शरत चन्द्र बोस का जीवन परिचय ( Sharat Chandra Boss Short Biography
- शरत चन्द्र बोस
- जन्म 6 सितम्बर 1889 कलकत्ता, पश्चिम बंगाल
- मृत्यु फ़रवरी 20, 1950 कोलकाता, पश्चिम बंगाल
- पिता जानकी नाथ बोस
- पत्नी बिभावती देवी
शरत चन्द्र बोस का जीवन परिचय
शरत चंद्र बोस नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई थे। शरत चंद्र बोस का जन्म 6 सितंबर, 1889 को कोलकाता में हुआ था। उन्होंने पहले प्रेसीडेंसी कॉलेज में, फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय में अध्ययन
किया और फिर 1911 में बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड
चले गए। पेशेवर लिहाज से वह लगातार कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ रहे थे पर स्वाधीनता
की अलख सुन वे इस आंदोलन में शामिल हो गए। इसके बाद से तो देश और आजादी ही उनके
लिए सब कुछ होकर रह गया।
शरत चंद्र बोस महान कांग्रेस नेता
चितरंजन दास से बेहद प्रभावित थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भी वे उनके
प्रभाव में ही शामिल हुए। बोस ने असहयोग आदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया।
कांग्रेस कार्यकर्ता के तौर पर उनकी प्रतिबद्धता और लोकप्रियता का आलम यह रहा कि
कुछ ही दिनों में उनका नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अखिल भारतीय स्तर के नेता
के तौर पर शुमार होने लगा।
उन्हें 1936 में बंगाल प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष के रूप में चुना गया।
वे 1936 से 1947 तक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य भी रहे । शरतचंद्र बोस
केंद्रीय विधान सभा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता थे। 1946 में उन्हें अंतरिम सरकार में खान और
ऊर्जा मंत्रालय का प्रभार सौंपा गया था। इसी दौरान उन्होंने भाई सुभाष चंद्र बोस
के साथ मिलके इंडियन नेशनल आर्मी की नीव रखी। सुभाष चन्द्र की मृत्यु के बाद
उन्हांने इसकी जिम्मेदारी बखूबी निभाई 1947
में उन्होंने विभाजन के खिलाफ जोरदार विरोध किया और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति से
इस्तीफा दिया।
बोस के बारे में जानने और राष्ट्रीय
आंदोलन में उनके योगदान को समझने के लिए जो बात रेखांकित करनी जरूरी है, वह यह कि वे अहिंसक मूल्यों में यकीन
रखते थे। पर इस हिंसक प्रतिबद्धता के बावजूद उनके भीतर जोश और प्रखरता की एक मशाल
हमेशा जलती रही। क्रांतिकारियों के प्रति श्रद्धा और सहयोग की भावना उनके अंदर
हमेशा रही। यह भावना तब और संकर्मक तौर पर सामने आई जब कांग्रेस के साथ कुछ नीतिगत
सवालों पर उनके मतभेद सामने आए।
शरत चन्द्र बोस की मृत्यु
20 फरवरी 1950 को दुनिया को अलविदा कहने के पहले देश के इस महान सपूत ने राष्ट्र प्रेम के साथ नैतिक शपथ का जो कालजयी सुलेख रचा, वह देश और समाज के सामने आज भी सबक और मिशाल की सांझी इबारत की तरह है।