तिनका कबहुं ना निंदिए दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या | Tinka Kabahu na nidiye Dohe ka arth - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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शनिवार, 16 अक्तूबर 2021

तिनका कबहुं ना निंदिए दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या | Tinka Kabahu na nidiye Dohe ka arth

 तिनका कबहुं ना निंदिए दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या 

तिनका कबहुं ना निंदिए दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या | Tinka Kabahu na nidiye Dohe ka arth



तिनका कबहुं ना निंदिए , जो पाँवन तर होय। 

कबहुं उड़ी आंखिन पड़े , तो पीर घनेरी होय। । 

 

 

निहित शब्द 

कबहुँ -कभी ,

निंदिए निंन्दा

आँखिन आँख ,  

पीर दर्द 

घनेरी अधिक।

 

 तिनका कबहुं ना निंदिए दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या 


कबीर कहना चाहते हैं कि किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए। चाहे एक तिनका भी हो चाहे एक कण भी हो किसी भी प्रकार की निंदा से बचना चाहिए। क्या पता वह हवा के झोंके से उड़ कर कब आंख में पड़ जाए तो दर्द असहनीय होगी इसलिए परनिंदा नहीं करना चाहिए। एक छोटे से छोटा प्राणी व व्यक्ति के महत्त्व को स्वीकारना चाहिए वह भी समय पर आपके काम आ सकता है।

 

या समय पर आपकी पीड़ा का कारण बन सकता है इसलिए किसी की निंन्दा से बचना चाहिए।