क्रोधो वैवस्वतो राजा तृष्णा अर्थ (शब्दार्थ भावार्थ) | Chankya Niti in Hindi - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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गुरुवार, 1 सितंबर 2022

क्रोधो वैवस्वतो राजा तृष्णा अर्थ (शब्दार्थ भावार्थ) | Chankya Niti in Hindi

क्रोधो वैवस्वतो राजा तृष्णा अर्थ (शब्दार्थ भावार्थ) 

क्रोधो वैवस्वतो राजा तृष्णा अर्थ (शब्दार्थ भावार्थ) | Chankya Niti in Hindi




क्रोधो वैवस्वतो राजा तृष्णा वैतरणी नदी ।
 विद्या कामदुधा धेनुः सन्तोषो नन्दनं वनम् ॥ ॥ अध्याय-8 श्लोक -14।।

 

शब्दार्थ-

क्रोध साक्षात् यमराज हैतृष्णा वैतरणी नदी हैविद्या कामनाओं को पूर्ण करने वाली अर्थात् विद्या कामधेनु है और सन्तोष नन्दन वन इन्द्र की वाटिका के समान है। 

भावार्थ-

क्रोध साक्षात् यमराज हैतृष्णा वैतरणी नदी हैविद्या कामधेनु है और सन्तोष नन्दन वन के समान है ।


विमर्श - क्रोधी मनुष्य पाप कर डालता हैक्रोधी गुरुजनों की भी हत्या कर सकता हैक्रोध में भरा हुआ मनुष्य अपनी कठोर वाणी द्वारा श्रेष्ठ पुरुषों का भी अपमान कर बैठता है । तृष्णा वैतरणी नदी है। जैसे वैतरणी नदी को पार करना कठिन हैउसी प्रकार तृष्णा का छूटना भी कठिन है ।