चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय | Chandra Sekhar Azad Short Biography in Hindi - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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शनिवार, 26 फ़रवरी 2022

चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय | Chandra Sekhar Azad Short Biography in Hindi

 चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय

 (Chandra  Sekhar Azad Short Biography in Hindi)

चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय | Chandra  Sekhar Azad Short Biogrphy in Hindi


चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय (Azad Biography in Hindi

  • 23 जुलाई, 1906
  • मृत्यु 27 फ़रवरी 1931 


भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ था।

चंद्रशेखर आजाद के पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी एवं माता का नाम जगदानी देवी था।

चंद्रशेखर आज़ाद का बचपन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र भाबरा में गुजरा था। उन्होंने इस आदिवासी परिवेश में चंद्रशेखर आजाद ने भीलो के साथ कुश्ती, तैराकी और धनुर्विद्या को सीखा। चंद्रशेखर आजाद ने भावरा में प्राथमिक शिक्षा पूरी की तथा 14 वर्ष की आयु में वे अध्ययन के लिए बनारस चले गए जहां पर उन्होंने एक संस्कृत पाठशाला में आगे की पढ़ाई की।


चंद्रशेखर आजाद और जलियांवाला बाग हत्याकांड

1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। इस हत्याकांड में हजारों निर्दोष लोगों को अंग्रेजों ने गोलियों से छलनी करवा दिया था। इस हत्याकांड की प्रतिक्रिया से न जाने कितनी ही क्रांतिकारियों का जन्म हुआ जिन्होंने भारत माता को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की प्रतिज्ञा ली। चंद्रशेखर आजाद भी इन्हीं क्रांतिकारियों में से एक थे।

हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशनहिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन

जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन की घोषणा की तो पूरे देश में क्रांति की लहर दौड़ गई। गांधी जी के दिखाए गए मार्ग पर चलते हुए विदेशी वस्तुओं, विदेशी शिक्षण संस्थानों, विदेशी संस्थाओं का बहिष्कार किया जाने लगा। इसी आंदोलन में 16 वर्षीय चंद्रशेखर आजाद गिरफ्तार किए गए और पेशी के दौरान उनसे जब कोर्ट ने सवाल पूछे तो चंद्रशेखर आजाद के दिए गए जवाब इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गए। कोर्ट में पेशी के दौरान उन्होंने अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वतंत्रता और घर का पता कालकोठरी को बताया था।

असहयोग आंदोलन को वापस लेने पर चंद्रशेखर आजाद समेत कई नौजवानों को बड़ी निराशा हुई। अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल योगेश चन्द्र चटर्जी ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशनकी स्थापना की। चंद्रशेखर आजाद का भी रुझान क्रांतिकारी विचारधारा की ओर हुआ जिसके उपरांत वे भी आजाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशनसे जुड़ गए।

आजाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशनसंगठन का लक्ष्य था क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए धन इकट्ठा करना और भारतीयों पर अत्याचार करने वाले ब्रिटिश लोगों का दमन। इसी क्रम में 1925 को काकोरी कांड को अंजाम देते हुए सरकारी खजाना को लूट लिया गया।

अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों की धरपकड़ करना शुरू कर दी, जल्द ही कई क्रांतिकारियों समेत अशफाक उल्ला खां, रामप्रसाद 'बिस्मिल पकड़ लिए गए। अशफाक उल्ला खां, रामप्रसाद 'बिस्मिल और रोशन सिंह को फांसी दे दी गई। चंद्रशेखर आजाद यहाँ से बच निकलने में कामयाब हुए एवं कुछ दिन झांसी में बिताने के बाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशनके मुख्यालय में पहुंचे। यहां पर उनकी मुलाकात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे अन्य क्रांतिकारियों से हुई।

इसके बाद चंद्रशेखर आजाद ने दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशनका पुनर्गठन करते हुए हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशनकी स्थापना की। इस संगठन के उद्देश्यों में समाजवाद के उद्देश्यों को भी शामिल किया गया।

इसी दौरान साइमन कमीशन का बहिष्कार करते हुए अंग्रेजों के लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई। संगठन के सदस्यों ने लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने की कसम खाई एवं लाहौर पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया गया। लेकिन सही पहचान ना होने के कारण पुलिस अधीक्षक एस्कॉर्ट की जगह सौंडर्स की हत्या कर दी गई।

चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह समेत अंग्रेजों की वांछित सूची में शीर्ष में शामिल हो गए लेकिन इसके बावजूद सारे लोग लाहौर से बच निकलने में कामयाब हुआ। आगे चलकर चंद्रशेखर आजाद के ना चाहते हुए भी भगत सिंह ने लाहौर की असेंबली में बम फेंकने की योजना बनाई। असेंबली में बम फेंकने के उपरांत भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को गिरफ्तार कर लिया गया। आजाद समेत 29 अन्य लोगों पर लाहौर साजिश के तहत मुकदमा चलाया गया लेकिन चंद्रशेखर आजाद यहां से भी बच निकलने में कामयाब हुए। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई।

चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु

चंद्रशेखर आजाद जवाहरलाल नेहरू से मिलने इलाहाबाद गए। जहाँ पर जवाहरलाल नेहरू ने चंद्रशेखर आजाद को मिलने से इंकार कर दिया। इसके उपरांत तुरंत चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद स्थित अल्फ्रेड पार्क चले आए। अल्फ्रेड पार्क में अपने मित्र सुखदेव के साथ मंत्रणा कर रहे थे तभी किसी ने मुखबिरी कर अंग्रेजों को चंद्रशेखर आजाद के बारे में सूचना दे दी। अंग्रेजों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। अपने जान की परवाह न करते हुए उन्होंने सुखदेव को वहां से बच निकलने में मदद की एवं खुद अंग्रेजों से भिड़ गए। काफी घायल हो जाने के बाद भी वह अंग्रेजों से लोहा लेते रहे एवं जब आखिरी गोली बची तो उन्होंने खुद को गोली मार ली।

आज़ाद की मृत्यु 27 फ़रवरी 1931 में 24 साल की उम्र में हो गई।