क्रोधो वैवस्वतो राजा तृष्णा अर्थ (शब्दार्थ भावार्थ)
क्रोधो वैवस्वतो राजा तृष्णा वैतरणी नदी ।
विद्या कामदुधा धेनुः सन्तोषो नन्दनं वनम् ॥ ॥ अध्याय-8 श्लोक -14।।
शब्दार्थ-
क्रोध साक्षात् यमराज है, तृष्णा वैतरणी नदी है, विद्या कामनाओं को पूर्ण करने वाली अर्थात् विद्या कामधेनु है और सन्तोष नन्दन वन इन्द्र की वाटिका के समान है।
भावार्थ-
क्रोध साक्षात् यमराज है, तृष्णा वैतरणी नदी है, विद्या कामधेनु है और सन्तोष नन्दन वन के समान है ।
विमर्श - क्रोधी मनुष्य पाप कर डालता है, क्रोधी गुरुजनों की भी हत्या कर सकता है, क्रोध में भरा हुआ मनुष्य अपनी कठोर वाणी द्वारा श्रेष्ठ पुरुषों का भी अपमान कर बैठता है । तृष्णा वैतरणी नदी है। जैसे वैतरणी नदी को पार करना कठिन है, उसी प्रकार तृष्णा का छूटना भी कठिन है ।