चाणक्य के अनुसार कैसे लोगों से मित्रता करनी चाहिए | गम्यते यदि मृगेन्द्र - मन्दिरं लभ्यते अर्थ | Friendships According Chankya - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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गुरुवार, 25 अगस्त 2022

चाणक्य के अनुसार कैसे लोगों से मित्रता करनी चाहिए | गम्यते यदि मृगेन्द्र - मन्दिरं लभ्यते अर्थ | Friendships According Chankya

चाणक्य के अनुसार कैसे लोगों से मित्रता करनी चाहिए 

चाणक्य के अनुसार कैसे लोगों से मित्रता करनी चाहिए |  गम्यते यदि मृगेन्द्र - मन्दिरं लभ्यते  अर्थ | Friendships According Chankya


चाणक्य के अनुसार कैसे लोगों से मित्रता करनी चाहिए 



गम्यते यदि मृगेन्द्र - मन्दिरं लभ्यते करिकपोलमौक्तिकम् ।
 जम्बुकालयगते च प्राप्यते वत्स - पुच्छ-खर मर्च - खण्डनम्॥ ॥ अध्याय 7 श्लोक 181

 

शब्दार्थ - 

यदि कोई मनुष्य सिंह की गुफा में पहुंच जाए तो उसे वहाँ हाथी के मस्तक का मोती प्राप्त होता है और गीदड़ के स्थान में जाने पर बछड़े की पूंछ तथा गधे के चमड़े का टुकड़ा मिलता है।

 

भावार्थ -

 सिंह की गुफा में जाने पर हाथी के मस्तक का मोती प्राप्त होता है और गीदड़ के स्थान में जाने पर बछड़े की पूंछ तथा गधे के चमड़े का टुकड़ा मिलता है। 

विमर्श - 

आचार्य चाणक्य ने उपरोक्त श्लोक के माध्यम से कहा है कि बड़ों के साथ मैत्री करनी चाहिएनीच के साथ नहीं। नीच या शुद्ध जीव के निकट जाने पर कुछ भी प्राप्त नहीं होता ।