राजस्थानी साहित्य भाषा शैली।Rajshtanhi Sahitya evam Bhasha Shaili - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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बुधवार, 19 जनवरी 2022

राजस्थानी साहित्य भाषा शैली।Rajshtanhi Sahitya evam Bhasha Shaili

 राजस्थानी साहित्य भाषा शैली 

राजस्थानी साहित्य भाषा शैली।Rajshtanhi Sahitya evam Bhasha Shaili


 

राजस्थानी साहित्य भाषा शैली 

राजस्थानी समस्त राजस्थान की भाषा रही है जिसके अन्तर्गत मेवाड़ीमारवाड़ीढूढाड़ीहाड़ौतीबागड़ीमालवी और मेवाती आदि बोलियाँ आती है। इस भाषा में जैनशैलीचारणशैलीसंतशैली और लोकशैली में साहित्य का सृजन हुआ है।

 

(1) जैनशैली का साहित्य 

  • जैनशैली का साहित्य जैन धर्म से सम्बन्धित है। इस साहित्य में शान्तरस की प्रधानता है। हेमचन्द्र सूरी (ग्यारहवीं सदी) का देशीनाममाला', 'शब्दानुशासन', ऋषिवर्धन सूरी का नल दमयन्ती रास', धर्म समुद्रगणि का रात्रि भोजनरास', हेमरत्न सूरी का गौरा बादल री चौपाई प्रमुख साहित्य हैं ।

 

(2) चारणशैली का साहित्य

  • राजपूत युग के शौर्य तथा जनजीवन की झांकी इसी साहित्य की देन है। इसमें वीर तथा शृंगार रस की प्रधानता रही है। चारणशैली में रासख्यातदूहा आदि में गद्यपद्य रचनाएँ हुई है। बादर ढाढी में कृत 'वीर भायणचारण शैली की प्रारम्भिक रचना है। चन्दवरदाई का 'पृथ्वीराजरासोंनेणसी की 'नेणसीरीख्यात', बाँकीदास की 'बाँकीदासरीख्यातदयालदास की 'दयालदासरी ख्यातगाडण शिवदास की अचलदास खींची री वचनिका प्रमुख ग्रन्थ हैं जिनमें राजस्थान के इतिहास की झलक मिलती है। दोहा छन्द में ढोलामारू रा दूहासज्जन रा दूहा प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इनके अतिरिक्त दुरसा आढ़ा का नाम भी विशिष्ठ उल्लेखनीय है । 
  • वह हिन्दू संस्कृति और शौर्य का प्रशंसक तथा भारतीय एकता का भक्त था। बीकानेर नरेश कल्याणमल के पुत्र पृथ्वीराज राठौड़ ने 'वेलि क्रिसन रूकमणी रीनामक ग्रंथ की रचना कीजो राजस्थानी साहित्य का ग्रन्थ माना जाता है। इन गुणों की ध्वनि इसके गीतोंछन्दोंझुलका तथा दोहा में स्पष्ट सुनाई देती है। सूर्यमल्ल मीसण आधुनिक काल का महाकवि था और बून्दी राज्य का कवि था। इसने वंश भास्करऔर 'वीर सतसईजैसी उल्लेखनीय कृतियों की रचना की।

 

(3)  राजस्थानी  सन्त साहित्य

  • राजस्थान के जनमानस को प्रभावित करने वाला सन्त साहित्य बड़ा मार्मिक है। सन्तों ने अपने अनुभवों को भजनों द्वारा नैतिकताव्यावहारिकता को सरलता से जनमानस में प्रसारित किया हैऐसे सन्तों में मल्लीनाथजीजांभो जीजसनाथ जीदादू की वाणीमीरा की पदावलीतथा 'नरसीजी रो माहेरोरामचरण जी की 'वाणीआदि संत साहित्य की अमूल्य धरोहर है।

 

(4)  राजस्थानी लोक साहित्य 

  • लोक साहित्य में लोकगीतलोकगाथाएँप्रेमगाथाएँलोकनाट्यपहेलियाँफड़ें तथा कहावतें सम्मिलित है। राजस्थान में फड़ बहुत प्रसिद्ध है। फड़ चित्रण वस्त्र पर किया जाता है। जिसके माध्यय से किसी ऐतिहासिक घटना अथवा पौराणिक कथा का प्रस्तुतिकरण किया जाता है। फड़ में अधिकतर लोक देवताओं यथा पाबूजीदेवनारायण रामदेवजी इत्यादि के जीवन की घटनाओं और चमत्कारों का चित्रण होता है। फड़ का उपयोग चारणभोपे करते हैं। 
  • राजस्थान में शाहपुरा (भीलवाड़ा) का फड़ चित्रण राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाये हुए है। भीलवाड़ा के श्रीलाल जोशी ने फड़ चित्रण को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में सहयोग किया। इस कार्य हेतु भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से नवाजा है। इनमें पाबूजी री फड़, 'देवजी री फड़तीजगणगौरशादीसंस्कारोंमेलों पर गाये जाने वाले लोकगीत आते है।