मारिया मान्टेसरी का जीवन परिचय
Mariya Montesory Short Biography in Hindi
मारिया मान्टेसरी का जीवन परिचय
मारिया मान्टेसरी का जन्म 1870 ई0
में इटली के एक सम्पन्न तथा सुशिक्षित परिवार में हुआ था । मारिया मान्टेसरी ने व्यवस्थित
ढंग से शिक्षा प्राप्त की और 1894
में, चौबीस वर्ष की अवस्था में उन्होंने रोम
विश्वविद्यालय से चिकित्सा में एम०डी० की उपाधि प्राप्त की। इसके उपरान्त इसी
विश्वविद्यालय में उन्हें मन्द बुद्धि बालकों की शिक्षा का दायित्व दिया गया। इस
कार्य के सम्पादन के दौरान उनकी रूचि शिक्षण पद्धति में जगी। मान्टेसरी ने पाया कि
मन्द बुद्धि बालकों के पिछड़ेपन का कारण उनकी ज्ञानेन्द्रियों का कमजोर होना है ।
मान्टेसरी ने अनुभव किया कि तत्कालिन शिक्षा पद्धति की एक प्रमुख कमी है सभी
विद्यार्थियों को एक ही विधि से समान शिक्षा का दिया जाना। ऐसी स्थिति में मन्द
बुद्धि बालक का पिछड़ना स्वभाविक है। परम्परागत विधि में इन पिछड़े विद्याथिर्यों
की शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी । मान्टेसरी ने इनकी शिक्षा के लिए अनेक प्रयोग
किये। उनके द्वारा विकसित की गई शिक्षा एवं प्रशिक्षण की विधि मान्टेसरी विधि' कहलाती है।
हुए मान्टेसरी विधि के उपयोग से पिछड़े बालकों
ने आश्चर्यजनक ढंग से प्रगति की । इटली की सरकार ने मान्टेसरी की सफलताओं को देखते
उन्हें बाल - गृह ( हाउस ऑफ चाइल्डहुड ) का अध्यक्ष बनाया। बाल गृह की अधीक्षक के
रूप में उन्होंने कई प्रयोग किए, प्रयोगात्मक
मनोविज्ञान का अध् ययन किया, लोम्ब्रोसे
और सर्गी जैसे विचारकों द्वारा प्रयुक्त शिक्षण विधि की जानकारी प्राप्त की।
उन्होंने शिक्षण-प्रशिक्षण को वैज्ञानिक बनाने हेतु लगातार निरीक्षण एवं प्रयोग
किये। मंद बुद्धि बालकों के संदर्भ में सफलता मिलने पर मान्टेसरी ने इसी विधि का
उपयोग सामान्य बच्चों की शिक्षा के लिए भी किया। मान्टेसरी के अनुसार जो पद्धति छह
वर्ष के मंद बुद्धि बालक के लिए उपयुक्त है वही पद्धति तीन वर्ष के सामान्य बुद्धि
के बालक के लिए उपयोगी है। अतः उन्होंने अपनी विधि का उपयोग दोनों ही तरह के
विद्यार्थियों को शिक्षित करने के लिए किया ।
मान्टेसरी ने अपनी विधि के संदर्भ में एक
पुस्तक 'मान्टेसरी मेथड' की रचना की। पूरे यूरोप में मान्टेसरी की विधि
लोकप्रिय होती गई। 1939 में थियोसोफिकल सोसाइटी के निमन्त्रण
पर मारिया मान्टेसरी भारत आई और मान्टेसरी विधि के संदर्भ में अनेक व्याख्यान
दिये। मद्रास में मान्टेसरी संघ की शाखा स्थापित की और अहमदाबाद में बड़ी संख्या
में अध्यापकों को मान्टेसरी पद्धति का प्रशिक्षण दिया। वे इण्डियन ट्रेनिंग कोचर्स
इंस्टीट्यूट, अडियार की निर्देशिका भी रहीं। इस तरह
से उन्होंने न केवल यूरोप वरन् भारत में भी मान्टेसरी पद्धति को लोकप्रिय बनाया ।
वस्तुतः सम्पूर्ण विश्व में शिशु शिक्षा के क्षेत्र में मान्टेसरी के प्रयोगों ने
क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया। वे लगातार शिशु शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत रहीं
अन्ततः 1952 ई० में इस महान अध्यापिका का देहावसान
हो गया।