चाणक्य के अनुसार मनुष्य को इन परिस्थियों में स्नान कर लेना चाहिए
तैलाभ्यंगे चिताधूमे मैथुने क्षौरकर्मणि ।
तावद्भवति चाण्डालो यावत्स्नानं न चाऽचरेत्॥ ॥ अध्याय-8 श्लोक - 61
शब्दार्थ -
तेल की मालिश करने पर, चिता के धूम का स्पर्श होने पर, स्त्री के साथ सम्भोग करने के पश्चात् और हजामत बनवाने के पश्चात् मनुष्य जब तक स्नान नहीं कर लेता तब तक चाण्डाल होता है।
भावार्थ-
शरीर में तेल की मालिश करने के पश्चात् श्मशान में जाने पर, स्त्री के साथ मैथुन करने और हजामत बनवाने के पश्चात् मनुष्य जब तक स्नान नहीं कर लेता तब तक वह चाण्डाल होता है ।
विमर्श-
उपरोक्त श्लोक में बतायी गई परिस्थितियों में व्यक्ति जब तक स्नान नहीं कर लेता, तब तक वह चाण्डाल (अपवित्र) ही रहता है ।