राजस्थान का एकीकरण , राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया
राजस्थान का एकीकरण
- राजस्थान भारतीय गणराज्य का एक राज्य है, जहाँ अन्य भारतीय राज्यों की तरह संसदीय शासन प्रणाली की व्यवस्था है। सम्पूर्ण राज व्यवस्था संवैधानिक व्यवस्था के अन्तर्गत व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका द्वारा संचालित की जाती है। राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था अथवा लोक प्रशासन का उद्देश्य राज्य के बहुमुखी विकास के साथ-साथ जनता के हितों की रक्षा करना तथा शांति एवं व्यवस्था हेतु कानून का शासन करना है। राजस्थान के लोक प्रशासन के अध्ययन से पूर्व राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया को समझना आवश्यक है।
राजस्थान का एकीकरण
- स्वतन्त्रता से पूर्व राजस्थान विभिन्न छोटी-छोटी रियासतों में बँटा हुआ था तथा इस राज्य का कोई संगठित स्वरूप नहीं था। यह 19 देशी रियासतों, 2 चीफशिप एवं एक ब्रिटिश शासित प्रदेश में विभक्त था ।
- इसमें सबसे बड़ी रियासत जोधपुर थी, तथा सबसे छोटी लावा चीफशिप थी प्रत्येक रियासत एक राजप्रमुख अर्थात् राजा, महाराजा अथवा महाराणा द्वारा शासित थी तथा प्रत्येक की अपनी राजव्यवस्था थी।
- अधिकांश रियासतों में आपसी समन्वय एवं सामजंस्य का अभाव था। स्वतन्त्रता के पश्चात् यह आवश्यक था कि समस्त देशी रियासतों का एकीकरण किया जाए। राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया समस्त भारतीय एकीकरण का हिस्सा थी।
- इस कार्य को सम्पन्न करने में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अहम् भूमिका निभाई और राजस्थान का एकीकरण एक चरणबद्ध रूप से किया गया।
राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया
राजस्थान
के एकीकरण की प्रक्रिया 17 मार्च, 1948 ई. को प्रारम्भ
हुई और 1 नवम्बर, 1956 ई. को पूर्ण
हुई। एकीकरण की सम्पूर्ण प्रक्रिया सात चरणों में सम्पन्न हुई, जिसका संक्षिप्त
विवरण इस प्रकार है-
राजस्थान के एकीकरण का प्रथम चरण- 'मत्स्य संघ का निर्माण
- 17 मार्च, 1948 को चार रियासतों अर्थात् अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली को मिलाकर एक संघ का निर्माण किया गया, जिसका नाम 'मत्स्य संघ' रखा गया। इस संघ का नामकरण के.एम. मुन्शी के सुझाव पर रखा गया था। मत्स्य संघ का राजप्रमुख धौलपुर के महाराजा को बनाया गया। राज्य में एकीकरण की दिशा में यह पहला कदम था।
राजस्थान के एकीकरण का द्वितीय चरण -
- 'संयुक्त राजस्थान' का गठन : राजस्थान के एकीकरण के द्वितीय चरण में 25 मार्च, 1948 को 9 रियासतों-बाँसवाड़ा, बूंदी, डूंगरपुर, झालावाड़, कोटा, किशनगढ़, प्रतापगढ़, शाहपुरा, और टोंक को मिलाकर 'संयुक्त राजस्थान' का निर्माण किया गया। इसकी राजधानी कोटा बनायी गयी।
राजस्थान के एकीकरण का तृतीय चरण - संयुक्त राजस्थान
18 अप्रेल, 1948 को उदयपुर रियासत को पूर्व राजस्थान में सम्मिलित कर लिया गया इसे संयुक्त राजस्थान का नाम दिया गया। इस नये राज्य का नया विधान बनाया गया जिसमें उदयपुर को राजधानी तथा उदयपुर के महाराजा को राजप्रमुख बनाया गया।
राजस्थान के एकीकरण का चतुर्थ चरण 'वृहत् राजस्थान'
- राज्य एकीकरण के चतुर्थ चरण में 30 मार्च, 1949 को राज्य की चार बड़ी रियासतें- जयपुर, जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर का संयुक्त राजस्थान में विलय के पश्चात् 'वृहत् राजस्थान' का गठन किया गया। इस वृहत् राजस्थान का व्यापक चर्चा के पश्चात् एक विधान बनाया गया तथा इसकी राजधानी जयपुर बनाई गई। राज्य के एकीकरण में यह महत्वपूर्ण कदम था, इसी कारण बाद में 30 मार्च को प्रतिवर्ष राजस्थान दिवस के रूप में स्वीकार किया गया।
- संयुक्त राजस्थान में राजप्रमुख, महाराज प्रमुख, उपराज प्रमुख पर क्रमशः जयपुर, उदयपुर, कोटा के महाराजा के साथ ही हीरालाल शास्त्री को प्रधानमंत्री (मुख्य मंत्री ) बनाया गया।
राजस्थान के एकीकरण का पंचम् चरण- 'संयुक्त वृहत् राजस्थान'
- 15 मई, 1949 को 'वृहत् राजस्थान' और 'मत्स्य संघ' का विलय सम्पन्न हुआ और उन्हें मिलाकर 'संयुक्त वृहत् राजस्थान' का निर्माण किया गया । मत्स्य संघ के विलय से पूर्व इस क्षेत्र की जनता का जनमत जानने के लिये शंकर देव समिति का गठन किया गया तथा इसकी सिफारिश पर ही विलय किया गया ।
राजस्थान के एकीकरण का षष्ठम् चरण- राजस्थान का निर्माण
- 26 जनवरी, 1950 को यहाँ की अकेली बची हुई सिरोही रियासत को संयुक्त वृहत् राजस्थान में सम्मिलित कर लिया गया। इसी समय भारत एक संप्रभुत्वसम्पन्न लोकतान्त्रिक गणराज्य घोषित किया गया और राज्य को राजस्थान के नाम से उल्लेखित किया गया ।
राजस्थान के एकीकरण का सप्तम् चरण- वर्तमान राजस्थान' का निर्माण :
- राज्य एकीकरण के अन्तिम चरण में 1 नवम्बर, 1956 को राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 लागू हुआ इसके अन्तर्गत कोटा जिले का सिरोंज मध्य भारत (मध्य प्रदेश) को दिया गया तथा अजमेर- मेरवाड़ा, आबू तहसील एवं मध्य भारत (मध्य प्रदेश) राज्य के मंदसौर जिले की भानपुर तहसील का सुनेल टप्पा वाला भाग राजस्थान में मिला दिया गया । इस प्रकार वर्तमान राजस्थान अस्तित्व में आया । जयपुर को राजस्थान की राजधानी बनाया गया।