अनुलोमेन बलिनं प्रतिलोमेन दुर्जनम् । आत्मतुल्यबलं शत्रुं विनयेन बलेन वा ॥ ॥ अध्याय 7 श्लोक 101
चाणक्य के अनुसार शत्रु से कैसा व्यवहार करना चाहिए
शब्दार्थ-
वलवान् शत्रु को उसके अनुकूल व्यवहार करके, दुष्ट शत्रु को उसके प्रतिकूल व्यवहार करके वश में करना चाहिए और अपने समान बल वाले शत्रु को विनय से अथवा बल से जीते, वश में करे ।
भावार्थ-
बलवान् शत्रु को उसके अनुकूल व्यवहार करके, दुष्ट शत्रु को उसके प्रतिकूल व्यवहार करके तथा अपने समान बल वाले शत्रु को विनय अथवा बल से जीतना या वश में करना चाहिए।
विमर्श -
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो जिस प्रवृत्ति का हो उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए ।