विश्व के राजा
महाकाल-उज्जैन
विश्व के राजा महाकाल-उज्जैन
- भगवान श्रीकृष्ण
और उनके बालसखा की पहली पाठशाला है उज्जयिनी नगरी। महर्षि सांदीपनि के गुरुकुल
आश्रम में महाभारत की रणभूमि में धनुर्धारी अर्जुन को ज्ञान देने वाले भगवान
श्रीकृष्ण ने शिक्षा प्राप्त की थी।
- सांदीपनि आश्रम अंकपात क्षेत्र में आज भी
मौजूद है। प्रदेश की राजधानी भोपाल से सड़क मार्ग से देवास और इंदौर होकर पहुंचने
के साधन सुलभ हैं। भारत के किसी भी रेलवे स्टेशन से उज्जैन नगरी के लिए रेलगाड़ी
सुविधा मौजूद है।
- क्षिप्रा नदी के
किनारे बसी उज्जैन नगरी देश के सात पवित्र नगरों में से एक है। जहाँ मोक्ष प्राप्त
होता है। प्रति 12 वर्ष बाद भरने
वाला कुंभ मेला सिंहस्थ उज्जैन में आयोजित किया जाता है। कहते हैं देवाधिदेव
महादेव यहां विराजे हैं। धार्मिक मान्यता है कि भगवान महाकाल इसी नगरी के आज भी
महाराजा हैं। इस बात में सच्चाई है अथवा नहीं, लेकिन इस दौर में प्रदेश के मुख्यमंत्री, राज्यपाल, केंद्रीय मंत्री
अथवा मंत्री स्तर का व्यक्ति उज्जैन नगरी में रात्रि विश्राम नहीं करता है।
पौराणिक मान्यता है कि क्षिप्रा नदी में पुरखों का तर्पण करने से मोक्ष मिलता है।
क्षिप्रा नदी के प्रसिद्ध घाट का नाम रामघाट है। प्रतिदिन शाम को रामघाट में होने
वाली संध्या आरती हर आगंतुक को दूसरी बार उज्जैन आने का निमंत्रण देती है।
भस्म आरती उज्जैन की कहानी
महाकालेश्वर में होने वाली भस्म आरती
- देश के बारह
ज्योतिर्लिंगों में उज्जैन के महाकालेश्वर हैं। महाकालेश्वर में सबसे पवित्र
शिवलिंग विराजमान है। महाकालेश्वर में होने वाली भस्म आरती इस धार्मिक नगरी का
सबसे बड़ा आकर्षण है। कहा जाता है कि पूर्व में होने वाली भस्म आरती में
श्मशानघाट से लाई जाने वाली ताजी भस्म से ही आरती की जाती थी।
- महाकालेश्वर ट्रस्ट
की प्रबंध समिति के नए आदेश के अनुसार अब कंडों (उपलों) की राख को छानकर भस्म
भगवान शिव को अर्पित की जाती है. देश के कोने कोने से आने वाले श्रद्धालु भोरकाल
में होने वाली भस्म आरती में शामिल होने हजारों की संख्या में शामिल होते हैं।
सुदूर दक्षिण प्रांत, पूर्वोत्तर
प्रांत से श्रद्धालु पूरे साल भर महाकाल भगवान के दर्शनार्थ आते हैं।
महाकालेश्वर मंदिर का पुनरुद्धार
- इतिहास में दर्ज
आलेखों के अनुसार 1850 में मराठों ने
महाकालेश्वर मंदिर का पुनरुद्धार करवाया था। तंग गलियाँ बाली उज्जयनी नगरी के
मुख्य मार्ग अब चौड़े हो गए हैं। प्राचीन घरों ने वास्तु से संपन्न अट्टालिकाओं का
रूप ले लिया है। नगर के अंदर गलियों में निर्मित मकान, झरोखे, नक्काशीदार
जालियां राजा भोज के जमाने की याद दिलाते हैं। रामघाट के पास प्राचीन मंदिरों का
नवीनीकरण कर दिया गया है। घाट का नवीनीकरण 2004 में संपन्न हुए सिंहस्थ के समय किया गया था। क्षिप्रा नदी
के किनारे 70 एकड़ क्षेत्र
में सिंहस्थ का मेला लगा था। उज्जैन नगरी में पाँव रखते ही पवित्र अनुभूति का आभास
होता है। आने वालों के मन में सिर्फ यही भावना रहती है कि भोर काल की भस्म आरती
में शामिल होने का मौका मिले। उज्जैन नगरी भांग और भांग से निर्मित ठंडाई, भांग के पकौड़े, भांग की मिठाई
मिलने, मेंहदी, अगरबत्ती के लिए
प्रसिद्ध है। मालवा की मिठास वाली बोली खानपान वाले उज्जैन में विश्व प्रसिद्ध काल
भैरव मंदिर है।
काल भैरव मंदिर की कहानी
- स्कंदपुराण में
काल भैरव का उल्लेख है। 18वीं सदी में बने
काल भैरव मंदिर चारों ओर से निर्मित ऊंची दीवारों से घिरा है। काल भैरव मंदिर पूरे
विश्व में इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि यहाँ विराजे भगवान शिव के स्वरूप काल भैरव की
मूर्ति को मंदिरापान कराया जाता है। इस मंदिर में दर्शन करने वाले देशी व मदिरा
शराब का भोग लगाते हैं। काल भैरव की मूर्ति के समक्ष स्टील की तश्तरी में मंदिरा
का भोग लगाते हैं। मंदिरा गायब हो जाती है। मूर्ति को लगाने वाली भोग की मंदिरा के
गायब होने का रहस्य
बरसों से रहस्य बना हुआ है।
- काल भैरव की मूर्ति को प्रतिदिन सैकड़ों लीटर शराब भोग
स्वरूप अर्पित की जाती है। इस सैकड़ों लीटर मंदिरा को विज्ञान की कसौटी पर कसने के
लिए बरसों से शोध जारी है। इस मंदिर में विशालकाय •दीप स्तंभ आकर्षण
का केंद्र है।
- मराठा काल में 19वीं सदी में निर्मित गोपाल मंदिर उज्जैन के प्रसिद्ध
मंदिरों में है। उज्जैन नगर के मध्य में बने गोपाल मंदिर में प्रथम पूज्यनीय गणेश
जी विराजमान हैं। ऊंची नक्काशीदार दीवारों से घिरे गोपाल मंदिर का गर्भगृह के
द्वार चांदी के पत्तरों से
निर्मित हैं। यह गर्भगृह गुजरात के सोमनाथ मंदिर का स्मरण कराते हैं।
- ऐतिहासिक महत्व
का रामजनार्दन मंदिर उज्जैन के पास स्थित है। भगवान श्रीराम एवं भगवान विष्ण
(जनार्दन) का मंदिर 17वीं सदी में राजा
जयसिंह ने बनवाया था। मुगल शासक औरंगाबाद के राज्यपाल थे राजासिंह।।
गढ़कालिका मंदिर उज्जैन
- महाकालेश्वर
मंदिर से दो किलोमीटर दूर गढ़कालिका मंदिर है। संस्कृत के प्रकांड विद्वान एवं
महाकवि कालिदास गढ़कालिका देवी की
पूजा करते थे।
भर्तृहरि की गुफा
- क्षिप्रा नदी के किनारे और गढ़कालिका मंदिर के पास राजा भर्तृहरि की
गुफा मौजूद है।यहाँ शिव साधकों
के नाथ संप्रदाय के जनक महेंद्रीनाथ का तीर्थ स्थान है।
हरसिद्धि मंदिर
- शक्ति के प्रतीक
श्रीयंत्र का पवित्र स्थान महाकालेश्वर के पास स्थित हरसिद्धि मंदिर में मौजूद है।
यहाँ मो अन्नपूर्णा का पवित्र स्थान भी है। महालक्ष्मी और महासरस्वती के मध्य में
अन्नपूर्णा देवी विराजमान हैं। प्राचीन कथा है कि मां पार्वती के सती होने के बाद
शौक और क्षोभ में डूबे माँ सती के शरीर को लेकर जब निकले थे तब उनके अंग जहाँ जहाँ
गिरे वहाँ तीर्थ स्थल बन गए। उज्जैन का हरसिद्धि मंदिर भी ऐसे तीर्थ स्थल में से
एक है।
- उज्जैन के
दर्शनीय धार्मिक स्थल में मंगलनाथ का मंदिर मौजूद है। मत्स्यपुराण में उल्लेख है
कि मंगल ग्रह का वह जन्म स्थान है। मंगलनाथ मंदिर का गर्भगृह भगवान शिव की छवि लिए
हुए है। मंगलनाथ मंदिर ज्योतिषी गणना एवं अध्ययन का केंद्र है।
उज्जैन अंकपात क्षेत्र
- उज्जैन के अंकपात
क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा का अध्ययन केंद्र सांदीपनि आश्रम में स्थित
है। गुरु सांदीपनि के आश्रम में
गोमतीकुंड आज भी स्थित है। भगवान श्रीकृष्ण के अध्ययन केंद्र होने के कारण उज्जैन
श्रीकृष्ण भक्तों के लिए भी तीर्थ स्थल
है।
- उज्जयिनी नगरी का
महाकवि कालिदास से सीधा संबंध है। संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान कालिदास ने उज्जैन
में अभिज्ञान
शाकुंतलम्, रघुवंश और मेघदूत
जैसे कालजयी ग्रंथों की रचना की मेघदूत काव्य ग्रंथ में बादलों के माध्यम से यक्ष द्वारा प्रेम
संदेश भेजने का चित्रण किया गया है।
- 17वीं शताब्दी में
निर्मित वेधशाला उज्जैन-फरीदाबाद मार्ग पर स्थित है। दो किलोमीटर बनी इस वेधशाला
को राजा जयसिंह ने बनवाया था। इस वेधशाला को जंतर-मंतर भी कहा जाता है। राजा
जयसिंह ने ही जयपुर बनारस और दिल्ली में येधशालाओं का निर्माण किया था। राजा
जयसिंह ने 1688 से 1743 तक राज किया।
- उज्जैन में 1458 में मालवा के
मेहमूद खिलजी द्वारा निर्मित बेहतर खूबसूरत महल है। क्षिप्रा नदी के तट पर बसा
छोटा टापू जैसा प्रतीत होने वाला महल मानव निर्मित तालाब और जल प्रदाय प्रणाली के
लिए प्रसिद्ध है। बाद में 1920 में ग्वालियर के
सिंधिया परिवार ने इस महल को अपने कब्जे में लेकर इसका पुनरुद्धार करवाया। 1944 में निर्मित
विक्रम कीर्ति मंदिर भी उज्जैन की धार्मिक धरोहर का अभिन्न अंग है। सिंधिया
राजघराने का पुरातात्विक संग्रहालय, संपन्न पुस्तकालय, सभागार और कलावीथिका के रूप में मशहूर विक्रम कीर्ति मंदिर
उज्जैन की ऐतिहासिक धरोहर है।
- उज्जैन नगरी से
सांदीपनि ऋषि के अतिरिक्त महाकात्यायन, भास,
सिद्धसेन दिवाकर, भर्तृहरि, कालिदास, वाराहमिहिर, अमरसिंहादि
नवरत्न, परमार्थ, शूद्रक, बाजबहादुर, मयूर, राजशेखर, पुष्पदंत, हरिषेण, शंकराचार्य, वल्लभाचार्य, जदरूप आदि
महापुरुषों का घनिष्ठ संबंध रहा है। सांदीपनि आश्रम में श्रीकृष्ण व बलराम के
अध्ययन का पुराणों व
महाभारत में उल्लेख है। भगवान श्रीकृष्ण की एक पत्नी मित्रवृंदा उज्जैन को
राजकुमारी थी। उसके दो भाई दिद और अनुविन्द महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से
युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। ईसा को छठीं सदी में प्रतापी राजा चण्ड
प्रद्योत शासक हुआ। प्रद्योत वंश के बाद उज्जैन मगध साम्राज्य का अंग बन गया।
मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य भी यहां आया था। उनका पौत्र अशोक यहाँ राज्यपाल था।
अशोक के पुत्र महेंद्र और पुत्री
- संघमित्रा ने
श्रीलंका में बौद्ध धर्म का प्रचार किया था। मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद शकों
और सातवाहनों ने उन्लेन में आधिपत्य करने का
प्रयास किया उज्जैन के वीर विक्रमादित्य ने शकों के प्रयास को विफल कर दिया। बाद
में पश्चिमी देशों ने उज्जैन पर
अधिकार जमा लिया। चौथी शताब्दी में गुप्तों और औलिकारों ने मालवा से इन शकों की
सत्ता समाप्त कर दी।
- छठीं से दसवीं
शताब्दी तक उज्जैन पर कलचुरियों, मैत्रकों, उत्तर गुप्तों, पुष्य मूर्तियों, चालुक्यों, राष्ट्रकूटों और प्रतिहारों का आधिपत्य रहा। सन्
1 हजार से 13सी इंस्थी तक
मालवा पर परमार का शासन रहा। इस काल में परमार वंश के सीयक द्वितीय, मुंजदेव, ओजराज उदयादित्य
नरवर्मन जैसे पराक्रमी राजाओं ने साहित्य, कला और संस्कृति की सेवा की दिल्ली के दास और खिलजी
सुल्तानों के आक्रमण के कारण परमार वंश का पतन हो गया। सन् 1406 में मालवा
दिल्ली सल्तनत से मुक्त हो गया। मुगल सम्राट अकबर ने मालवा का अधिग्रहण किया तब
उज्जैन को प्रांतीय मुख्यालय बनाया गया। मुगल शासक अकबर, जहांगीर, शाहजहां, औरंगजेब को
उज्जैन पसंद था।
- अठारहवीं सदी के
प्रथम खंड में मालवा पर मराठों का अधिकार हो गया। सिंधिया वंश ने उज्जैन को
राजधानी बनाया। इसी वंश के संस्थापक राणोजी शिंदे ने महाकाल मंदिर का निर्माण करवाया।
शिंदे वंश में महादजी सिंधिया सर्वाधिक चर्चित शासक रहे। 810 ईस्वी में
राजधानी उज्जैन से ग्वालियर पहुंच गई। सिंधिया परिवार की राजधानी ग्वालियर में
पहुंचने के बाद भी उज्जैन का विकास जारी रहा।
- उज्जैन जैन धर्म, बौद्ध धर्म, इस्लाम धर्म एवं
वैष्णव धर्म का केन्द्र रहा है। देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन का
ज्योतिर्लिंग महाकाल दक्षिण मूर्ति होने से विशेष महत्व रखता है। परमार काल में
पुन: निर्मित विशालतम महाकाल मंदिर सहित अनेक प्राचीनतम मंदिरों को 1235 ईस्वी में
दिल्ली के गुलाम वंशी सुलतान इल्तुतमिश के निर्देश पर ध्वस्त कर दिया। गया था।
मंदिरों के ध्वस्त होने के बाद पूजा-अर्चना जारी रही। मराठाकाल में महाकालेश्वर, अनादिकल्पेश्वर, बूड़ा महाकाल, हरसिद्धि, कालिका, चिन्तामण गणेश, नवग्रह, तिल भाण्डेश्वर, कर्कराज आदि का
पुनरुद्धार शिंदे शासन काल में किया गया। उज्जैन में असंख्य शिवलिंग, एकादश रुद्र अष्ट
भैरव, द्वादश आदित्य, छ: विनायक, चौबीस मातृका, मारुति चतुष्टय, दस विष्णु, नवदुर्गा, नवग्रह आदि
धर्मस्थल उज्जैन में विराजमान हैं। उज्जैन में महाकाल परिसर, मंगलनाथ, कालभैरव, विक्रांत भैरव, दत्त अखाड़ा, शैव धर्मस्थल, हरसिद्धि, चौंसठ योगिनी, गढ़कालिका, नगरकोट की रानी
शक्तिधर्मस्थल, गोपाल मंदिर, अनंत नारायण
मंदिर, अंकपात, गोमतीकुंड, रामजनार्दन मंदिर, श्रीनाथ जी व
गोवर्धन नाथ की हवेलियां,
चक्रव्यूह के
मंदिर वैष्णव धर्म, त्रिवेणी संगम पर
नवग्रह मंदिर पीटादीरों का राम मंदिर, रामानुज कोट, सराफ का जनार्दन मंदिर, क्षिप्रा तट का क्षिप्रा मंदिर, रणजीत हनुमान
मंदिर, चिंतामण गणेश, पनकामेश्वर गणेश
मंदिर, स्थिरमन गणेश
मंदिर हिंदू धर्मस्थल हैं।
- अवन्ति पाश्वनाथ
मंदिर, नमकमंडी त्रिमालय
एवं उपाश्रय, जयसिंहपुरा का
दिगम्बर जैन, असामपुरा का
जिनालय जैन धर्म स्थल है। ख्वाजा शकेब की मस्जिद, छत्रीचौक स्थित मस्जिद, जामा मस्जिद, बोहरों का रोजा
मुस्लिम धर्मस्थल है। वेश्या टेकरी का स्तूप स्थल, भर्तृहरि गुफा, पीर मत्स्येन्द्र केंद्र की समाधि, सभी का मकबरा, बिना नींव की
मस्जिद, कालियादेह महल व
कुण्ड, वेधशाला, कोठी महल, बेगम का मकबरा
ऐतिहासिक स्मारक हैं।
- उज्जैन में
विक्रम वि.वि. परिसर, कालिदास अकादमी, सिंधिया प्राच्य
शोध संस्थान, विक्रम कीर्ति
मंदिर, विक्रम वि.वि.
पुरातत्व संग्रहालय आदि ऐतिहासिक महत्व के स्थान है।