राजस्थान के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक स्थल । Rajsthan Ke Historic Places in Hindi - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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मंगलवार, 11 जनवरी 2022

राजस्थान के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक स्थल । Rajsthan Ke Historic Places in Hindi

राजस्थान के मध्यकालीन प्रमुख ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक स्थल

भाग -01 

राजस्थान के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक स्थल । Rajsthan Ke Historic Places in Hindi


राजस्थान के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक स्थल 


अचलगढ़ 

  • आबू के निकट अवस्थित अचलगढ़ पूर्व मध्यकाल में परमारों की राजधानी रहा है। यहाँ अचलेश्वर महादेव का प्राचीन मन्दिर है। कुम्भा द्वारा निर्मित कुम्भस्वामी का मन्दिर यहीं अवस्थित है। अचलेश्वर महादेव मन्दिर के सामने चारण कवि दुरसा आढ़ा की बनवाई स्वयं की पीतल की मूर्ति है। अचलेश्वर पहाड़ी पर अचलगढ़ दुर्ग स्थित है, जिसे राणा कुम्भा ने ही बनवाया था . 

अजमेर 

  • आधुनिक राजस्थान के मध्य स्थित अजमेर नगर की स्थापना 12 वीं शताब्दी में चौहान शासक अजयदेव ने की थी। यहाँ के मुख्य स्मारकों में कुतुबद्दीन ऐबक द्वारा निर्मित ढ़ाई दिन का झौपड़ा, सूफी संत ख्वाजा मुइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह, सोनीजी की नसियाँ (जैन मन्दिर, जिस पर सोने का काम किया हुआ है), अजयराज द्वारा निर्मित तारागढ़ दुर्ग, अकबर द्वारा बनवाया गया किला (मैग्जीन) आदि प्रमुख स्मारक हैं। यह मैग्नीज फोर्ट वर्तमान में संग्रहालय के रूप है। यह स्मरण रहे कि ख्वाजा साहिब की दरगाह साम्प्रदायिक सद्भाव का जीवंत नमूना है। यहाँ चौहान शासक अर्णोराज (आनाजी ) द्वारा निर्मित आनासागर झील बनी हुई है। इस झील के किनारे पर जहाँगीर ने दौलतबाग (सुभाष उद्यान) और शाहजहाँ ने बारहदरी का निर्माण करवाया था। 


अलवर 

  • 18 वीं शताब्दी में रावराजा प्रतापसिंह ने अलवर राज्य की स्थापना की थी। अलवर का किला, जो बाला किला के नाम से जाना जाता है, 16 वीं शताब्दी में एक अफगान अधिकारी हसन खां मेवाती ने बनवाया था। अलवर में मूसी महारानी की छतरी है, जो राजा बख्तावरसिंह की पत्नी रानी मूसी की स्मृति में निर्मित है। यह छतरी अपनी कलात्मकता के लिए प्रसिद्ध है। अलवर का राजकीय संग्रहालय दर्शनीय है, जहाँ अलवर शैली के चित्र सुरक्षित है।

 

आबू 

  • अरावली पर्वतमाला के मध्य स्थित आबू सिरोही के निकट स्थित है। अरावली पर्वतमाला का सबसे ऊँचा आबू भाग 'गुरू शिखर' है। महाभारत में की गणना तीर्थ स्थानों में की गई है। आबू अपने देलवाड़ा जैन मन्दिरों के लिए विख्यात है। यहाँ का विमलशाह द्वारा निर्मित आदिनाथ मन्दिर तथा वास्तुपाल- तेजपाल द्वारा निर्मित नेमिनाथ का मन्दिर उल्लेखनीय है। आबू के देलवाड़ा के जैन मन्दिर अपनी नक्काशी, सुन्दर मीनाकारी एवं पच्चीकारी के लिए भारतभर में प्रसिद्ध है। इन मन्दिरों का निर्माण 11वीं एवं 13वीं शताब्दी में किया गया था। ये मन्दिर श्वेत संगमरमर से निर्मित है। यहाँ श्वेत पत्थर पर इतनी बारीक खुदाई की गई है, जो अन्यत्र दुर्लभ है। आबू पर्वत को अग्नि कुल राजपूतों की उत्पत्ति का स्थान बताया गया है। 

आमेर  

  • जयपुर से सात मील उत्तर-पूर्व में स्थित आमेर ढूँढाड़ राज्य की जयपुर बसने से पूर्व तक राजधानी था। दिल्ली- अजमेर मार्ग पर स्थित होने के कारण आमेर का मध्यकाल में बहुत महत्त्व रहा है। कछवाहा वंश की राजधानी आमेर के वैभव युग मुगल काल से प्रारम्भ होता है। आमेर का किला दुर्ग स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। यहाँ के भव्य प्रासाद एवं मन्दिर हिन्दू एवं फारसी शैली के मिश्रित रूप हैं। इसमें बने दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास (शीशमहल) आदि की कलात्मकता प्रशंसनीय है। इस किले में जगतशिरोमणि मंदिर और शिलादेवी मन्दिर बने हुए है। इनका निर्माण मानसिंह के समय हुआ था। मानसिंह शिलादेवी की मूर्ति को बंगाल से जीतकर लाया था । आमेर पर्यटन के लिए प्रसिद्ध है।

 

उदयपुर 

  • महाराणा उदयसिंह ने 16 वीं शताब्दी मे इस शहर की स्थापना की थी। यहाँ के महल विशाल परिसर में अपनी कलात्मकता के लिए प्रसिद्ध है। राजमहलों के पास ही 17 वीं शताब्दी का निर्मित जगदीश मन्दिर है। यहाँ की पिछौला झील एवं फतह सागर झील मध्यकालीन जल प्रबन्धन के प्रशंसनीय प्रमाण है। उदयपुर को झीलों की नगरी कहा जाता है। आधुनिक काल की मोती मगरी पर महाराणा प्रताप की भव्य मूर्ति है, जिसने स्मारक का रूप ग्रहण कर लिया है। महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित सहेलियों की बाड़ी तथा महाराणा सज्जनसिंह द्वारा बनवाया गुलाब बाग शहर की शोभा बढ़ाने के लिए पर्याप्त है।

 

ऋषभदेव (केसरियाजी)

 

  • उदयपुर की खेरवाड़ा तहसील में स्थित यह स्थान ऋषभदेव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। जैन एवं आदिवासी भील अनुयायी इसे समान रूप से पूजते हैं। भील इन्हें कालाजी कहते हैं, क्योंकि ऋषभदेव की प्रतिमा काले पत्थर की बनी हुई है। मूर्ति पर श्रद्धालु केसर चढ़ाते हैं और इसका लेप करते हैं, इसलिए इसे केसरियानाथ जी का मंदिर भी कहते हैं। यहाँ प्रतिवर्ष मेला भरता है।

 

ओसियाँ

 

  • जोधपुर जिले में स्थित ओसियाँ पूर्वमध्यकालीन मन्दिरों के लिए विख्यात है। यहाँ के जैन एवं हिन्दू मन्दिर 9वीं से 12वीं शताब्दियों के मध्य निर्मित है। यहाँ के जैन मन्दिर स्थापत्य के उत्कृष्ट नमूने हैं। महावीर स्वामी के मंदिर के तोरण द्वार एवं स्तम्भों पर जैन धर्म से सम्बन्धित शिल्प अंकन दर्शनीय है। यहाँ के सूर्य मंदिर, सच्चियामाता का मंदिर आदि उस युग के कला वैभव का स्मरण कराते हैं। 


करौली 

  • यदुवंशी शासक अर्जुनसिंह ने करौली की स्थापना की थी। करौली में महाराजा गोपालपाल द्वारा बनवाए गए रंगमहल एवं दीवान-ए-आम खूबसूरत हैं। यहाँ की सूफी संत कबीरशाह की दरगाह भी स्थापत्य कला का सुन्दर नमूना है। करौली का मदनमोहनजी का मन्दिर प्रसिद्ध है। 

किराडू 

  • बाड़मेर से 32 किमी. दूर स्थित किराडू पूर्व मध्यकालीन मन्दिरों के लिए विख्यात है। यहाँ का सोमेश्वर मन्दिर शिल्पकला के लिए विख्यात है। यह स्थल राजस्थान के खजुराहो के नाम से भी प्रसिद्ध है। यहाँ कामशास्त्र की भाव भंगिमा युक्त मूर्तियाँ शिल्पकला की दृष्टि से बेजोड़ है। 


किशनगढ़ 

  • अजमेर जिले में जयपुर मार्ग पर स्थित किशनगढ़ की स्थापना 1609 ई. में जोधपुर के शासक उदयसिंह के पुत्र किशनसिंह ने की थी। किशनगढ़ अपनी विशिष्ट चित्रकला शैली के लिए प्रसिद्ध है। 

केशवरायपाटन 

  • बूँदी जिले में चम्बल नदी के किनारे स्थित केशवरायपाटन में बूँदी नरेश शत्रुशाल द्वारा 17वीं शताब्दी का निर्मित विशाल केशव (विष्णु) मन्दिर है। यहाँ पर जैनियों का तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर है।