शान्तितुल्यं तपो नास्ति न अर्थ (शब्दार्थ भावार्थ)
शान्तितुल्यं तपो नास्ति न अर्थ (शब्दार्थ भावार्थ)
शान्तितुल्यं तपो नास्ति न सन्तोषात्परं सुखम्।
न तृष्णायाः परो व्याधिर्न च धर्मो दयापरः ॥
शब्दार्थ-शान्ति के समान दूसरा कोई तप नहीं है, सन्तोष से श्रेष्ठ सुख नहीं है, तृष्णा से बढ़कर रोग नहीं है और दया से बढ़कर धर्म नहीं है। तृष्णा से बढ़कर कोई रोग नहीं है और दया से बढ़कर कोई धर्म नहीं है ।
"विमर्श-बूढ़ा होने पर बाल जीर्ण हो जाते हैं, दिखाई देना और सुनाई देना बन्द हो जाता है, परन्तु अकेली तृष्णा निरन्तर तरुण = जवान होती जाती है।
भावार्थ - शान्ति के समान कोई तप नहीं है, सन्तोष से श्रेष्ठ कोई सुख नहीं है,