आर्यभट्ट के बारे में जानकारी, आर्यभट्ट के बारे में 10 लाइन,10 Line on Aryabhatta in Hindi
आर्यभट्ट के बारे में जानकारी (10 Line on Aryabhatta in Hindi)
- आर्यभट्ट पाँचवीं शताब्दी के गणितज्ञ, खगोलशास्त्री, ज्योतिषी और भौतिक विज्ञानी थे।
- आर्यभट्ट गुप्त काल (320 ईस्वी से 550 ईस्वी तक) के महान गणितज्ञ थे।
- उन्होंने आर्यभट्टीयम् (Aryabhattiyam) की रचना की जो उस समय के गणित का सारांश है। इसके चार खंड हैं।
- पहले खंड में उन्होंने वर्णमाला द्वारा बड़े दशमलव संख्याओं को दर्शाने की विधि का वर्णन किया है।
- दूसरे खंड में आधुनिक गणित के विषयों जैसे कि संख्या सिद्धांत, ज्यामिति, त्रिकोणमिति और बीजगणित का उल्लेख किया गया है।
- आर्यभट्ट के अनुसार, शून्य केवल एक अंक नहीं था बल्कि एक प्रतीक और एक अवधारणा भी थी। शून्य की खोज ने भी नकारात्मक अंकों के एक नए आयाम को खोल दिया।
- उन्होनें पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की सटीक दूरी का पता लगाया।
- आर्यभट्टीयम् के शेष दो खंड खगोल विज्ञान पर आधारित हैं जिन्हें खगोलशास्त्र भी कहा जाता है।
- ‘खगोल’ नालंदा विश्वविद्यालय में प्रसिद्ध खगोलीय वेधशाला थी जहाँ आर्यभट्ट ने अध्ययन किया था।
- उन्होंने इस दृष्टिकोण की अवहेलना की कि हमारा ग्रह स्थिर है तथा अपने सिद्धांत में बताया कि पृथ्वी गोल है और यह अपनी धुरी पर घूमती है।
- उन्होंने यह भी कहा कि सौरमंडल में चंद्रमा एवं अन्य ग्रह परावर्तित सूर्य के प्रकाश से चमकते हैं जो आधुनिक समय में सच साबित हुआ।
- आर्यभट्ट द्वारा रचित अन्य कृतियाँ दशगीतिका सूत्र तथा आर्याष्टशत हैं।
आर्यभट्ट का जीवन
आर्यभट्ट ने अपने ग्रन्थ ‘आर्यभटिया’ में अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 (476) लिखा है। इस जानकारी से उनके जन्म का साल तो निर्विवादित है परन्तु वास्तविक जन्मस्थान के बारे में विवाद है। कुछ स्रोतों के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म महाराष्ट्र के अश्मक प्रदेश में हुआ था और ये बात भी तय है की अपने जीवन के किसी काल में वे उच्च शिक्षा के लिए कुसुमपुरा गए थे और कुछ समय वहां रहे भी थे। हिन्दू और बौध परम्पराओं के साथ-साथ सातवीं शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ भाष्कर ने कुसुमपुरा की पहचान पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) के रूप में की है। यहाँ पर अध्ययन का एक महान केन्द्र, नालन्दा विश्वविद्यालय स्थापित था और संभव है कि आर्यभट्ट इससे जुड़े रहे हों। ऐसा संभव है कि गुप्त साम्राज्य के अन्तिम दिनों में आर्यभट्ट वहां रहा करते थे। गुप्तकाल को भारत के स्वर्णिम युग के रूप में जाना जाता है।