डॉ. होमी जहांगीर भाभा के बारे में जानकारी
डॉ. होमी जहांगीर भाभा कौन थे
डॉ. होमी जहांगीर भाभा स्वप्नदृष्टा थे जिन्होंने भारत के नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी । उन्होंने मुटठीभर वैज्ञानिकों की सहायता से मार्च 1944 में भारत में नाभिकीय विज्ञान में अनुसंधान का कार्यक्रम प्रारंभ किया । उन्होंने नाभिकीय ऊर्जा की असीम क्षमता एवं उसकी विद्युत उत्पादन एवं सहायक क्षेत्रों में सफल प्रयोग की संभावना को पहचाना। डॉ. भाभा ने नाभिकीय विज्ञान एवं इंजीनियरी के क्षेत्र में स्वावलंबन प्राप्त करने के लक्ष्य से यह कार्य प्रारंभ किया और आज का परमाणु ऊर्जा विभाग जो विविध विज्ञान एवं इंजीनियरी के क्षेत्रों का समूह है, डॉ. भाभा की दूरदृष्टि का परिणाम है।
डॉ. होमी जहांगीर भाभा जीवन परिचय
होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्तूबर, 1909 को मुंबई के एक पारसी परिवार में हुआ।
उनके पिता जहांगीर भाभा एक जाने-माने वकील थे। होमी भाभा की प्रारंभिक शिक्षा
मुंबई के कैथेड्रल स्कूल से हुई। इसके बाद आगे की शिक्षा जॉन केनन स्कूल में हुई।
भाभा शुरू से ही भौतिक विज्ञान और गणित में खास रुचि रखते थे। 12वीं की पढ़ाई एल्फिस्टन कॉलेज, मुबंई से करने के बाद उन्होंने रॉयल
इस्टीट्यूट ऑफ साइंस से बीएससी की परीक्षा पास की। साल 1927 में होमी भाभा आगे की पढ़ाई के लिए
इंग्लैंड चले गए और वहां उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग
की परीक्षा पास की। साल 1934 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से
उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की।
भाभा ने जर्मनी में कॉस्मिक किरणों का
अध्ययन किया और उन पर अनेक प्रयोग भी किए। वर्ष 1933 में डॉक्टरेट कि उपाधि मिलने से पहले भाभा ने अपना रिसर्च पेपर “द अब्जॉर्वेशन ऑफ कॉस्मिक रेडिएशन” शीर्षक से जमा किया। इसमें उन्होंने
कॉस्मिक किरणों की अवशोषक और इलेक्ट्रॉन उत्पन्न करने की क्षमताओं को प्रदर्शित
किया। इस शोध पत्र के लिए उन्हें साल 1934
में ‘आइजैक न्यूटन स्टूडेंटशिप’ भी मिली।
डॉ भाभा अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद
साल 1939 में भारत लौट आए। भारत आने के बाद वह
बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से जुड़ गए, और साल 1940 में रीडर के पद पर नियुक्त हुए। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में
उन्होंने कॉस्मिक किरणों की खोज के लिए एक अलग विभाग की स्थापना की। कॉस्मिक
किरणों पर उनकी खोज के चलते उन्हें विशेष ख्याति मिली, और उन्हें साल 1941 में रॉयल सोसाइटी का सदस्य चुन लिया
गया। उनकी उपलब्धियों को देखते हुए साल 1944
में मात्र 31 साल की उम्र में उन्हें प्रोफेसर बना
दिया गया। बुहमुखी प्रतिभा के धनी डॉ होमी जहांगीर भाभा की शास्त्रीय संगीत, मूर्तिकला, चित्रकला और नृत्य के क्षेत्र में गहरी
रुची और पकड़ थी। वैज्ञानिक और नोबेल पुरस्कार विजेता सर सी.वी. रामन उन्हें ‘भारत का लियोनार्डो डी विंची’ भी कहा करते थे।
भारत को परमाणु शक्ति संपन्न बनाने के
मिशन में प्रथम कदम के तौर पर उन्होंने मार्च, 1944 में सर दोराब जे. टाटा ट्रस्ट को मूलभूत भौतिकी पर शोध के लिए
संस्थान बनाने का प्रस्ताव रखा। साल 1948
में डॉ भाभा ने भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की, और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा मंचों
पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। साल 1955
में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आयोजित ‘शांतिपूर्ण
कार्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग’ के
पहले सम्मलेन में डॉ. होमी भाभा को सभापति बनाया गया।
होमी जहांगीर भाभा शांतिपूर्ण कार्यों
के लिए परमाणु ऊर्जा के उपयोग के पक्षधर थे। 60 के
दशक में विकसित देशों का तर्क था कि परमाणु ऊर्जा संपन्न होने से पहले विकासशील
देशों को दूसरे पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए। डॉक्टर भाभा ने इसका खंडन किया। भाभा
विकास कार्यों में परमाणु ऊर्जा के प्रयोग की वकालत करते थे।
वर्ष 1957 में भारत ने मुंबई के करीब ट्रांबे में पहला परमाणु अनुसंधान केंद्र
स्थापित किया। वर्ष 1967 में इसका नाम भाभा परमाणु अनुसंधान
केंद्र कर दिया गया। यह होमी भाभा को देश की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि थी। इस
संस्थान ने एक विशिष्ट नाभिकीय अनुसंधान संस्थान के रूप में अपनी पहचान स्थापित की
है। आज यहाँ नाभिकीय भौतिकी, वर्णक्रमदर्शिकी, ठोस अवस्था भौतिकी, रसायन एवं जीव विज्ञान, रिएक्टर इंजीनियरी, यंत्रीकरण, विकिरण संरक्षा एवं नाभिकीय चिकित्सा
आदि महत्वपूर्ण क्षेत्रों में मूलभूत अनुसंधान हो रहे हैं।
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू
ने भी कहा था कि हम परमाणु ऊर्जा का दुरुपयोग नहीं करेगें। लेकिन, उनकी मृत्यु के बाद परिदृश्य में आये
बदलाव ने भारत की परमाणु नीति को प्रभावित किया। भारत की सुरक्षा को देखते हुए
तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने भारत को परमाणु हथियार न बनाने की
प्रतिबद्धता से मुक्त कर दिया। वर्ष 1964
में चीन ने परमाणु परीक्षण किया, तो
भारत का चिंतित होना स्वाभाविक था। वर्ष1965
में, भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ, तो यह चिंता बढ़ गई। ऐसे में, सामरिक संतुलन के लिहाज से भारत को
परमाणु शक्ति संपन्न बनाने की जरूरत अनुभव की जाने लगी।
18 मई, 1974 को भारत ने पोखरण में पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण किया। ये भारत की
परमाणु शक्ति का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था। 11 मई
और 13 मई 1998 को भारत ने पोखरण में ही दूसरा परमाणु परीक्षण किया। वर्ष 2003 की अपनी नई परमाणु नीति में भी भारत
ने परमाणु हथियारों का अपनी तरफ से पहले प्रयोग नहीं करने का ऐलान किया। इसके साथ
ही, यह भी कहा गया कि परमाणु हमला होने की
सूरत में भारत जवाब जरूर देगा।
होमी जहांगीर भाभा ने भारत को परमाणु
शक्ति संपन्न बनाने का जो सपना देखा था, वह
अपने विस्तृत स्वरूप में आगे बढ़ रहा है। आज भारत के पास रक्षा क्षेत्र में कई
परमाणु मिसाइलें हैं, जिनमें अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें
शामिल हैं। वर्तमान में, भारत में करीब सात परमाणु संयंत्र हैं।
वहीं, दूसरी तरफ भारत में परमाणु ऊर्जा का
इस्तेमाल कृषि, उद्योग, औषधि निर्माण तथा प्राणिशास्त्र समेत विविध क्षेत्रों में भी हो रहा
है। 24 जनवरी, 1966 को एक विमान दुर्घटना में भारत के इस प्रमुख वैज्ञानिक और
स्वपनद्रष्टा की मृत्यु हो गई।
डॉ. होमी जहांगीर भाभा और नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम
डॉ. होमी जहांगीर भाभा स्वप्नदृष्टा थे
जिन्होंने भारत के नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी । उन्होंने मुटठीभर
वैज्ञानिकों की सहायता से मार्च 1944
में भारत में नाभिकीय विज्ञान में अनुसंधान का कार्यक्रम प्रारंभ किया । उन्होंने
नाभिकीय ऊर्जा की असीम क्षमता एवं उसकी विद्युत उत्पादन एवं सहायक क्षेत्रों में
सफल प्रयोग की संभावना को पहचाना। डॉ. भाभा ने नाभिकीय विज्ञान एवं इंजीनियरी के
क्षेत्र में स्वावलंबन प्राप्त करने के लक्ष्य से यह कार्य प्रारंभ किया और आज का
परमाणु ऊर्जा विभाग जो विविध विज्ञान एवं इंजीनियरी के क्षेत्रों का समूह है, डॉ. भाभा की दूरदृष्टि का परिणाम है।
अत: उन्हीं के शब्दों में कुछ ही दशकों में जब परमाणु ऊर्जा का विद्युत उत्पादन के
लिए सफलतापूर्वक अनुप्रयोग किया जाएगा तब भारत को विशेषज्ञों के लिए विदेशों की ओर
नहीं देखना पडे़गा बल्कि वे यहीं मिलेंगे। डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने परमाणु
ऊर्जार् विद्युत उत्पादन के लिए एक व्यवहार्य वैकल्पिक स्रोत में उच्च क्षमता को
पहचानते हुए मार्च, 1944 में भारतीय नाभिकीय कार्यक्रम प्रारंभ
किया। यह डॉ. भाभा की दूरदृष्टि ही थी जिसके कारण भारत में नाभिकीय अनुसंधान को उस
समय प्रारंभ किया जब ओटो हान एवं फ्रिट्ज स्ट्रॅसमैन द्वारा नाभिकीय विखंड़न के
चमत्कार की खोज की जा रही थी एवं तत्पश्चात एन्रिको फर्मि व साथियों द्वारा
अविच्छिन्न नाभिकीय श्रंृखला अभिक्रियाओंे की व्यवहार्यता के बारे में रिपोर्ट
किया गया। उस समय बाहरी विश्व को नाभिकीय विखंडन एवं अविच्छिन्न श्रृंखला
अभिक्रिया की सूचना न के बराबर थी। परमाणु ऊर्जार् पर आधारित विद्युत उत्पादन की
कल्पना को कोई मान्यता देने के लिए तैयार नहीं था।
डॉ. भाभा एक कुशल वैज्ञानिक और प्रतिबद्ध इंजीनियर होने के साथ-साथ एक समर्पित वास्तुशिल्पी, सतर्क नियोजक एवं निपुण कार्यकारी थे। वे ललित कला एवं संगीत के उत्कृष्ट प्रेमी और लोकोपकारी थे। डॉ. भाभा द्वारा भारतीय परमाणु ऊर्जार् कार्यक्रम के प्रति अपनाया गया सही मार्ग विश्व के बेहतरीन स्तरों में से एक है। परमाणु ऊर्जार् विभाग के सदस्यों और सारे देश के लोग इस महान वैज्ञानिक को नमन करते हैं और आने वाले वर्षों में भी उनके द्वारा चुने गए मार्ग पर चलने की पुन: प्रतिज्ञा करते हैं।
डॉ भाभा ने मार्च 1944 में सर दोरबजी टाटा टस्ट से भारत में
नाभिकीय अनुसंधान प्रारंभ करने के लिए संपर्क किया जिसके फलस्वरूप मुंबई में टाटा
मूलभूत अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गई और इसका उद्घाटन 19 दिसंबर,1945 किया गया । 15 अप्रैल, 1948 को परमाणु ऊर्जा अधिनियम पारित किया गया और दिनांक 10 अगस्त 1948 को परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की गई। राष्ट्र के हित के लिए
नाभिकीय ऊर्जा क उपयोग संबंधी अध्ययनों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से परमाणु खनिज
प्रभाग द्वारा विरल खनिजों और यूरनियम निक्षेपो के विस्तृत सर्वेक्षण प्रारंभ किया
गया एवं विरल मृदा यौगिकों तथा थोरियम यूरेनियम निक्षेपों के रासायनिक संसाधन और
पुन: प्राप्ति हेतु दिनांक 18
अगस्त, 1959 को इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड की
स्थापना की गई। परमाणु ऊर्जा आयोग द्वारा दिनांक 3 जनवरी,
1954 को परमाणु
ऊर्जा संस्थान ट्रॉम्बे (ए ई ई टी) की शुरूआत की गई। दिनांक 3 अगस्त 1954 से प्राकृतिक संसाधन एवं वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्रालय के अंतर्गत
कार्यरत परमाणु ऊर्जा आयोग को परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत लाया गया और डॉ. होमी
भाभा भारत सरकार की ओर से विभाग के सचिव बने। परमाणु ऊर्जा विभाग सीधे प्रधान
मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के नियंत्रणाधीन कार्यरत हुआ और तब से यह विभाग सीधे
उत्तरोत्तर प्रधान मंत्रियों के नियंत्रण में ही रहा है। रिएक्टर अभिकल्पन एवं
विकास, यंत्रीकरण, धातुकी एवं पदार्थ विज्ञान आदि के
क्षेत्रों में कार्यरत सभी वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को उनके अपने कार्यक्रमों के
साथ टीआइएफआर से एईईटी में स्थानांतरित किया गया जो नवनिर्मित परमाणु ऊर्जा
संस्थान, ट्रॉम्बे का अहम् हिस्सा बने। टीआइएफआर
एक पूर्ण रूप से नाभिकीय विज्ञान में मूलभूत अनुसंधान कार्य करने की संस्था हो गयी
है।
परमाणु ऊर्जा संस्थान, ट्रॉम्बे को औपचारिक रूप से तत्कालीन
प्रधानमंत्री श्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा दिनांक 20 जनवरी, 1957 को राष्ट्र को समर्पित किया गया। उसके बाद प्रधान मंत्री इंदिरा
गांधी ने एईईटी को पुनर्नामित कर दिनांक 12
जनवरी, 1967 को इसका नाम भाभा परमाणु अनुसंधान
केंद्र रखा जो डॉ. होमी भाभा की दिनांक 24
जनवरी, 1966 को हवाई दुर्घटना में हुई मृत्यु के
पश्चात उनको हमारी विनम्र श्रद्धांजलि थी। परमाणु ऊर्जा संस्थान, ट्रॅम्बे ने विज्ञान जगत में एक
विशिष्ट नाभिकीय अनुसंधान संसथान के रूप में अपनी पहचान बना ली थी जहाँ नाभिकीय
रिएक्टर अभिकल्पन एवं स्थापन, ईंधन
संविरचन, नि:शेष ईंधन का रासायनिक संसाधन के
क्षेत्रों में उच्च स्तरीय अनुसंधान एवं विकास कार्य जारी रहने के साथ-साथ
चिकित्सा, कृषि एवं उद्योगों में रेडियोआइसोटोपों
के अनुप्रयोग तकनीकों के विकास में पर्याप्त निपुणता प्राप्त की गई है। नाभिकीय
भौतिकी, वर्णक्रमदर्शिकी, ठोस अवस्था भौतिकी, रसायन एवं जीवन विज्ञान , रिएक्टर इंजीनियरी, यंत्रीकरण, विकिरण संरक्षा एवं नाभिकीय चिकित्सा
आदि के क्षेत्रों में मूलभूत एवं प्रगत अनुसंधान कार्य आदि तेजी से चल रहे थे।
संक्षेप में, भापअ केंद्र द्वारा मूलभूत प्रयोगशाला
बेंच स्केल अनुसंधान से लेकर संयंत्र प्रचालन तक व्यापक वैज्ञानिक एवं
प्रौद्योगिकी गतिविधियों तक व्यापक सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। इसकी कार्यात्मक
गतिविधियों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी - पारंपरिक विचारों से लेकर नवोदित
क्षेत्रों तक सभी विषय शामिल हैं। इस संस्था का मूल अधिदेश है - विद्युत उत्पादन
तथा नाभिकीय ऊर्जा के शंतिमय प्रयोग हेतु आवश्यक सभी अनुसंधान एवं विकास सहायता
प्रदान करना। इसमें पेरिफरल कंपोनेन्ट्स, कंप्यूटर
जनित कार्यशील प्रतिरूपों को तैयार करना तथा अनुकारित रिएक्टर प्रचालन की अवस्था
में उनका मूल्यांकन, एकीकरण, चयन एवं रिएक्टर प्रचालन, पर्यावरण
के विपरीत परिस्थितियों में जोखिम हेतु पदार्थों और घटकों का परीक्षण, नए रिएक्टर ईंधन पदार्थों का विकास एवं
जांच आदि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त भापअ केंद्र द्वारा भुक्तशेष ईंधनों का
रासायनिक संसाधन, नाभिकीय अपशिष्ट के सुरक्षित निपटान के
साथ-साथ उद्योग चिकित्सा एवं कृषि के क्षेत्रों में नए आइसोटोप अनुप्रयोग
प्रौद्योगिकियों का विकास आदि के लिए निपुणता प्रदान की जाती है। भापअ केंद्र में
भौतिकी, रसायनिकी एवं जैविक विज्ञानों में
प्रगत अनुसंधान कार्य को तीव्रता से आगे बढ़ाने का प्रयास जारी है ताकि देश को
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया जा
सके। अत: भापअ केंद्र एक बहुमुखी संस्था है जहाँ स्वगृहे किये गये अनुसंधान के
परिणामों को विकासशील स्तर तक स्थानांतरित कर अतंत: सफलतापूर्वक निदर्शनों के
माध्यम से संबंधित क्षेत्रों तक पहुंचाया जाता है। प्रगत उपस्कर एवं यंत्र, सुचारू रूप से स्थापित प्रयोगशालाएं
अनुकूल परिस्थिति तथा विज्ञान एवं इंजीनियरी के सभी क्षेत्रों से निपुणता की
उपलब्धता भापअ केंद्र की विशेषताएं हैं जो देश को ज्ञान एवं विकास के नये
क्षितिजों की ओर ले जाने हेतु प्रतिबद्ध हैं।