टंट्या भील कौन था (इतिहास) और वीरता की कहानी
टंट्या भील कौन था (इतिहास) और वीरता की कहानी
सन् 1857 में भारत के
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी वीरों एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों
में मध्यप्रदेश के जनजातीय समाज के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी टंट्या भील का
नाम बड़े सम्मान एवं आदर के साथ लिया जाता है। जनजातीय समाज के इस महान स्वतंत्रता
संग्राम सेनानी को भारत का रॉबिनहुड भी कहा जाता है। दिलचस्प पहलू यह है कि टंट्या
भील की वीरता, साहस और अप्रतिम
स्वतंत्रता भाव से संकट में आये अंग्रेजी शासन के नुमाइंदों ने ही जननायक टंट्या
भील को "भारतीय रॉबिनहुड" की उपाधि दी थी।
टंट्या भील कौन था (इतिहास)
- टंट्या भील का जन्म सन् 1840 में तत्कालीन मध्य प्रांत के पूर्वी निमाड़ (खंडवा जिले) की पंधाना तहसील के बडदाअहीर गाँव में श्री भाऊसिंह भील के घर पर हुआ था। कहीं-कहीं पर सन् 1842 में इनके जन्म का उल्लेख भी मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि टंट्या के पिता ने बचपन में नवगजा पीर की दहलीज पर अपनी पत्नी की कसम लेकर कहा था कि उनका बेटा भील जाति की बहन, बेटियों और बहुओं के अपमान का बदला अवश्य लेगा। नवगजा पीर मुसलमानों के साथ-साथ भीलों के भी देवता थे।
टंट्या भील का वास्तविक नाम तॉतिया
- टंट्या भील का वास्तविक नाम तॉतिया था। उन्हें प्यार से टंट्या मामा के नाम से भी बुलाया जाता था। उन्हें सभी आयु वर्ग के लोगों द्वारा आदरपूर्वक "मामा" कहा जाता था। उनका "मामा" नाम का यह संबोधन इतना लोकप्रिय हुआ कि भील जनजाति के लोग आज भी उन्हें “मामा' कहने पर गर्व महसूस करते हैं। टंट्या भील बचपन से साहसी एवं होशियार थे। वह एक महान निशानेबाज और पारंपरिक तीरंदाजी में दक्ष होने के साथ ही गुरिल्ला युद्ध में अत्यंत निपुण थे। उनको बंदूक चलाना भी आता था। टंट्या भील अदम्य साहस असाधारण चपलता, अद्भुत कौशल के धनी माने जाते थे।
टंट्या भील और 1857 की क्रांति
- सन् 1857 के समय तक सम्पूर्ण भारत सहित मध्यप्रदेश विशेषकर पूर्वी एवं पश्चिमी निमाड़ तथा मालवा क्षेत्र अंग्रेजों के अत्याचार से त्रस्त हो चुका था। मालवा और निमाड़ क्षेत्रों में अंग्रेजों का शासन स्थापित होने से वे आये दिन नागरिकों पर अत्याचार और जुल्म ढाने लगे और सम्पूर्ण जनजातीय समाज, विशेषकर भील भिलाला लोगों, पर अत्यधिक दमनपूर्ण प्रताड़ित करने लगे। ऐसे समय में ही निमाड़ क्षेत्र में ही एक महान भील (यौद्धा) क्रांतिकारी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जननायक टंट्या भील का उदय हुआ।
टंट्या ने बहुत
ही कम उम्र में अंग्रेजों के आतंक का सामना किया तथा अपने वीरता पूर्वक कारनामों
से अंग्रेजों के छक्के छुड़ाकर भील, भिलाला एवं क्षेत्रीय लोगों के मसीहा बन गये। मध्यप्रदेश के
जनजातीय समाज के गौरव एवं महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी टंट्या भील की वीरता की
कहानी को स्थानीय लोगों ने अपनी बोली में "गीतों" में भी पिरोया। उन्हीं
में से कुछ गीत इस प्रकार हैं:-
टंट्या भील की वीरता की कहानी
गीत न० – 01
धुँआ-धुँआ था
धुँआ-धुँआ था,
उस धुँए में न था
कोई भान।
उस धुंध में शोषण
की मौन,
जल रहा था
हिन्दुस्तान।।
गूंजी थी आवाज
यहाँ पर,
गूंजा
हिन्दुस्तान।
चुप्पी में
सन्नाटे की मौन,
जल रहा था एक
तूफान।।
धुंआ-धुँआ
था.........
अर्थात :- जब
टंट्या का उदय हुआ था, उस समय अंग्रेजों
के अत्याचार की धुंध छाई हुई थी। अंग्रेजों के आतंक से मालवा निमाड़ में चारों ओर
हा हा कार मचा हुआ था।
गीत न० – 02
धिनकी धिना धिना ना....2
बिजली चमके, बदरा गाये।
घनघोर घटा, झूमें छावे।।
अंधड़ घूमड, नाच नचावे।
नर्मदा मईया
झकोला खावे।।
घेरा करके, जमके नाचे गावे।
खुशियाँ यहाँ
मिलके मनावे, हाँ मनावे।
धिनकी धिना धिना
ना...2
अर्थात:- उस समय
बरसात का मौसम था। चारों ओर बिजली चमक रही थी। घने बादल छाए हुए थे। तेज हवा चल
रही थी। नर्मदा माँ उफान पर थी, उसमें बाढ़ आई हुई थी। ऐसे में निमाड़ (मध्यप्रदेश) के
आदिवासी, स्वतंत्रता
संग्राम सेनानी, जनयोद्धा और
क्रांतिकारी टंट्या के रूप में अंग्रेजों के मुकाबले में योग्य नेतृत्व मिलने पर
नाच-गान के रूप में काफी खुशियों मनाते हैं।
गीत न० - 03
टंट्या, टंट्या, टंट्या, टंट्या-2
वारे मरदों में
मरद झंझार टंट्या-2
टंट्या, टंट्या.........
कांधे टाँगे डाब
तीखो धारदार टंट्या-2
भाई-बहनों की लाज
रखवार टंट्या-2
टंट्या, टंट्या..........
सुन्ये बहिना की
पुकार इस पार, उस पार - 2
पलका मूंदा दौड़ा
आवे बार-बार टंट्या
टंट्या, टंट्या...........
अर्थात्:- निमाड़
के सभी लोगों के अंग्रेजों से त्रस्त होने के कारण जब क्रांतिकारी के रूप में
टंट्या भील का उदय हुआ तो सभी लोग उनकी एक देवता के रूप में जय-जयकार करने लगे।
लोग उन्हें वीर टंट्या, कांधे पर तीर
कमान रखने वाला टंट्या, भाई-बहनों की लाज
बचाने वाला टंट्या, एवं अंग्रेजों के
अत्याचार से मुक्त कराने वाले टंट्या का देवता के रूप में गुणगान करते हैं।
गीत न० – 04
टंट्या, टंट्या, टटया, टंट्या-2
थाना चौकी फूँक
डारे,
जुल्मी सीपड़ा का
मारे-2
कहीं जूता कहीं
हंटर की मार टंट्या
टंट्या, टटया-2
सूद खोरों का
डरावे, खाता खूतड़ा
जलावे-2
नंगा भूका को दे
रोटी का आधार टंट्या-2
टंट्या, टंट्या, टंट्या, टंट्या-2
अर्थात्:- ऐसे
समय में जब मालवा और निमाड़ में अंग्रेजों के साथ ही अंग्रेजों के चाटुकार, सेठ, साहूकारों और
पटेलों ने उत्पात मचा रखा था, तो ऐसे में टंट्या जुर्म करने वाले सिपाही को मार लगाता।
जरुरत पड़ने पर टुकड़ी के रूप में क्रांतिकारी भीलों एवं क्षेत्रीय लोगों के साथ
मिलकर थाना, चौकी में भी आग
लगा देता एवं जूता एवं हंटर की मार भी लगाता। अंग्रेजों से जुड़े सूदखोरों को
डराता एवं उनके खाते बही भी जला देता। उनसे प्राप्त धन से गरीब लोगों को भोजन एवं
रोटी आदि की सहायता प्रदान करता। इस प्रकार से टंट्या का गुणगान सभी लोग करते हैं।
गीत न० – 05
पीर है और पीरों
में आला है तू।
काली रातों में
दिन का उजाला है तू।।
नवगजा पीर सुन
बेबसों की सदा।
तुझसे फरियाद
करते हैं हम गमजदा।
हे सफीना भँवर
में बचा आ बचा।
नाखुदा, नाखुदा, नाखुदा, नाखुदा।।
भूख है और खाने
को खाना नहीं।
हम गरीबों को कोई
ठिकाना नहीं।।
हाथ उठते नहीं, पाँव बढ़ते नहीं 2
जिस्म बेजान है, रुह बेजार है।
सेठ छीने कहीं, लूटे अफसर कहीं।।
जोर का, जब्र का गर्म
बाजार है-2
नवगजा पीर.......
अर्थात :- निमाड़
के एवं मालवा क्षेत्र के लोग टंट्या को एक भगवान के रूप में मानने लगे। कभी उनको
पीर बाबा के रूप में तो कभी उन्हें काली रात में दिन के उजाले देने वाले सूर्य के
रूप में मानते हुए बेबसों की फरियाद सुनने वाले देवता के रूप में याद करते वे
टंट्या से फरियाद करते कि हम लोग भूखे हैं और खाने को दाना भी नहीं है। अंग्रेजों
के अत्याचार के कारण हम गरीबों का ठिकाना भी नहीं है। अत्याचार सहते-सहते अब तो
हाथ-पैर भी नहीं उठते। स्थिति यह है कि कहीं सेठ, साहूकार, जबर्दस्ती करता हैं तो कहीं अफसर लूट-पाट करता है।
अंग्रेजों के राज में जोर-जबर्दस्ती का बाजार गर्म है। ऐसे में पीर बाबा, देवता के रूप में
टंट्या ही हमारा सहारा है।
कव्वाली - 06
नवगजा पीर तुझको
तेरी आन है।
इस जमीं में
हमारा तू भगवान है।।
अपना जलवा दिखा, अपना जलवा दिखा।
सुन हमारी सदा, सुन हमारी सदा।।
नवगजा पीर सुन
बेबसों की सदा।
तुझसे फरियाद
करते हम गमजदा।।
और विपदा बढ़ी कि
अकाल आ पड़ा-2
अबके बादल जो
रुठे तो आये नहीं।
नदी-नालों ने भी
मुँह दिखाए नहीं।।
खेत सूखे हैं, उजड़े हैं, वीरान है।
दाने-दाने को
मोहताज खलियान है।
नवगजा पीर सुन
बेबसों की सदा।
तुझसे फरियाद
करते हम गमजदा।।
नवगजा पीर......
व्याख्या: अंग्रेजों
के अत्याचार से त्रस्त लोग टंट्या से फरियाद करते हैं कि तू ही हमारा भगवान है। तू
ही हमारी विपदा को दूर करने वाला है। अंग्रेजों के अत्याचार के साथ ही खेत खलियान
उजड़े पड़े हुए हैं एवं हम लोग दाने-दाने को मोहताज हैं। चौपाल एवं जगह-जगह पर
एकत्रित होकर लोग बेबसों की रक्षा के लिए फरियाद करते हैं।
गीत न० – 07
जागो जंगल वासी
जागो, भील भिलाड़ा जागो
रे।
खींचों तीर कमान
हाथ में, धरो कुल्हाड़ो
जागो रे।।
जागो जंगल
वासी..........
खेत हमारा, जंगल, नदी, नाला, नहर, पहाड़ा रे।
इनमां दखल करे जो
कोई, उनको मार पछाड़ा
रे।।
जागो जंगल
वासी..........
केसर खाये गधा
विदेशी, भूखा मरे किसान।
मरनो है तो मरो
मार के, ठानों यही आन।।
जागो जंगल
वासी..........
गोरा मुँह काला
हो जाये, ऐसा करो जुगाड़ा
रे।
जागो जंगल वासी
जागो, भील भिलाड़ा जागो
रे ।।
जागो जंगल
वासी..........
अर्थात् :-
टंट्या की वीरता देखकर सभी लोगों में विशेषकर भील/ जनजातियों में काफी जनचेतना
जागृत हो चुकी थी। वे एक दूसरे को तीर कमान, कुल्हाड़ी आदि से अंग्रेजों पर हमला करने के लिए प्रेरित
करते तथा कहते कि जंगल, खेत, नाले, नहर, आदि सम्पत्ति हम
स्थानीय लोगों की ही है। इनमें दखल करने वालों को पछाड़-पछाड़ कर मारना चाहिए। यह
कैसे हो सकता है कि हम लोग भूखे मरें और अंग्रेज हमारी सम्पत्ति पर मज़ा करे। इस
प्रकार से सम्पूर्ण भील जनजातियों में चेतना का संचार करने लगते हैं।
गीत न० – 08
हे..........
हे.......... हे.......... हे........2
अमन ज्वाल जंजीरा
बांधे, उसी कोन में तान।
जले सलाखां जेहल
की, जो दम लहू बने
तेजाब ।।
हे..........
हे.......... हे.......... हे........2
हाड़ मांस का तन
नी टंट्या, भैरों जी को
श्वान।
भुस-भुस गरजे काल
कोठरी, जद गरज्यो तूफान
।।
हे..........
हे.......... हे.......... हे........2
तोड़ी ताड़ जेल
सलाखां, फांदी गयो दीवार
।
भरी छलंगा उड़यो
हवा में, भैरों का औतार ।।
हे..........
हे.......... हे.......... हे........2
अर्थात:- निमाड़
एवं मालवा क्षेत्र के लोग टंट्या को भैरों बाबा के अवतार के रूप में मानने लगे और
तूफान समान आक्रमण करने वाले तेजाब रूपी लहू से बने बहुत ही मजबूत, ताकतवर इंसान के
रूप में मान्यता देने लगते हैं।
इस प्रकार से
टंट्या नाम का साधारण व्यक्ति अप्रतिम देशप्रेम, अद्भुत पराक्रम और शक्तिशाली अंग्रेजों के
विरूद्ध संघर्ष से जनजातीय जननायक टंट्या के रूप में भील, भिलाला एवं
क्षेत्रीय लोगों का मसीहा बन गया और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में
हमेशा-हमेशा के लिये अमर हो गया। निमाड़ का यह जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
जनयोद्धा टंट्या भील एक तरफ गरीब एवं शोषितों के साथी के रूप में लोगों का सहारा
था, वहीं दूसरी ओर
शोषकों को छका देने वाला क्रांतिकारी वीर भी था।
टंट्या भील की मृत्यु कैसे हुई
टंट्या भील को कुछ विश्वस्त लोगों के विश्वासघात के कारण अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें इंदौर में ब्रिटिश रेजीडेंसी क्षेत्र में सेंट्रल इंडिया एजेंसी जेल में रखा गया था। बाद में उन्हें सख्त पुलिस सुरक्षा में जबलपुर ले जाया गया, जहाँ उन्हें भारी जंजीरों से जकड़ कर जबलपुर जेल में रखा गया। सत्र न्यायालय जबलपुर ने उन्हें 19 अक्टूबर 1889 को फाँसी की सजा सुनाई और फिर 04 दिसम्बर 1889 को फाँसी दी गई। फाँसी के पश्चात इंदौर के पास खण्डवा रेल मार्ग पर पातालपानी रेलवे स्टेशन के नजदीक आसपास के गाँवों में विद्रोह भड़कने के डर से चुपचाप रात में उनके शव को उस स्थान, जहाँ पर उनके लकड़ी के पुतले रखे थे, फेंककर अर्थात रखकर चले गये। इस स्थान अर्थात पातालपानी को ही आज टंट्या भील की समाधि स्थल के नाम से जाना जाता है। आज भी सभी ट्रेन चालक टंट्या मामा के सम्मान में ट्रेन को एक पल के लिए रोक देते हैं। इस तरह टंट्या मामा अपने देश निमाड़ और मालवा क्षेत्र के क्रांतिकारी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में अपना बलिदान कर इतिहास के पन्नों में अमर हो गये।