जल संरक्षण की आवश्यकता राजस्थान के संदर्भ में | Jal Sanrakshan Rajsthan - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

जल संरक्षण की आवश्यकता राजस्थान के संदर्भ में | Jal Sanrakshan Rajsthan

जल संरक्षण की आवश्यकता राजस्थान के संदर्भ में 

जल संरक्षण की आवश्यकता राजस्थान  के संदर्भ में | Jal Sanrakshan Rajsthan



जल संरक्षण की आवश्यकता

जल प्रकृति से विरासत में मिला वह संसाधन है जो सम्पूर्ण जीव जगत का आधार है। जल के बिना जीव जगत की कल्पना ही व्यर्थ है। वस्तुतः जल ही जीवन है। 


जल संरक्षण की आवश्यकता क्यों है :

 

  • भूमण्डल पर दृष्टि डालने पर पृथ्वी के 70% भाग पर पानी दृष्टिगोचर होता है किन्तु पृथ्वी पर उपलब्ध जल का 007% हिस्सा अर्थात एक लाख लीटर पानी में से 7 लीटर पानी ही मानव के लिए उपयोगी है, शेष पानी या तो समुद्री जल के रूप में या ग्लेशियर के रूप में जमा है। सारे विश्व मे जल का संकट है किन्तु भारत की स्थिति अधिक गंभीर है क्योंकि यहां दुनिया की 16% आबादी निवास करती है जबकि पानी केवल 4% ही उपलब्ध है।

 

  • राजस्थान जो कि क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा प्रदेश है तथा भारत के क्षेत्रफल का 10.41% भाग धारण करता है उसमें भारत का मात्र 1% जल उपलब्ध है। राजस्थान के अलग-अलग भागों में जल का वितरण भी असमान है।

 

  • राजस्थान की भौगोलिक परिस्थितियाँ अत्यधिक विषम है यहाँ वार्षिक औसत वर्षा सबसे कम तो है ही बारह मास बहने वाली नदियों का अभाव है तथा राजस्थान का पश्चिमी भाग 'मरूभूमि' तो सदियों से अकाल और सूखे की चपेट में रहा है। यहाँ दूर-दूर तक पानी के दर्शन नहीं होते है तथा कई स्थानों पर बच्चों ने वर्षों तक वर्षा नहीं देखी होती है। भूमिगत जल स्त्रोतों में नाममात्र का उपलब्ध जल सीमित उपयोग द्वारा ही भविष्य के लिए बचाया जा सकता है। राजस्थान की 90% आबादी पेयजल के लिये भूजल स्त्रोतों पर निर्भर है तथा कृषिकार्य हेतु 60-70% भू जल स्त्रोतों का उपयोग होता है। राजस्थान में विगत 60 वर्षो में भू जल स्त्रोतों के अंधाधुंध दोहन से ये भंडार जो हजारो वर्षों में एकत्र हुए थे खाली होते जा रहे है ।

 

  • सतही पानी के स्त्रोत नदी, झील, तालाब आदि संकटपूर्ण स्थिति में है। पर्यावरणीय कारण जैसे ग्लोबल वार्मिंग एवं मनुष्य जनित कारण जैसे बढ़ती जनसंख्या अधिक खाद्यान्न उत्पादन, औद्योगिकीकरण, शहरीकरण के कारण सतह के जल स्त्रोत अपना अस्तित्व खोते जा रहे है पानी के अंधाधुंध दोहन के कारण जमीन के नीचे के भंडार तो खाली हो रहे है नदियाँ भी वर्षा के कुछ माह बाद ही सूख जाती है नदियों के जल प्रवाह में लगातार कमी आती जा रही है सिंचाई और घरेलू इस्तेमाल के लिये नदियों से पानी का दोहन कई गुणा बढ़ गया है। शहरी जनसंख्या हेतु दूर से किसी नदी का पानी लाकर शहरों की प्यास बुझाने का कार्य किया जा रहा है किन्तु इस हेतु बड़े बाध एवं बड़ी नहरें बनाना भावी जल संकट का स्थायी समाधान नहीं है क्योंकि जब तक जल की बर्बादी पर प्रभावी रोक नहीं होगी आसानी से नाममात्र के मूल्य पर सरकार द्वारा उपलब्ध करवायें जा रहे जल का आम जनता मूल्य नहीं समझ सकेगी। जल की बर्बादी रोकने से अभिप्राय यह नहीं कि हम लोगो को जल न पीने दे बल्कि संरक्षण है अर्थात् जल की अच्छी प्रकार से रक्षा है अतः जल का विवेकपूर्ण व समुचित उपयोग ही संरक्षण है।

 

  • मानव द्वारा जल संसाधनों के अत्यधिक एवं अविवेकपूर्ण दोहन एवं जल स्त्रोतों की दुर्दशा का सर्वाधिक नुकसानदायी दुष्प्रभाव जल प्रदूषण के कारण जीव जन्तुओं एवं वनस्पति पर पड़ा हैं किन्तु इसके दुष्प्रभाव से स्वयं मानव भी बच नहीं सका है, प्रदूषित पानी से प्रति वर्ष भारत में एक लाख लोगों की मृत्यु हो रही है।

 

  • मानव जिस जल को प्राचीन काल से देवता एवं जल स्त्रोतों को पवित्र मानता आ रहा है आधुनिक जीवन शैली, शहरीकरण एवं औद्योगिकीकरण द्वारा प्रदूषित कर अपने ही वर्तमान एवं भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है।

 

जल की कमी के दुष्प्रभाव :

 

  • जल का मानव जीवन के सभी पक्षों यथा सिंचाई, कृषि, खाद्यान्न उत्पादन, उद्योग, निर्माण, पर्यटन, सांस्कृतिक जीवन, जीवनयापन आदि सभी क्षेत्रों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध है जल के अभाव में मानव पशु-पक्षी जीव जन्तु वनस्पति किसी का भी अस्तित्व संभव नहीं है जल की कमी मानव एवं समस्त जैव जगत के अस्तित्व को प्रभावित करती है। जल का सर्वाधिक उपयोग कृषि क्षेत्र में (60-70 ) % उसके पश्चात् उद्योगों एवं कारखानों में ( 15 - 20 )% तथा तीसरे स्थान पर घरेलू क्षेत्र में उपयोग होता है

 

जल की कमी के कारण : 

शुद्ध पेयजल की पूरे विश्व में कमी है जिसके सामान्य कारण निम्न है।

 

1. आबादी में वृद्धि : बढ़ती आबादी हेतु अधिक पानी, भोजन, कृषि कार्यों एवं औद्योगिक इकाईयों द्वारा पानी का अधिक उपयोग प्रमुख कारण है।

 

2. असमान वितरण: भौगोलिक रूप से सभी स्थानों पर वर्षा का वितरण समान नहीं होता है। भारत में मानसूनी वर्षा का अधिकांश भाग अन्ततः समुद्र में जा गिरता है तथा कई स्थान उसी समय सूखा ग्रस्त होते हैं।

 

3. बांध एवं एनीकट : कृषि कार्य एवं औद्योगिक उपयोग हेतु जल भंडारण के उद्देश्य से बांध बनाये गये किन्तु बांधों में मिट्टी के भराव से उनकी क्षमता धीरे-धीरे कम हो जाती है तथा कई स्थानों पर बांधो के टूटने से विनाशलीला भी होती है।

 

4. पानी का अधिक उपयोग: पानी के अधिक उपयोग ने पानी का अभाव उत्पन्न किया आधुनिक जीवन शैली, टब बाथ व्यवस्था, फ्लश शौचालय, खुले नलों पर नहाना अथवा कपड़े धोना या दांत माँजना, वॉशिंग मशीन एवं डिटरजेन्ट पाउडर का उपयोग आदि में पानी अधिक व्यय होता है।

 

प्रति मनुष्य प्रतिदिन जल का खर्च :

 

1. दांत माँजना 2-8 लीटर 

2. शौचालय फ्लश 15-40 लीटर 

3. नलो का रिसना 10 लीटर 

4. खुले नल के नीचे हाथ धोना 2-8 लीटर 

5. बर्तन धोना 10-20 लीटर 

6. कपड़े धोना 20-40 लीटर 

7. शॉवर या बाथटब 20-200 लीटर 

8. सफाई करना 15-20 लीटर 

9. पीने के लिये पानी 3-6 लीटर 

10. अन्य खर्च 10 लीटर

 

सामान्य व्यय 100 लीटर धनी वर्ग / बाथटब संस्कृति 360 लीटर से 400 लीटर

 

5. जल प्रदूषण: 

  • उद्योगों से अपशिष्ट जल, जिनमे अनेक प्रकार की अशुद्धियाँ होती है सीधे ही पीने के पानी के स्त्रोतों में छोड़ दिया जाता है। इसी प्रकार घरेलू अपशिष्ट भी नाली के रास्ते किसी पानी के स्त्रोत में जा मिलते है, इससे वे स्त्रोत जो लोगों के पीने के पानी की पूर्ति करते है वे उपयोग लायक नहीं रहते तथा उनका उपयोग बन्द हो जाता है जिससे पानी का अभाव हो जाता है। 


6. वर्षा के पानी का उपयोग नहीं होना : 

  • वर्षा का जल बिना किसी उपयोग के समुद्र में चला जाता है, यदि इस जल का प्रभावी संचय किया जाता तो कई समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।

 

  • राजस्थान की परिस्थितियों में सभी क्षेत्रों में विकास एवं वृद्धि के लिये जल संरक्षण अत्यन्त आवश्यक है। राजस्थान की अर्थव्यवस्था एवं जनता का बड़ा भाग कृषि एवं पशुपालन से जुड़ा है तथा औद्योगिक विकास वर्तमान की आवश्यकता है। इन सभी क्षेत्रों के लिये जल की लगातार उपलब्धता अत्यावश्यक है साथ ही जनसंख्या के अधिकांश भाग को आवश्यकतानुसार स्वच्छ पेयजल मिल सके, इस हेतु सरकार एवं समाज के सभी वर्गों को भविष्य को ध्यान में रखते उपयोगी कदम उठाने चाहिए। 


जल संरक्षण के उपाय : 

 

जल का जीवन के जिन क्षेत्रों में उपयोग हो रहा है वहां उचित एवं मितव्यततापूर्ण उपयोग कर बचाया जा सकता है। इस हेतु किये जाने वाले उपायों को सुविधा हेतु निम्नानुसार वर्गीकृत किया जा सकता है -

 

1. सरकार के स्तर पर किये जाने वाले उपाय 

2. सामाजिक स्तर पर 

3. घरेलू स्तर पर 

4. औद्योगिक इकाइयों द्वारा 

5. स्थानीय शासन द्वारा 

6. कृषि के क्षेत्र मे

 

1. सरकार के स्तर पर जल संरक्षण के लिए किये जाने वाले उपाय : 

  • सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं में जनता को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाना प्राथमिक कार्य हैं। इस हेतु 1986 में राष्ट्रीय पेयजल मिशन स्थापित किया गया, जिसमे देश में उपलब्ध जल को प्राथमिकता के आधार पर पेयजल, कृषि, जल विद्युत, जल परिवहन, उद्योग आदि में प्रयुक्त किये जाने का निश्चय किया ।

 

  • जल संरक्षण के लिये आवश्यक है कि सरकार जल निकायों जैसे बांध, नहरों आदि की समयानुसार मरम्मत, नवीनीकरण कराये, जल निकायों की भंडारण क्षमता में वृद्धि करें, भूजल पुनर्भरण हेतु नयी प्रविधियों की उपलब्धि करावे। शहरी क्षेत्रों में जल की बर्बादी एवं अनियंत्रित प्रयोग को रोकने के लिये कानून बनाये जल प्रदूषण रोकने के लिये तथा औद्योगिक अपशिष्ट जल के उपचार हेतु उचित व्यवस्था सुनिश्चित करावें, कृषि / उद्यान कृषि उत्पादकता में सुधार हेतु प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करावें ।

 

  • राजस्थान सरकार ने "जल संरक्षण" कार्यक्रम के अन्तर्गत समस्त सरकारी भवनों में वर्षा जल संचय अनिवार्य किया है साथ ही भूजल भंडारों के पुनर्भरण हेतु वर्षा जल पुनर्भरण (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) योजनाओं को आगे बढ़ाया है। इस में एक छत के बरसाती पानी को गड़ड़े या खाई के जरिये सीधे जमीन के भीतर उतारा जाता है या छत के पानी को किसी टैंक में एकत्र कर सीधा उपयोग किया जाता है। छत के पानी को हेंड पम्प, बोरवेल या कुएं के माध्यम से भी भूगर्भ में डाला जा सकता है।

 

2. सामाजिक स्तर पर किये जाने वाले उपाय : 

  • जल संरक्षण या कोई भी जन जाग्रति कार्यक्रम समाज के सभी वर्गों के योगदान के बिना अधूरा है। समाज के जागरूक वर्ग को जल की सीमितता एवं जल संकट के खतरों से सभी वर्गों को जागरूक करना चाहिए। इस हेतु स्वयं सेवी संगठनों को जिला एवं राज्यस्तर पर जल के बुद्धिमत्तपूर्ण उपयोग के लिए जल, जंगल, जमीन के परंपरागत रिश्ते को पुनर्जीवित करना चाहिए, ताकि सूखी नदियाँ पुनः जल से भरी बह सके एवं वर्षा जल से भूजल स्त्रोतों का पुनर्भरण हो सके। 


3. घरेलू स्तर पर किये जाने वाले उपाय :

 

आधुनिक जीवन शैली के कारण जल का भारी मात्रा में अपव्यय हो रहा है। मितव्ययतापूर्ण एवं विवेकपूर्ण उपयोग द्वारा व्यक्ति आसानी से प्रतिदिन 200 लीटर तक जल बचा सकता है। जल के उपयोग में सावधानी द्वारा व्यक्ति जल बचा सकता है इस हेतु निम्न उपाय घरेलू सतर पर किये जा सकते हैं-

 

1. दंत मंजन के समय नल खुला रखने के बजाय मग का उपयोग । 

2. नहाने में शॉवर या बाथटब के बजाय बाल्टी मग का 

3. नल खुला रख कर हाथ न धोए । 

4. फर्श को धोने की बजाय बाल्टी में पानी भरकर पौंछा लगाना। 

5. शौचालय मे फ्लश चलाने के बजाय छोटी बाल्टी काम मे लें। 

6. मग मे पानी लेकर शेव बनाना । 

7. पाईप की बजाय बाल्टी में पानी लेकर वाहन को धोये या पोंछे। 

8. बर्तन धोते समय लगातार नल न चलाये या पानी से भरे बड़े बरतन (बेसिन) में बर्तन धोए । 

9. पानी पीते समय गिलास को झूठा न करें बल्कि ऊपर से पानी पिए जिससे बार-बार धोने में लगने वाला पानी बचेगा। 

10. वाशिंग मशीन से निकलने वाले पानी का इस्तेमाल वाहनों को साफ करने, छत, आंगन को धोने में करें। 

11. किचन, बाथरूम से निकलने वाले पानी को पुनर्चक्रीकृत कर बगीचे में काम में ले । 

12. घर के बगीचे में कम पानी की जरूरत वाले पौधे लगायें। 

13. घास को अधिक पानी की जरूरत होती है लॉन संस्कृति को कम अपनायें । 

14. नल अच्छी तरह बंद करे लीकेज होने पर तुरन्त ठीक करायें। 

15. सब्जियों को सीधे नल के नीचे धोने की बजाय किसी बर्तन मे धोया जाय। 

16. छत के पानी वर्षा जल को टैंक में एकत्र किया जाये या भूमि में उतारा जायें ।

 

4. औद्योगिक इकाइयों द्वारा किये जाने वाले उपाय : 

  • औद्योगिक क्षेत्र में उपलब्ध जल का 15-20% जल प्रयुक्त किया जाता है, उद्योगों में पानी का विविध उपयोग होता । शुद्ध पानी को औद्योगिक संयंत्र दूषित अथवा प्रदूषित कर बाहर निकालते है यह प्रदूषित जल उपचारित कर पुनः संयंत्र को ठंडा करने या पेयजल के अतिरिक्त अन्य कार्यो में उपयोग जैसे बाग-बगीचे का रखरखाव साफ-सफाई आदि में या ऊर्जा उत्पादन में प्रयुक्त किया जाय। उत्पादन में इस प्रकार की प्रौद्योगिकी काम में ली जाय जिसमें कम पानी की आवश्यकता हो ।

 

5. स्थानीय शासन द्वारा किये जाने वाले उपाय 

  • शहरी इलाकों में रोजाना सप्लाई किए जाने वाले करोड़ों लीटर पानी का हिस्सा इस्तेमाल के बाद नालियों (सीवरेज ) मे बहा दिया जाता है, अगर स्थानीय शासन इस हिस्से को पुनर्चक्रीकृत / उपचारित कर उपयोग मे ले तो पानी की बड़ी बचत हो सकती है। यह पानी नहाने, हाथमुँह, कपड़े धोने, साफ सफाई और बर्तन आदि धोने में तथा बाग बगीचों में प्रयुक्त किया जा सकता है।

 

  • स्थानीय स्वायतशासी निकाय बहुमंजिली इमारतों एवं घरों के निर्माण की स्वीकृति से पूर्व इमारत में टांका निर्माण या वर्षा जल द्वारा भूजल पुनर्भरण के लिये अनिवार्यता लागू कर सकता है।

 

  • शहरों एवं गांवों में गैर जिम्मेदार व्यक्तियों द्वारा अवैध जल कनेक्शन लेने, जलापूर्ति के समय घरों में अवैध बूस्टर लगाकर अधिक पानी खीचने मापदण्डों से बडी पाईप लाईन के जरिये अधिक जल भंडारण एवं दुरूपयोग करने वालो के विरूद्ध दण्डात्मक कार्यवाही की जाये। पानी की पाईप लाईन से होने वाले रिसाव को रोके, स्थानीय स्तर पर पुराने जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित करने के प्रयास किये जाय । कुओं और तालाबों की नियमित सफाई हो तथा तालाबों की मिट्टी को नियमित रूप से निकाला जाय ।

 

6. कृषि के क्षेत्र में किये जाने वाले उपाय :

 

  • राजस्थान कृषि प्रधान राज्य है तथा यहाँ पर उपलब्ध जल का 60 - 70% कृषि क्षेत्र में प्रयुक्त किया जाता है। कृषक अपने खेत में आये वर्षा जल को मेड़ बनाकर रोके तथा किसी उचित स्थान पर पक्का या कच्चा टांका निर्माण कर वर्षा के जल को भूजल स्त्रोत के पुनर्भरण हेतु प्रयुक्त करे इस हेतु 
  • 1 (i) सीधे जमीन में गड़ढ़े के जरिये या (ii) खाई बनाकर भूगर्भीय जल भंडार में उतार सकता है या (iii) कुओं के जरिये यह कार्य किया जा सकता है। (iv) ट्यूबवेल में एक विशेष फिल्टर लगाकर पाईप के जरिये पानी उतारा जा सकता है। (v) छत या खेत के पानी को सीधे किसी टैंक में जमा कर सकता ।  
  • 2. राज्य की परिस्थिति के अनुरूप कम जल खपत वाली फसले बोयें।

 

  • 3. गेहूँ, चावल, गन्ना जैसी नगदी फसलों के स्थान पर कम जल खपत वाली फसलो का उत्पादन लें। 
  • 4. फव्वारा सिंचाई एवं बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति का प्रयोग करें। 
  • 5. जल संरक्षण के क्षेत्र में हो रहे नवीन अनुसंधान को कृषि के क्षेत्र में शीघ्रता से लागू करें ।

 

7. जल संरक्षण में विद्यार्थियों का योगदान :

 

  • विद्यार्थी वर्ग समाज का बड़ा वर्ग है तथा अपने आस-पास की अच्छी जानकारी उसके पास होती है। जल के बुद्धिमतापूर्ण उपयोग की क्यों आवश्यकता है ? यह बात यदि वह समझ जाता है तो वह भविष्य में आने वाले भीषण जल संकट से बचाव हेतु अपना सक्रिय योगदान दे सकता है। परिवार, पास-पड़ौस, ग्राम, नगर में होने वाले जल के अपव्यय, जल प्रदूषण, जल के दुरूपयोग को रोकने हेतु, पीने के जल स्त्रोतों के आस-पास स्वच्छता बनाये रखने हेतु, वृक्षारोपण हेतु समाज के सभी स्तरो पर जागरूकता उत्पन्न कर सकता है। इस हेतु वह विद्यालय में अर्जित ज्ञान एवं संचार माध्यमों से प्राप्त जानकारी सरल एवं सहज रूप से जन-जन तक पहुँचा कर जल संरक्षण के कार्य को मूर्त रूप दे सकता है। विद्यार्थी स्वयं के उदाहरण द्वारा जल संरक्षण हेतु व्यक्ति को क्या करना चाहिए तथा क्या नहीं करना चाहिए का ज्ञान समाज के सभी वर्गों को करा सकता है ।

 

  • जल जीवन की एक बुनियादी जरूरत है जल संरक्षण से व्यक्ति परिवार ही नहीं बल्कि पूरे समाज और राष्ट्र का हित जुड़ा है इस अभियान में भागीदारी द्वारा हम एक राष्ट्रीय समस्या को सुलझाने में सहयोग दे सकते है सभी को पेयजल पहुँचाने और जल समस्या के स्थायी समाधान के लिए सरकार तो लगातार प्रयत्नशील है किन्तु जल की एक भी बूंद व्यर्थ न बहाने का हम सभी का संकल्प भावी जल संकट का समाधान है। इसके बारे में बड़े बुजुर्गो, बच्चों, पास-पड़ौसियों, मित्रों, समूहों से चर्चा कर उन्हें जल की बचत एवं संरक्षण के लिये जागरूक बनाना समय की मांग है। आइये हम सब मिलकर "जल संरक्षण अभियान की सफलता के लिए काम करें ।