राजस्थान के मध्यकालीन प्रमुख ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक स्थल
भाग -02
राजस्थान के प्रमुख स्थल (Rajsthan Ke Pramukh Sthal)
कोटा (कोटा की स्थापना)
- कोटा की स्थापना 13 वीं शताब्दी में बूँदी के शासक समरसी के पुत्र जैतसी ने की थी। उसने कोटा के स्थानीय शासक कोटिया भील को परास्त कर उसके नाम से कोटा की स्थापना की। शाहजहाँ के फरमान से सत्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में बूँदी से अलग होकर कोटा स्वतन्त्र राज्य के रूप अस्तित्व में आया। 1857 की क्रांति दौरान कोटा राज्य के क्रांतिकारियों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया।
- कोटा के क्षार बाग की छतरियाँ राजपूत स्थापत्य कला के सुन्दर नमूने है। यहाँ का महाराव माधोसिंह संग्रहालय एवं राजकीय ब्रज विलास संग्रहालय कोटा चित्र शैली एवं यहाँ के शासकों की कलात्मक अभिरुचि को प्रदर्शित करते है। कोटा में भगवान मथुराधीश का मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थ है एवं वल्लभ सम्प्रदाय की पीठ है। कोटा का दशहरा मेला भारत प्रसिद्ध है।
कौलवी
- झालावाड़ जिले में डग कस्बे के समीप स्थित कौलवी की गुफाएँ बौद्ध विहारों के लिए प्रसिद्ध है। ये विहार 5वीं से 7वीं शताब्दी के मध्य निर्मित माने जाते है। ये गुफाएं एक पहाड़ी पर स्थित हैं, जो चट्टानें काटकर बनायी गई हैं।
खानवा
- भरतपुर जिले में स्थित खानवा मेवाड़ के महाराणा सांगा और बाबर के मध्य हुए युद्ध (1527) के लिए विख्यात है। खानवा के युद्ध में सांगा की हार ने राजपूतों को दिल्ली की गद्दी पर बैठने का स्वप्न नष्ट कर दिया औरमुगल वंश की स्थापना को मजबूत कर दिया ।
गलियाकोट
- डूंगरपुर जिले में माही नदी के किनारे स्थित गलियाकोट वर्तमान में दाऊदी बोहरा सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र है। यहाँ संत सैय्यद फखरुद्दीन की दरगाह स्थित है, जहाँ प्रतिवर्ष इनकी याद में उर्स का मेला भरता है।
गोगामेड़ी
- हनुमानगढ़ जिले के नोहर तहसील में स्थित गोगामेड़ी लोक देवता गोगाजी का प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ प्रतिवर्ष उनके सम्मान में एक पशु मेले का आयोजन होता है। राजस्थान में गोगाजी सर्पों के लोकदेवता के रूप में प्रसिद्ध है। हिन्दू इन्हें गोगाजी तथा मुसलमान गोगा पीर के नाम से पूजते हैं।
चावण्ड
- उदयपुर से ऋषभदेव जाने वाली सड़क पर अरावली पहाड़ियों के मध्य 'चावण्ड' गाँव बसा हुआ । महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात् चावण्ड को अपनी राजधानी बनाया था। प्रताप की मृत्यु भी 1597 में चावण्ड में हुई थी ।
चित्तौड़गढ
- यह नगर अपने दुर्ग के नाम से अधिक जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण चित्रांगद मौर्य ने करवाया था। समय-समय पर चित्तौड़ दुर्ग का विस्तार होता रहा है। चित्तौड़ दुर्ग को दुर्गों का सिरमौर कहा गया है। इसके बारे में कहावत है - "गढ़ तो चित्तौड़गढ़, बाकी सब गढैया' चित्तौड़ के शासकों ने तुर्को एवं मुगलों से इतिहास प्रसिद्ध संघर्ष किया। चित्तौड़गढ़ दुर्ग में राणा कुम्भा द्वारा बनवाये अनेक स्मारक हैं, जिनमें नौ मंजिला प्रसिद्ध कीर्ति (विजय स्तम्भ), स्तम्भ कुम्भश्याम मन्दिर, शृंगार चँवरी, कुम्भा का महल आदि शामिल हैं। दुर्ग में रानी पद्मिनी का महल, जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित सात मंजिला जैन कीर्ति स्तम्भ, जयमल-पत्ता के महल, मीरा मन्दिर, रैदास की छतरी, तुलजा भवानी मन्दिर आदि अपने कलात्मक एवं ऐतिहासिक महत्व के कारण प्रसिद्ध हैं।
जयपुर
- भारत का पेरिस एवं गुलाबी नगर नाम से प्रसिद्ध जयपुर की स्थापना 1727 में सवाई जयसिंह के द्वारा की गई थी। कछवाहा राजाओं की इस राजधानी का महत्व अपने स्थापना काल से ही रहा है। यहाँ के स्थापत्य में राजपूत एवं मुगल स्थापत्य का मिश्रण देखा जा सकता है। यहाँ का सिटी पैलेस जयपुर के राजपरिवार का निवास स्थल रहा है। सिटी पैलेस के पास ही गोविन्ददेवजी का मन्दिर है, जो सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित है। सवाई जयसिंह द्वारा स्थापित वैधशाला 'जन्तर- मन्तर' का विशेष महत्व है। यहाँ स्थापित सम्राट यंत्र विश्व की सबसे बड़ी सौर घड़ी मानी जाती है। नाहरगढ़ किला, हवामहल, रामनिवास बाग, अल्बर्ट हॉल संग्रहालय आदि दर्शनीय एवं ऐतिहासिक स्थल हैं।
जालौर
- ऐसा माना जाता है कि जालौर ( जाबालिपुर ) प्राचीनकाल में महर्षि जाबालि की तपोभूमि था। जालौर के प्रसिद्ध शासक कान्हड़देव ने अलाउद्दीन खिलजी से लम्बे समय तक लोहा लिया था। जालौर के सुवर्णगिरि दुर्ग का निर्माण परमार राजपूतों ने करवाया था। दुर्ग में वैष्णव एवं जैन मंदिर तथा सूफी संत मलिकशाह का मकबरा है।
जैसलमेर
- भाटी राजपूतों की राजधानी जैसलमेर की स्थापना 12 वीं शताब्दी में महारावल जैसल ने की थी। जैसलमेर दुर्ग पीले पत्थरों से निर्मित्त होने के कारण 'सोनार किला' कहलाता है। दुर्ग में अनेक वैष्णव एवं जैन मन्दिर बने हैं, जो अपनी शिल्पकला की उत्कृष्टता के कारण विख्यात है। जैसलमेर का जिनभद्र ज्ञान भण्डार प्राचीन ताड़पत्रों एवं पाण्डुलिपियों तथा कई भाषाओं के ग्रंथों के लिए प्रसिद्ध है। जैसलमेर की हवेलियों की वजह से विशेष पहचान है। यहाँ की पटवों की हवेलियाँ, सालिमसिंह की हवेली तथा नथमल की हवेली अपने झरोखों, दरवाजों व जालियों की नक्काशीयुक्त शिल्प के लिए पहचानी जाती हैं। जैसलमेर शासकों के निवास बादल निवास व जवाहर विलास शिल्पकला के 'बेजोड़ नमूने है। रावत गढ़सी सिंह द्वारा निर्मित्त मध्यकालीन गढ़सीसर सरोवर अपने कलात्मक प्रवेश द्वार एवं छतरियों के लिए प्रसिद्ध है।
जोधपुर
- इस नगर की स्थापना 1459 में राव जोधा ने की थी। जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण राव जोधा ने शुरू किया, जिसमें कालान्तर में विस्तार होता रहा है। इस दुर्ग को मयूर ध्वज के नाम से भी जाना जाता है। इस दुर्ग में फूल महल, मोती महल, चामुण्डा देवी का मन्दिर दर्शनीय हैं। दुर्ग के पास ही जसवन्त थड़ा है, जो महाराजा जसवन्त के सिंह द्वितीय की स्मृति में बनवाया गया था। यहाँ आधुनिक काल का उम्मेद भवन (छीतर पैलेस) अपनी विशालता एवं कलात्मकता के लिए प्रसिद्ध है। जोधपुर सूर्य नगरी के नाम से विख्यात है।
झालरापाटन
- झालावाड़ शहर से 4 मील दूर स्थित झालरापाटन कस्बा कोटा राज्य के प्रधानमंत्री झाला जालिमसिंह ने बसाया था। यहाँ पहले 108 मन्दिर थे, जिनकी झालरों एवं घण्टियों के कारण कस्बे का नाम झालरापाटन रखा गया यहाँ का मध्यकालीन सूर्य मन्दिर प्रसिद्ध है, जो वर्तमान में सात सहेलियों के मन्दिर के नाम से प्रख्यात है। यहाँ का शांतिनाथ का जैन मन्दिर विशाल एवं भव्य है, जो 11वीं शताब्दी का निर्मित है।
टोंक
- 17 वीं शताब्दी में एक ब्राह्मण ने 12 ग्रामों को मिलाकर टोंक की स्थापना की। 19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में अमीर खां ने टोंक रियासत की स्थापना की। टोंक की सुनहरी कोठी पच्चीकारी एवं मीनाकारी के लिए प्रसिद्ध है। टोंक के अरबी एवं फारसी शोध संस्थान, जो आधुनिक काल का है, में हस्तलिखित उर्दू, अरबी-फारसी ग्रंथों का विशाल संग्रह है।
डूंगरपुर
- रावल वीर सिंह ने 14 वीं शताब्दी में डूंगरपुर की स्थापना की थी। डूंगरपुर को वॉगड़ राज्य की राजधानी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। डूंगरपुर अपने मध्यकालीन मन्दिरों, हरे रंग के पत्थर की मूर्तियों आदि के कारण प्रसिद्ध रहा है। यहाँ का गैप सागर जलाशय अपने स्थापत्य के कारण आकर्षित करता है। यहाँ का उदयविलास पैलेस सफेद संगमरमर एवं नीले पत्थर से बना है, जो नक्काशी तथा झरोखों से सुसज्जित है। आदिवासियों से बाहुल्य डूंगरपुर में परम्परागत जन-जीवन की झांकी देखने को मिलती है ।
डीग
- भरतपुर जिले में डीग जाट नरेशों के भव्य महलों के लिए विख्यात है। भरतपुर शासक सूरजमल जाट ने 18वीं शताब्दी में यहाँ सुन्दर राजप्रासाद बनवाये। डीग कस्बे के चारों ओर मिट्टी का बना किला है, जिसे गोपालगढ़ कहते है।
नागौर
- नागौर का प्राचीन नाम अहिच्छत्रपुर था । यहाँ समय - समय पर नागवंश परमारवंश एवं मुगल वंश का शासन रहा। अपने विशालकाय परकोटों व प्रभावशाली द्वारों के कारण नागौर राजपूतों के अद्भुत नगरों में से एक 1 ऐतिहासिक नागौर किले में शानदार महल, मन्दिर एवं भव्य इमारतें है। नागौर का दुर्ग दोहरे परकोटे से घिरा हुआ है। यह किला राव अमरसिंह राठौड़ की शौर्य गाथाओं के कारण इतिहास प्रसिद्ध है। नागौर के ऐतिहासिक झंडा तालाब पर बनी 16 कलात्मक खम्भों से निर्मित अमरसिंह राठौड़ की छतरी एवं कलात्मक बावड़ी दर्शनीय है। यहाँ सूफी संत हमीदुद्दीन नागौरी की दरगाह हिन्दू मुस्लिम सद्भाव के रूप में पहचानी जाती है। नागौर का पशु मेला राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है।
नाथद्वारा
- राजसमंद जिले में बनास नदी के किनारे बसे नाथद्वारा पूरे देश में श्रीनाथजी के वैष्णव मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है। पुष्टिमार्गीय वैष्णवों का यह प्रमुख तीर्थस्थल है। यहाँ कृष्ण की उपासना उसके बालरूप में की जाती है। औरंगजेब की कट्टर धार्मिक नीति के कारण श्रीनाथजी की मूर्ति मथुरा से सिहाड़ ग्राम ( वर्तमान नाथद्वारा ) लाई गई, जो महाराणा राजसिंह के प्रयासों से नाथद्वारा में प्रतिष्ठापित की गई । चढ़ावे की दृष्टि से यह राजस्थान का सबसे सम्पन्न तीर्थस्थल है। पिछवाई पेंटिंग और मीनाकारी के लिए नाथद्वारा प्रसिद्ध है।
पुष्कर तीर्थ स्थान
- अजमेर के निकट पुष्कर हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। पद्म पुराण में भी इसकी महिमा का बखान किया गया । पुष्करताल के घाटों पर स्नान करना अत्यन्त पुण्य का काम समझा जाता है। तीर्थराज पुष्कर में प्राचीनतम चतुर्मुखी ब्रह्मा मन्दिर है। यहाँ के अन्य प्रसिद्ध मन्दिरों में रंगनाथ मन्दिर, सावित्री मन्दिर, वराह मन्दिर आदि धार्मिक महत्त्व के हैं। पुष्कर में प्रतिवर्ष कार्तिक महीने में मेले का आयोजन होता है। यह मेला न केवल विभिन्न पशुओं की खरीद-फरोख्त का माध्यम है बल्कि विदेशी पर्यटकों का आकर्षण केन्द्र माना जाता है। वर्तमान में पुष्कर को अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व प्राप्त है।
बूँदी
- राव देवा ने 13वीं शताब्दी में बूँदी राज्य की स्थापना की थी। बूँदी के तारागढ़ दुर्ग का निर्माण राव राजा बरसिंह ने 14वीं शताब्दी में शुरू करवाया था। बूँदी के शासक शत्रुसाल हाड़ा मुगल उत्तराधिकार युद्ध के दौरान धरमत की लड़ाई (1658) में मारा गया। यहाँ के दर्शनीय स्थलों में नवल सागर, चौरासी खम्भों की छतरी, रानीजी की बावडी, जैत सागर फूल सागर आदि है। बूँदी अपनी विशिष्ट चित्रकला शैली के लिए विख्यात है। बूँदी एक ऐसा शहर है, जिसके पास समृद्ध विरासत है और आज भी मध्यकालीन शहर की झलक देता है।
बयाना
- भरतपुर जिले में स्थित बयाना का उल्लेख 13वीं-14वीं शताब्दी के इब्नेबतूता, जियाउद्दीन बरनी जैसे लेखकों ने भी किया है। आगरा के निकट होने के कारण बयाना का सामरिक महत्त्व था। मध्यकाल में बयाना नील की खेती के लिए प्रसिद्ध था। बयाना से बड़ी संख्या में गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्राएं मिली हैं, जो तत्कालीन इतिहास पर प्रकाश डालती हैं। राणा सांगा एवं बाबर मध्य खानवा की लड़ाई (1527 ई.) हुई थी, जो बयाना के निकट ही है।
बाड़ोली
- चित्तौड़गढ़ जिले में रावतभाटा के निकट बाड़ोली हिन्दू मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है। ये मन्दिर गणेश, विष्णु, शिव, महिषासुर मर्दिनी आदि को समर्पित है। इन मन्दिरों से लोगों को सबसे पहले परिचय कर्नल जेम्स टॉड ने कराया था।
बीकानेर
- राव बीका द्वारा 15 वीं शताब्दी में इस शहर की स्थापना की गई थी। यहाँ के 16 वीं शताब्दी के शासक रायसिंह ने बीकानेर के जूनागढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया। यह दुर्ग अपने स्थापत्य कला एवं चित्रकारी के लिए प्रसिद्ध है। बीकानेर शहर प्राचीर से घिरा हुआ हैं, जिसमें पाँच दरवाजे बने हुए है। लाल और सफेद पत्थरों से निर्मित्त रतन बिहारी जी का मन्दिर, लालगढ़ पैलेस, पार्श्वनाथ का ऐतिहासिक जैन मन्दिर आदि कलात्मक एवं दर्शनीय हैं। बीकानेर का अनूप पुस्तकालय पाण्डुलिपियों एवं पुस्तकों के लिए प्रसिद्ध है।
भरतपुर
- राजस्थान का पूर्वी प्रवेश द्वार भरतपुर की स्थापना 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जाट शासक बदनसिंह ने की थी। उसके उत्तराधिकारी सूरजमल भरतपुर राज्य का विस्तार किया और इसे शानदार महलों से अलंकृत किया। मिट्टी की मोटी दोहरी प्राचीरों से घिरा भरतपुर का किला अपनी अभेद्यता के कारण लोहागढ़ दुर्ग के नाम से प्रख्यात है । भरतपुर सांस्कृतिक दृष्टि से पूर्वी राजस्थान का एक समृद्ध नगर है। यहाँ के दर्शनीय स्थलों में गंगा मन्दिर, लक्ष्मण मन्दिर, जामा मस्जिद, विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान आदि हैं।
भीनमाल
- जालौर जिले में स्थित भीनमाल का सम्बन्ध प्राचीन इतिहास से रहा है। संस्कृत के प्रख्यात कवि माघ ने अपने ग्रंथ शिशुपाल वध की रचना यहीं की थी। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भीनमाल की यात्रा की थी।
मण्डावा
- झुंझुनूं में मण्डावा शेखावाटी अंचल का सबसे महत्वपूर्ण कस्बा है। यहाँ बड़ी संख्या में पर्यटक आते है। इस कस्बे के चारों ओर रेगिस्तानी टीलें । यहाँ स्थित सेठों की हवेलियाँ, उनका स्थापत्य तथा उनमें बने भित्ति चित्र पर्यटन एवं कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। गोयनका की हवेली, लाडियों की हवेली आदि हवेली चित्रों के लिए प्रसिद्ध है।
मण्डौर
- जोधपुर के पास स्थित मण्डौर पूर्व में मारवाड़ की राजधानी रहा है। मण्डौर दुर्ग के अन्दर विष्णु और जैन मन्दिरों के खण्डहर हैं। यहाँ स्थित मण्डौर उद्यान में मण्डौर संग्रहालय, जनाना महल तथा राजाओं के देवल (स्मारक) बने हुए हैं। इस उद्यान राजा अजीतसिंह तथा राजा अभयसिंह ने देवताओं की साल (बरामदा) का निर्माण करवाया था।
महनसर
- झुंझुनू में महनसर पोद्दारों की सोने की दुकान के लिए प्रसिद्ध है, जो हरचंद पोद्दार ने बनवाई थी । यहाँ के भित्ति चित्रों में मुख्यतः श्रीराम और कृष्ण की लीलाओं का सुन्दर अंकन हुआ है। यह दुकान, जो मूलतः एक इमारत है पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। महनसर में सेठों की अनेक हवेलियाँ है, जो भित्ति चित्रों एवं हवेली स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है। महनसर की एक अन्य इमारत उल्लेखनीय है, जिसे तोलाराम जी का कमरा कहा जाता है। इस दो मंजिला इमारत को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते है। शेखावाटी अंचल के लोकगीतों में इस इमारत की सुन्दरता का वर्णन मिलता है ।
रणकपुर
- पाली जिले में स्थित रणकपुर जैन मन्दिरों के लिए विख्यात है। यहाँ का मुख्य मन्दिर प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ (ऋषभदेव) का है। इनकी चतुर्मुखी प्रतिमा होने के कारण इसे चौमुखा मन्दिर भी कहते हैं। इस मन्दिर का निर्माण महाराणा कुम्भा के शासनकाल में सेठ धरणशाह ने 15 वीं शताब्दी में करवाया था। इस मन्दिर में 1444 स्तम्भ हैं। इस मन्दिर का शिल्पी देपाक था । इस मन्दिर में राजस्थान की जैन कला एवं धार्मिक परम्परा का अपूर्व प्रदर्शन हुआ है। एक कला मर्मज्ञ की टिप्पणी है कि ऐसा जटिल एवं कलापूर्ण मन्दिर मेरे देखने में नहीं आया ।
रामदेवरा
- जैसलमेर जिले की पोकरण तहसील में अवस्थित 'रामदेवरा' लोक संत रामदेवजी का समाधि स्थल है। यहाँ रामदेवजी का भव्य मन्दिर बना हुआ है। यहाँ भाद्रपद शुक्ला द्वितीय से एकादशी तक मेला भरता है, जिसमें भारत के कौने-कौने से हजारों श्रद्धालु आते हैं। यह मेला साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए प्रसिद्ध है।
सवाई माधोपुर
- इस शहर की स्थापना जयपुर के शासक सवाई माधोसिंह ने की थी। यहाँ का रणथम्भौर का किला हम्मीर चौहान की वीरता का साक्षी रहा है। रणथम्भौर में 1301 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान राजपूत स्त्रियों द्वारा किया गया जौहर राजस्थान के पहले साके के रूप में विख्यात है। दुर्ग में त्रिनेत्र गणेशजी का मंदिर स्थित है। रणथम्भौर दुर्ग की प्रमुख विशेषता है कि इस किले में बैठकर दूर-दूर तक देखा जा सकता है परन्तु शत्रु किले को निकट आने पर ही देख सकता है। यहाँ का रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान (बाघ अभयारण्य) पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है।
हल्दीघाटी
- राजसमंद जिले में स्थित 'हल्दीघाटी' गांव महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के मध्य लड़े युद्ध (18 जून, 1576) के लिए प्रसिद्ध है। यह युद्ध अनिर्णायक रहा, परन्तु अकबर जैसा साम्राज्यवादी शासक भी प्रताप की संघर्ष एवं स्वतन्त्रता की प्रवृत्ति पर अंकुश नहीं लगा सका । युद्धस्थली को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है किंतु दुर्भाग्य से इसके मूल स्वरूप को यथावत् रखने में प्रशासन असफल रहा है। इतिहास के जागरूक छात्रों को चाहिये कि वे स्मारकों के संरक्षण में सहयोग प्रदान करें ।