महाराणा अधीन मेवाड विकास एवं संघर्ष।महाराणा कुम्भा की जानकारी। Mahrana Ke Adhin Mevar Vikash - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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बुधवार, 1 दिसंबर 2021

महाराणा अधीन मेवाड विकास एवं संघर्ष।महाराणा कुम्भा की जानकारी। Mahrana Ke Adhin Mevar Vikash

 महाराणा अधीन मेवाड विकास एवं संघर्ष।महाराणा कुम्भा की जानकारी

महाराणा अधीन मेवाड विकास एवं संघर्ष।महाराणा कुम्भा की जानकारी। Mahrana Ke Adhin Mevar Vikash



महाराणा अधीन मेवाड विकास एवं संघर्ष  

  • रावल रतन सिंह की चित्तौड़ युद्ध में मृत्यूपरान्त चित्तौड़ पर 1314 ई. तक सुलान अलाउद्दीन के शासन में उसका पुत्र खिज्र खां प्रान्तपति रहा था। किन्तु मेवाड के सामन्तों की विद्रोहालक कार्यवाहियो के कारण जालोर के सोनगरा मालदेव को खिज खां के स्थान पर मेवाड़ का प्रान्तपति बनाया गया । उसने 1322 ई. तक उसके पुत्र जयसिंह ने 1325 ई. तक तथा उसकी मृत्यूपरान्त मालदेव का तीसरा पुत्र रणवीर प्रान्तपति रहा था। इसने 1336 ई. तक शासन किया। 

  • किन्तु इसी वर्ष मेवाड़ के गुहिल वंश की एक शाखा सीसोदा के हमीर ने चित्तौड़ पर पुनः अधिकार कर मेवाडू पर सल्तनत के शासन को मिटा दियासीसोदा गाँव (जिला राजसमन्द) के सामन्त राणा कहलाते थे। 
  • अतः अब से रावल की जगह मेवाड़ के शासकों का नाम महाराणा हो गया। 

  • महाराणा हमीर ने सिंहासन पर बैठने के बाद मेवाड का क्षेत्र विस्तार करना आरम्भ किया। उसने परमारों, राठौडों को परास्त किया तथा वनवासी जाति के लोगों के साथ मित्रवत् नीति का प्रचलन करते हुए राज्य को स्थायित्व भी प्रदान किया। 
  • 1364 ई. में हमीर का पुत्र क्षेत्रसिंह गद्दी पर बैठा। जिसने हाडौती, गुजरात, ईडर, मालवा तथा उत्तरी मेवाड़ की उपद्रवी मेर जाति पर विजय प्राप्त की 

  • 1405 ई. में उसका पुत्र लक्ष सिंह (लाखा) गद्दी पर बैठा । उसने भी अपने पिता की नीति का पालन करते हुए मेवाड को शक्तिशाली बनाया इसके समय में ही मेवाड़ में जावर की चांदी की खान निकली थी। 
  • महाराणा लाखा का उत्तराधिकारी अल्पवयस्क महाराणा मोकल 1415 ई. के लगभग गद्दी पर बैठा। उसके काल में मण्डोर के राठौडों का प्रभाव मेवाड में बढ़ने, उसके बड़े भाई चुणडा का मालवा चले जाने मालवा, नागौर व गुजरात के शासकों के आक्रमण आदि की विषम परिस्थिति में मेवाड निर्बल हुआ।
  • ऐसे में ही मोकल की हत्या ने मेवाड के प्रभुत्व एवं प्रभाव पर गहरा आघात किया। परन्तु उसके पुत्र राणा कुम्भा ने परिस्थितियों को सम्भाल लिया । तब मेवाड का वैभव उत्कर्ष की सीमा पर पहुँच गया। 
  • महाराणा सांगा ने भी इस संदर्भ में प्रयास अवश्य किया और मेवाड की सीमाएँ काफी विस्तृत हो गई थी परंतु सांगा के समय प्रारंभ हुआ मुगल प्रतिरोध प्रताप के समय तक काफी बढ़ गया था। प्रताप अपनी स्वतन्त्रता के लिए आजीवन संघर्षरत अवश्य रहा किन्तु मेवाड गरिमा में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं आने दी ।

 

महाराणा कुम्भा के बारे में जानकारी 

 

  • महाराणा कुम्भा का जन्म 1403 ई. में हुआ था। उसकी माता परमारवंशीय राजकुमारी सौभाग्य देवी थी । 
  • अपने पिता मोकल की हत्या के बाद कुंभा 1433 ई. में मेवाड़ के राजसिंहासन पर बैठा ।

  • तब मेवाड़ में प्रतिकूल परिस्थितियाँ थीं, जिनका प्रभाव कुंभा की विदेश नीति पर पडना स्वाभाविक था । ऐसे समय में युद्ध की प्रतिधीन गूंजती दिखाई दे रही थी। 
  • महाराणा कुम्भा के पिता के हत्यारे चाचा मेरा (महाराणा खेता की उप-पत्नी के पुत्र) व उनका समर्थक महपा पंवार स्वतंत्र थे और विद्रोह का झंडा खड़ा कर चुनौती दे रहे थे ।
  • मेवाड दरबार भी सिसोदिया व राठौड़ दो गुटों में बंटा हुआ था। कुंभा के छोटे भाई खेमा की महत्वाकांक्षा मेवाड़ राज्य प्राप्त करने की थी और इसकी पूर्ति के लिये वह मांडू पहुँच कर वहाँ के सुल्तान की सहायता प्राप्त करने के प्रयास में लगा हुआ था। उधर फिरोज तुगलक के बाद दिल्ली सल्तनत कमजोर हो गई और 1398 ई. में तैमूरी आक्रमण से केन्द्रीय शक्ति पूर्ण रूप से छिन्न-भिन्न हो गई थी । दिल्ली के तख्त पर कमजोर सैययद आसीन थे जिससे विरोधी तल सक्रिय हो गए थे । फलतः दूरवर्ती प्रदेश जिनमें जौनपुर, मालवा, गुजरात, ग्वालियर व नागौर आदि स्वतंत्र होकर, शक्ति एवं साम्राज्य प्रसार में जुट गये थे ।

 

  • उपर्युक्त वातावरण को अनुकूल बनाने के लिए कुंभा ने अपना ध्यान सर्वप्रथम आंतरिक समस्याओं के समाधान की ओर केन्द्रित किया। अपने पिता के हत्यारों को सजी देनी चाही जिसमें उसे मारवाड के रणमल राठौड़ की तरफ से पूर्ण सहयोग मिला। परिणामस्वरूप चाचा व मेरा की मृत्यु हो गई । 
  • चाचा के लड़के एक्का तथा महपा पँवार को मेवाड छोड़कर मालवा के सुल्तान के यहीं शरण लेनी पड़ी। योँ कुंभा ने अपने प्रतिद्वंदियों से मुक्त होकर सीमांत सुरक्षा की ओर ध्यान आकर्षित किया । वह मेवाड़ से अलग हुए क्षेत्रों को पुनः अपने अधीन करना चाहता था । अतः उसने विजय अभियान शुरू किया ।