 10

गुणं सर्वत्र तुल्योऽपि सीदत्येको निराश्रयः।

अनर्थ्यमपि माणिक्यं हे माश्रयमपेक्षते।।10।।


वह व्यक्ति जो सर्व गुण संपन्न है अपने आप को सिद्ध नहीं कर सकता है जब तक उसे समुचित संरक्षण नहीं मिल जाता. उसी प्रकार जैसे एक मणि तब तक नहीं निखरता जब तक उसे आभूषण में सजाया ना जाए.

 

Even one who by his qualities appears to be all knowing suffers without patronage; the gem, though precious, requires a gold setting. 


 11

अतिक्लेशेन ये चार्थाः धर्मस्यातिक्रमेण तु।

शत्रुणां प्रणिपातेन ते ह्यर्थाः न भवन्तु मे।।11।।


मुझे वह दौलत नहीं चाहिए जिसके लिए कठोर यातना सहनी पड़े, या सदाचार का त्याग करना पड़े या अपने शत्रु की चापलूसी करनी पड़े.

 

I do not deserve that wealth which is to be attained by enduring much suffering, or by transgressing the rules of virtue, or by flattering an enemy.

 


 12

किं तया क्रियते लक्ष्म्या या वधूरिव केवला।

या तु वेश्यैव सामान्यपथिकैरपि भुज्यते।।12।।


एक घर में बंद वधु (बहु) के समान घर की तिजोरी में रखा हुआ धन कभी किसी काम का नहीं है, उसी प्रकार एक मुर्ख व्यक्ति का धन भी दुष्ट और पापी लोग ही उपयोग करते हैं उसका भी कोई समाज में सही प्रयोग नहीं होता है, ऐसा धन भी व्यर्थ है|

 

money locked in safe, is of no use. similarly, the wealth of a foolish man is used by crooked and wicked, society is not benefited by it. 


13

धनेषु जीवितव्येषु स्त्रीषु चाहारकर्मषु।

अतृप्ता प्राणिनः सर्वे याता यास्यन्ति यान्ति च।।13।।


जो अपनी दौलत, पकवान और औरते भोग कर संतुष्ट नहीं हुए ऐसे बहुत लोग पहले मर चुके है. अभी भी मर रहे है और भविष्य में भी मरेंगे.

 

Those who were not satiated with the enjoyment of wealth, food and women have all passed away; there are others now passing away who have likewise remained unsatiated; and in the future still others will pass away feeling themselves unsatiated.

 


14

क्षीयन्ते सर्वदानानि यज्ञहोमबलि क्रियाः।

न क्षीयते पात्रदानं भयं सर्वदेहिनाम्।।14।।

 

सभी परोपकार और तप तात्कालिक लाभ देते है. लेकिन सुपात्र को जो दान दिया जाता है और सभी जीव को जो संरक्षण प्रदान किया जाता है उसका पुण्य कभी नष्ट नहीं होता.

 

All charities and sacrifices (performed for fruitive gain) bring only temporary results, but gifts made to deserving persons and protection offered to all creatures shall never perish.

 

15

तृणं लघु तृणात्तूलं तूलादपि च याचकः।

वायुना किं न जीतोऽसौ मामयं याचयिष्यति।।15।।

 

घास का तिनका हल्का है. कपास उससे भी हल्का है. भिखारी तो अनंत गुना हल्का है. फिर हवा का झोंका उसे उड़ा के क्यों नहीं ले जाता. क्योंकि वह डरता है कही वह भीख न मांग ले.

 

A blade of grass is light, cotton is lighter, and the beggar is infinitely lighter still. Why then does not the wind carry him away? Because it fears that he may ask alms of him.

 

16

वरं वनं व्याघ्रजेन्द्रसेवितंद्रुमालयं पक्वाफलाम्बुसेवनं।

तृणेषु शय्या शतजीर्णवल्कलंन बन्धुमध्ये धनहीन जीवनम्।।16।।

 

बेइज्जत होकर जीने से अच्छा है की मर जाए. मरने में एक क्षण का दुःख होता है पर बेइज्जत होकर जीने में हर रोज दुःख उठाना पड़ता है.

 

It is better to die than to preserve this life by incurring disgrace. The loss of life causes but a moment’s grief, but disgrace brings grief every day of one’s life.

 


 17

प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति मानवाः।

तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।17।।


सभी जीव मीठे वचनों से आनंदित होते है. इसीलिए हम सबसे मीठे वचन कहे. मीठे वचन की कोई कमी नहीं है.

 

All the creatures are pleased by loving words; and therefore we should address words that are pleasing to all, for there is no lack of sweet words.

 


18

संसार कटु वृक्षस्य द्वे फले ह्यमृतोपमे।

सुभाषितं च सुस्वादुः संगति सज्जने जने।।18।।

 

 इस दुनिया के वृक्ष को दो मीठे फल लगे है. मधुर वचन और सत्संग.

 

There are two nectarine fruits hanging from the tree of this world: one is the hearing of sweet words (such as Krsna-katha) and the other, the society of saintly men.

 

19

जन्मजन्मनि चाभ्यस्तं दानमध्ययनं तपः।

तेनैवाभ्यासयोगेन देही वाऽभ्यस्यते।।19।।

 

पिछले जन्मों की अच्छी आदतें जैसे दान, विद्यार्जन और तप इस जनम में भी चलती रहती है. क्योंकि सभी जनम एक श्रृंखला से जुड़े है.

 

The good habits of charity, learning and austerity practised during many past lives continue to be cultivated in this birth by virtue of the link (yoga) of this present life to the previous ones. 


 20

पुस्तकेषु च या विद्या परहस्तेषु च यद्धनम्।

उत्पन्नेषु च कार्येषु न सा विद्या न तद्धनम्।।20।।


जिसका ज्ञान किताबों में सिमट गया है और जिसने अपनी दौलत दूसरों के सुपुर्द कर दी है वह जरूरत आने पर ज्ञान या दौलत कुछ भी इस्तेमाल नहीं कर सकता.

 

One whose knowledge is confined to books and whose wealth is in the possession of others, can use neither his knowledge nor wealth when the need for them arises.