राजस्थान के प्रमुख मेले । Rajsthan ke Pramukh Mele - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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बुधवार, 19 जनवरी 2022

राजस्थान के प्रमुख मेले । Rajsthan ke Pramukh Mele

 राजस्थान के प्रमुख मेले (Rajsthan ke Pramukh Mele)

राजस्थान के प्रमुख मेले Rajsthan ke Pramukh Mele
 

राजस्थान के प्रमुख मेले

  • राजस्थान के मेलें यहाँ की संस्कृति के परिचायक है। राजस्थान में मेलों का आयोजन धर्म लोकदेवतालोकसंत और लोक संस्कृति से जुड़ा हुआ है। मेलों में नृत्यगायनतमाशाबाजार आदि से लोगों में प्रेम व्यवहारमेल-मिलाप बढ़ता है। राजस्थान के प्रत्येक अंचल में मेले लगते है। इन मेलों का प्रचलन प्रमुखतः मध्य काल से हुआ जब यहाँ के शासकों ने मेलों को प्रारम्भ कराया। 

  • मेले धार्मिक स्थलों पर एवं उत्सवों पर लगने की यहाँ परम्परा रही है जो आज भी प्रचलित है। राजस्थान में जिन उत्सवों पर मेले लगते है उनमें विशेष हैं- गणेश चतुर्थीनवरात्रअष्टमीतीजगणगौरशिवरात्रीजन्माष्टमीदशहराकार्तिक पूर्णिमा आदि। इसी प्रकार धार्मिक स्थलों ( मंदिरों) पर लगने वाले मेलों में तेजाजीशीतलामातारामदेवजीगोगाजीजाम्बेश्वर जीहनुमान जीमहादेवआवरीमाताकेलादेवीकरणीमाताअम्बामाताजगदीश जीमहावीर जी आदि प्रमुख है।

 

  • राजस्थान के धर्मप्रधान मेलों में जयपुर में बालाजी काहिण्डोन के पास महावीर जी काअन्नकूट पर नाथद्वारा कागोठमांगलोद में दधिमती माता काएकलिंग जी शिवरात्री काकेसरिया में धुलेव का अलवर के पास भर्तहरि जी का और अजमेर के पास पुष्कर जी का मेला जयपुर का गलता मेला प्रमुख है। इन मेलों में लोग भक्तिभावना से स्नान एवं आराधना करते हैं ।

 

  • लोकसंतो और लोकदेवों की स्मृति एवं श्रद्धा में भी यहाँ अनेक मेलों का आयोजन होता है। रूणेचा में रामदेवजी कापरबतसर में तेजाजी काकोलगढ़ में पाबूजी काददेरवा में गोगाजी का देशनोक करणीमाता कानरेणा (जयपुर)- शाहपुरा (भीलवाड़ा) में फूलडोल का मुकाम में जम्भेश्वरजी कागुलाबपुरा में गुलाब बाबा का और अजमेर में ख्वाजा साहब का मेला लगता है। 


  • यह मेले जीवन धारा को गतिशीलता एवं आनंद प्रदान करते है शान्तिसहयोग और साम्प्रदायिक एकता को बढ़ाते है। मेलों का सांस्कृतिक पक्ष कला प्रदर्शन तथा सद्भावनाओं की अभिवृद्धि है। मेलों का महत्त्व देवों और देवियों की आराधनाओं की सिद्धि के लिए मनुष्य देवालयों में जाते हैं। मेलों से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सांस्कृतिक परिपाटी प्रवाहित होती है जो संस्कृति की निरन्तरता के लिए आवश्यक है। इसके अतिरिक्त मेले व्यापारिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैविशेषकर पशु मेले तथा इसका मनोरंजन के लिये भी महत्व है।