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बुधवार, 13 अप्रैल 2022

भारत शब्द कर अर्थ एवं व्याख्या | Bharat word Meaning and Explanation

 भारत शब्द कर अर्थ एवं व्याख्या 

 (Bharat word  Meaning and Explanation )

भारत शब्द कर अर्थ एवं व्याख्या | Bharat word  Meaning and Explanation



भारत शब्द कर अर्थ एवं व्याख्या


  • स्वयं भारत शब्द भी एक भू सांस्कृतिक अवधारणा को ही प्रस्तुत करता हैं, भारतीय संस्कृति में भूमि को माता माना गया हैएक भूमि पर रहने वाले समस्त जन उसके पुत्र हैंभारत जो इस देश के पूर्वजों में श्रेष्ठतम हैंउसके नाम पर इसे भारत कहा गया हैं। माता को ज्येष्ठ पुत्र के नाम से जोड़ कर बुलाने की परंपरा भी इस भूमि पर प्राप्त होती हैं।

  •  भारत शब्द का दूसरा अर्थ यह भी प्राप्त होता हैं कि 'भायानि प्रकाश, 'रतयानि लगा हुआअर्थात् प्रकाश की प्राप्ति में लगे हुए लोगों का जो जन भूमि संघात हैवह ही भारत हैं।

  • राष्ट्र शब्द वैदिक काल से ही अपने मूल अर्थ में प्राप्त होता हैं। राष्ट्र एक सुघटित इकाई हैंराज्य या किसी प्रकार की शासकीय सत्ता से इसका अर्थ सम्बन्ध रंच मात्र का भी नहीं हैंमाता भूमिभारती वाक्राष्ट्र इन वैदिक अवधारणाओं का पल्लवन ही भारत हैं। 

  • इस भारतवर्ष को एक यज्ञ वेदी के रूप में प्रस्तुत किया गया हैं। जो उत्तर की ओर ऊँची हैंदक्षिण की ओर ढलुआ है। इसे बाणयुक्त चढ़ा हुआ धनुष कहा गया हैं। हिमालय का विस्तार उस धनुष का आधार दण्ड हैं और दक्षिणपथ खिंची हुई डोरीजिसके बीच में बाण रखा हुआ हैं। कन्याकुमारी का अन्तरीप उस बाण की नोक हैं। इस भू-सांस्कृतिक अवधारणा का वर्णन सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में प्राप्त होता हैं । 
  • वेद जीवन की श्रेष्ठता को राष्ट्रीय सम्पन्नता की मांग में देखते हैंतो पुराण भारतवर्ष का विहंगम मानचित्र खींचते हैंपर्वतों एवं नदियों के माध्यम से समूचे भारत का विस्तृत वितान प्रस्तुत करते हैं। 
  • जीवन पद्धति की दृष्टि से भी प्रातः उठकरस्नान करते समयउपासना के समयसोते समयनदियोंनगरोंमहापुरूषों के स्मरण का एक ऐसा विधान नियोजित होता है जो किसी अन्य संस्कृति में दुर्लभ हैं। पूरब के व्यक्ति को पश्चिम सेपश्चिम के व्यक्ति को पूरब सेउतर का दक्षिण सेदक्षिण को उतर से प्रतिदिन के व्यवहार में जोड़ने और सुदूर भारत को अपने नित्य के अनुभव का विषय बनाने की जो अनुपम विधि प्रस्तावित की गयी हैंवह उत्कृष्टतम हैं। 
  • यह भारत-भाव ही जीवन विधि हैं, भारत-भाव की प्रतिष्ठा मात्रभारत के लिए नहीं हैंवह तो तभी चरितार्थ होता है जब हम अपने दायित्वों को करते हुएसबमें अपनी चेतना का दर्शन करते हुए, सबकी पीड़ा बांटते हुएसमस्त सृष्टि के कल्याण के लिए आकुलता का जागरण करते हुएअपनी भारतीयता को प्रमाणित करें ।