राजस्थान की लोक कलाएँ -लोकगीत, लोकनाट्य, लोकनृत्य, लोकवाद्य और लोक चित्रकला . Rajsthani Lok Kala Details in Hindi - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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बुधवार, 19 जनवरी 2022

राजस्थान की लोक कलाएँ -लोकगीत, लोकनाट्य, लोकनृत्य, लोकवाद्य और लोक चित्रकला . Rajsthani Lok Kala Details in Hindi

 राजस्थान की लोक कलाएँ

राजस्थान की लोक कलाएँ -लोकगीत, लोकनाट्य, लोकनृत्य, लोकवाद्य और लोक चित्रकला . Rajsthani Lok Kala Details in Hindi


 

 राजस्थान की लोक कलाएँ

राजस्थान लोक कला के विविध आयामों का जनक रहा है। लोक कला के अन्तर्गत लोकगीतलोकनाट्यलोकनृत्यलोकवाद्य और लोक चित्रकला आती हैइसका विकास मौखिक स्मरण और रूढ़ियों के आधार पर दीर्घ काल से चला आ रहा है। ये लोक कलाएँ हमारी संस्कृति के प्राण है। मनोरजन का साधन है। लोक जीवन का सच्चा स्वरूप है।

 

राजस्थानी लोक नाट्य

 

  • मेवाड़अलवरभरतपुरकरौली और जयपुर में लोक कलाकारों द्वारा लोक भाषा में रामलीला तथा रासलीला बड़ी लोकप्रिय है। बीकानेर ओर जैसलमेर में लोक नाट्यों में 'रम्मतप्रसिद्ध है। इसमें राजस्थान के सुविख्यात लोकनायकों एवं महापुरूषों की ऐतिहासिक एवं धार्मिक काव्य रचनाओं का मंचन किया जाता है। इन रम्मतों के रचियता मनीराम व्यासफागु महाराजसुआ महाराजतेज कवि आदि है।

 

  • मारवाड़ में धर्म और वीर रस प्रधान कथानकों का मंचन 'ख्याल' (खेलनाटक) परम्परागत चला आ रहा हैइनमें अमरसिंह का ख्यालरूठिराणी रो ख्यालराजा हरिश्चन्द्र का ख्याल प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है। राजस्थान में भवाईनाट्यअनूठा है जिसमें पात्र व्यंग वक्ता होते है। संवादगायनहास्य और नृत्य इसकी प्रमुख विशेषताएँ है। मेवाड़ में प्रचलित 'गवरीएक नृत्य नाटिका है जो रक्षाबन्धन से सवा माह तक खेली जाती है।

 

गवरी - 

  • वादन संवादप्रस्तुतिकरण और लोक-संस्कृति के प्रतीकों में मेवाड़ की 'गवरीनिराली है। गवरी का उद्भव शिव-भस्मासुर की कथा से माना जाता है। इसका आयोजन रक्षाबन्धन के दूसरे दिन से शुरू होता है। गवरी सवा महिने तक खेली जाती है। इसमें भील संस्कृति की प्रमुखता रहती है। यह पर्व आदिवासी जाति पर पौराणिक तथा सामाजिक प्रभाव की अभिव्यक्ति है। गवरी में पुरुष पात्र होते हैं। इसके खेलों में गणपति कान- गुजरीजोगीलाखाबणजारा इत्यादि के खेल होते है।

 

राजस्थानी लोकनृत्य

 

राजस्थान में लोकनृत्य की परम्परा सदा से उन्नत रही है। यहाँ विभिन्न क्षेत्रों में लोकनृत्यों का विकास हुआ जिससे जनजीवन में जीवट और शौर्य के भावों की आनन्दअभिवृद्धि हुई है।

 

(अ) गैरनृत्य 

  • आदिवासी क्षेत्रों में होली के अवसर पर ढोलबांकिया तथा थाली की संगत में पुरूष अंगरखीधोतीपगड़ी पहनें हाथ में छड़िया लेकर गोल घेरे में नृत्य में भीली संस्कृति के दर्शन होते हैं।

 

(ब) गीदड़नृत्य - 

  • शेखावाटी क्षेत्र में लोग होली का डण्डा रोपने से सप्ताह भर तक नंगाडे की ताल पर पुरूष दो छोटे डंडे लेकर गीतों के साथ सुन्दर परिधान पहन कर नृत्य करतें है जिसे 'गीदड़नृत्यकहा जाता है। 

(स) ढोलनृत्य 

  • मरूस्थलीय प्रदेश जालोर में - शादी के समय मालीढोलीसरगड़ा और भील जाति के लोग 'थाकनाशैली में ढोलनृत्य करते हैं।

 

(द) बमनृत्य - 

  • अलवर और भरतपुर में फागुन की मस्ती में बड़े नगाड़े को दो बड़े डण्डों से बजाया जाता हैजिसे 'बमकहते है। इसी कारण इसे 'बमनृत्यकहते हैं।

 

(य) घूमरनृत्य 

  • यह राजस्थान का सर्वाधिक प्रसिद्ध लोकनृत्य हैइसे मांगलिक पर्वों पर महिलाओं द्वारा हाथों के लचकदार संचालन से ढ़ोलनगाड़ाशहनाई आदि संगत में किया जाता है।

 

(र) गरबा नृत्य - 

  • महिला नृत्य में गरबा भक्तिपूर्ण नृत्य कला का अच्छा उदाहरण है। यह नृत्य भाक्ति की आराधना का दिव्य रूप है जिसे मुख्य रूप से गुजरात में देखा जाता है। राजस्थान में डूंगरपुर और बाँसवाड़ा में इसका व्यापक प्रचलन है। इस तरह गुजरात और राजस्थान की संस्कृति के समन्वय का सुन्दर रूप हमें गरबानृत्य में देखने को मिलता है।

 

राजस्थान के अन्य लोकनृत्य - 

  • जसनाथी सिद्धों का अंगारा नृत्यभीलों का 'राईनृत्यगरासिया जाति का 'वालरनृत्यकालबेलियाजाति का 'कालबेलियानृत्यप्रमुख है। पेशेवर लोकनृत्यों में 'भवाई नृत्यतेरहताली नृत्य चमत्कारी कलाओं के लिए विख्यात है।

 

राजस्थान के लोकगीत - 

  • राजस्थानी लोकगीत मौखिक परम्परा पर आधारित मानस पटल की उपज हैजो सोलह संस्कारोंरीतिरिवाजोंसंयोगवियोग के अवसरों पर लोक भाषा में सुन्दर अभिव्यक्ति करते है। उदाहरणार्थ- खेलण दो गणगौरम्हारी घूमर छे नखराली एमायचिरमी आदि है।

 

राजस्थानी लोकवाद्य 

  • लोककला में राजस्थान के लोक वाद्यों का बड़ा महत्व हैइनके बिना नृत्यसंगीत भी अधूरा लगता है। यहाँ के प्रमुख लोक वाद्यों में रावण हत्था', तंदूरानंगाड़ेतीनताराजोगिया सारंगीपूंगी और भपंग उल्लेखनीय हैं।

 

राजस्थानी लोक चित्रकला

 

1. पथवारी 

  • गांवो में पथरक्षक रूप में पूजा जाने वाला स्थल जिस पर विभिन्न प्रकार के चित्र बने होते हैं। 

2. पाना - 

  • राजस्थान में कागज पर जो चित्र उकेरे जाते हैंउन्हें पाना कहा जाता है। 


3. मांडणा - 

  • राजस्थान में लोक चित्रकला की यह एक अनुठी परम्परा । त्योहारों एवं मांगलिक अवसरों पर पूजास्थल चौक पर ज्यामितीयवृतवर्ग या आड़ी तिरछी रेखाओं के रूप में 'मांडणाबनाये जाते हैं।

 

4. फड़ - 

  • कपड़ों पर किये जाने वाले चित्रांकन को 'फडकहा जाता है। 

5. सांझी - 

  • यह गोबर के घर के आंगनपूजास्थल अथवा चबुतरें पर बनाया जाता है।

 

  • लोकगीतलोकनाट्यलोकवाद्यलोक चित्रकला राजस्थानी संस्कृति एवं सभ्यता के प्रमुख अंग है। आदिकाल से लेकर आज तक इन कलाओं का विविध रूपों में विकास हुआ है। इन विधाओं के विकास में भक्तिप्रेमउल्लास और मनोरजन का प्रमुख स्थान रहा है। इनके पल्लवन में लोक आस्था की प्रमुख भूमिका रही है। बिना आस्था और विश्वास के इन लोक कलाओं के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। 
  • आज भी लोककला के मूल तत्त्व जन जीवन में विद्यमान हैं। त्योहारनृत्यसंगीतलोकवाद्यलोक कलाओंविभिन्न बोलियों एवं परिणाम के कारण ही राजस्थान को 'रंगीला राजस्थानकी संज्ञा दी जाती है। राजस्थान की सांझी संस्कृति के दर्शन यहाँ के जन-जीवन के साथ साहित्य में भी देखे जा सकते हैं। धर्म समभाव एवं सुलह-कुल की नीति यहाँ के धार्मिक जीवन का इतिहास के काल से ही मूल मंत्र रहा है।