पुष्पे गन्धं तिले तैलं का अर्थ (शब्दार्थ भावार्थ)
पुष्पे गन्धं तिले तैलं का अर्थ (शब्दार्थ भावार्थ)
पुष्पे गन्धं तिले तैलं काष्ठेऽग्निं पयसि घृतम ।
ईक्ष गुडं तथा देहे पश्याऽऽत्मानं विवेकतः॥ ॥ अध्याय 7 श्लोक-21॥
शब्दार्थ-
हे मनुष्य ! जैसे तू पुष्प में सुगन्धि को, तिल में तेल को, लकड़ी में अग्नि को दूध में घी को, ईख में गुड़ को विचारपूर्वक देखता है, वैसे ही तू शरीर में स्थित आत्मा को विवेक से पश्य देखो ।
भावार्थ-
जैसे पुष्प में गन्ध होती है, तिलों में तेल, काष्ठ में अग्नि, दूध में घी और ईख में गुड़ होता है, वैसे ही शरीर में आत्मा = आत्मा और परमात्मा विद्यमान है। बुद्धि मनुष्य को विवेक के द्वारा आत्मा और परमात्मा का साक्षात्कार करना चाहिए ।
विमर्श -
आचार्य चाणक्य के उपरोक्त श्लोक में मूल भाव यह निहित है कि मानव-जीवन पाकर आत्मदर्शन के लिए प्रबल पुरुषार्थ करना चाहिए। परमात्मा हृदयरूपी मंदिर में रहता है । उसे ढूंढने के लिए बाहर जाने की आवश्यकता नहीं ।