वर्तमान जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 पारित कर दिया है, जिसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 370 के खण्ड 1 के सिवाय इस अनुच्छेद के सारे खण्डों को हटा दिया गया है और राज्य का विभाजन कर दो केन्द्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर (विधानसभा सहित) एवं लद्दाख (बिना विधानसभा) का गठन कर दिया गया। इस विधेयक के पारित होने के बाद से अब राज्य में अनुच्छेद 370(1) ही लागू रहेगा, जो संसद द्वारा जम्मू-कश्मीर के लिए कानून बनाने से संबंधित है।
जम्मू-कश्मीर का इतिहास
ब्रिटिश शासन की समाप्ति के साथ ही
जम्मू-कश्मीर 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हुआ। यहाँ के शासक महाराजा हरिसिंह ने फैसला लिया
कि वे भारत या पाकिस्तान में शामिल नहीं होंगे और स्वतंत्र रहेंगे। परंतु 20
अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान समर्थित आजाद कश्मीर सेना के द्वारा राज्य पर आक्रमण
करने के पश्चात, वहाँ
के शासक ने राज्य को भारत में विलय करने का निर्णय किया। इसके तहत 26 अक्टूबर, 1947 को पंडित जवाहरलाल नेहरू और
महाराजा हरिसिंह द्वारा ‘जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय-पत्र’ पर हस्ताक्षर किए
गए। इसके अंतर्गत राज्य ने केवल तीन विषयों- रक्षा, विदेशी मामले तथा संचार पर ही अपना अधिकार
छोड़ा था। उस समय भारत सरकार ने आश्वासन दिया था कि ‘इस राज्य के लोग अपने स्वयं
के संविधान द्वारा इस राज्य के आंतरिक संविधान तथा राज्य पर भारतीय संघ के अधिकार
क्षेत्र की प्रकृति तथा प्रसार को निर्धारित करेंगे और राज्य विधानसभा के फैसले तक
भारत का संविधान राज्य के संबंध में केवल अंतरिम व्यवस्था कर सकता है। इसके
परिणामस्वरूप भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 को शामिल किया गया। इसमें स्पष्टतः
कहा गया कि जम्मू-कश्मीर से संबंधित राज्य उपबंध केवल अस्थायी हैं स्थायी नहीं। यह
17 नवंबर, 1952
से संचालित हुआ।
जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति
भारत के संविधान के अधीन जम्मू-कश्मीर राज्य की
अनोखी स्थिति है। यह संविधान के अनुच्छेद 1 में परिभाषित भारत के राज्यक्षेत्र का
भाग है। यह संविधान की यथासंशोधित पहली अनुसूची में सम्मिलित 15वाँ राज्य है। मूल
संविधान में जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 1(3) में भाग ख (पहली अनुसूची में
विर्निदिष्ट संघ राज्यक्षेत्र) राज्य विर्निदिष्ट किया गया था। राज्य पुनर्गठन
अधिनियम, 1956
के द्वारा ‘भाग-ख’ राज्यों के प्रवर्ग का समापन (Cancellation) कर दिया गया। साथ ही संविधान (7वाँ
संशोधन) अधिनियम, 1956 के द्वारा राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 से किए गए परिवर्तनों को लागू
किया गया था और जम्मू-कश्मीर को भारत संघ की राज्यों की सूची में सम्मिलित कर लिया
गया।
गौरतलब है कि मूल संविधान के अनुच्छेद 370 के
द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेष सांविधानिक दर्जा दिया गया था जिससे भारत के संविधान
के सभी उपबंध जो पहली अनुसूची के राज्यों से संबंधित हैं, जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होते थे, यद्यपि वह उस अनुसूची में विर्निदिष्ट
राज्यों में से एक है। परंतु 5 अगस्त, 2019 को राष्ट्रपति के ओदश द्वारा जम्मू-कश्मीर
को प्राप्त यह विशेष दर्जा समाप्त कर दिया गया है, अतः उस पर वे सभी उपबंध उसी प्रकार लागू होंगे
जैसे अन्य राज्यों पर लागू होते हैं।
अनुच्छेद 370 की भूमिका
अनुच्छेद 370 के उपबंधों के अनुसार राष्ट्रपति ने ‘संविधान आदेश’ (जम्मू एवं कश्मीर के लिए अनुप्रयोग) नामक आदेश, 1950 में केंद्र का राज्य पर अधिकार क्षेत्र उल्लिखित करने के लिए जारी किया था। 1952 में, भारत सरकार एवं जम्मू-कश्मीर राज्य अपनी भविष्य के संबंधों हेतु दिल्ली में एक समझौते पर राजी हुए। 1954 में, जम्मू एवं कश्मीर की विधानसभा ने भारत में राज्य के विलय के साथ-साथ दिल्ली समझौते को पारित किया। तब राष्ट्रपति ने उसी नाम से एक अन्य आदेश जारी किया, जो कि संविधान आदेश (जम्मू एवं कश्मीर के लिए अनुप्रयोग), 1954 है। यह आदेश 1950 के आदेश का स्थान लेता है तथा राज्य पर संघ के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाता है। यह एक मूलभूत आदेश है, जो समय-समय पर सुधार एवं परिवर्तन के साथ, राज्य की संवैधानिक स्थिति एवं संघ के साथ इसके संबंध को व्यवस्थित रखता है।
अनुच्छेद 370 के प्रावधान-
जम्मू-कश्मीर भारतीय संघ का एक संवैधानिक राज्य
है और इसे भारत के संविधान के भाग-प् तथा अनुसूची 1 में रखा गया है। किंतु इसका
नाम, क्षेत्रफल
या सीमा को केंद्र द्वारा बिना इसके विधान सभा की सहमति से नहीं बदला जा सकता है।
जम्मू-कश्मीर राज्य का अपना संविधान है तथा इसी
संविधान द्वारा इस पर प्रशासन चलाया जाता है। अतः भारत के संविधान का भाग-टप्
(राज्य सरकार से संबंधित) इस राज्य पर लागू नहीं है। इस भाग के अंतर्गत राज्य की
परिभाषा में जम्मू एवं कश्मीर शामिल नहीं है।
संसद राज्य के संबंध में संघ सूची में उल्लिखित
विषयों पर और समवर्ती सूची में उल्लिखित विषयों पर विधि बना सकती है। परंतु
अवशेषीय शक्तियाँ राज्य विधानमंडल के पास हैं सिवाय आतंकवादी कृत्यों में संलिप्त
को संरक्षण, भारत
के राज्यक्षेत्र की अखण्डता और संप्रभुता पर प्रश्न या विघटन करने वाले मामले, राष्ट्रीय झण्डे, राष्ट्रगान और भारत के संविधान का
सम्मान न करना।
भाग-VI (राज्य
नीति के निदेशक तत्वों से संबंधित) तथा भाग-IV क
(मूल कर्तव्यों से संबंधित) राज्य पर लागू नहीं होते। हिन्दू विवाह (1955), सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) एवं अनुसूचित
जाति-जनजाति अधिनियम (1989) लागू नहीं होते।
भाग-III (मूल
अधिकारों से संबंधित) कुछ अपवादों एवं शर्तों के साथ राज्य पर लागू हैं। राज्य में
संपत्ति मूल अधिकार की श्रेणी में आता है।
आंतरिक असंतुलन की स्थिति में घोषित आपातकाल
राज्य के विधानमंडल की सहमति के बिना नहीं लागू होगी।
राष्ट्रपति को राज्य के संबंध में वित्तीय
आपातकाल (अनुच्छेद 360) की घोषणा करने का अधिकार नहीं है।
राष्ट्रपति राज्य के संविधान को उसके दिए
निर्देशों (अनुच्छेद 365) को न मानने की स्थिति में विघटित नहीं कर सकता।
राज्य आपातकाल (राष्ट्रपति शासन) राज्य पर लागू
है। फिर भी, यह आपातकाल राज्य पर संवैधानिक तंत्र
के (राज्य संविधान के न कि भारतीय संविधान के) विफल होने पर लागू हो सकता है।
वास्तव में राज्य में दो तरीके से आपातकाल घोषित हो सकता है, जिनमें प्रथम भारतीय संविधान के अंतर्गत
राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद-35A6)
तथा दूसरा राज्य संविधान के अंतर्गत राज्यपाल शासन (धारा 92) है। 1986 में प्रथम
बार राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा था।
राज्य के किसी क्षेत्र को प्रभावित करने वाली
अंतर्राष्ट्रीय संधि या सहमति को केंद्र, जम्मू-कश्मीर
राज्य विधानमण्डल की सहमति के बिना प्रभावी नहीं कर सकता।
भारत के संविधान में किसी प्रकार का संशोधन
राज्य पर लागू नहीं होता,
जब तक कि यह राष्ट्रपति के आदेश द्वारा
विस्तारित न हो जाए।
राजभाषा उपबंध राज्य पर प्रयोज्य है, जहां तक की संघ की राजभाषा, अंतर राज्य राजभाषा और केंद्र राज्य संचार और
उच्चतम न्यायालय की कार्यवाहियों की भाषा का संबंध है।
5वीं अनुसूची (अनुसूचित क्षेत्रें एवं अनुसूचित
जनजातीय पर प्रशासन एवं नियंत्रण से संबंधित) तथा 6ठी अनुसूची (जनजातीय क्षेत्र के
प्रशासन से संबंधित) इस राज्य पर लागू नहीं होती।
उच्चतम न्यायालय के विशेष अधिकार, चुनाव आयोग, नियंत्रक
एवं महालेखापरीक्षक का अधिकार क्षेत्र राज्य पर लागू है।
जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय को वे सभी
शक्तियाँ प्राप्त होंगी जो अन्य राज्यों के उच्च न्यायालयों को प्राप्त हैं, सिवाय इसके कि वह ‘अन्य प्रयोजन’ के लिए रिट
जारी नहीं कर सकता। उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता (केवल अनुच्छेद 135 और 139 को
छोड़कर) उस राज्य पर है।
अनुच्छेद 22 के अन्तर्गत निवारक एवं निरोधक
अधिकार अधिनियम बनाने का अधिकार केवल राज्य विधान सभा को दिया गया है। सामान्य रूप
से यह केन्द्र का अधिकार है।
पाकिस्तान जाने वालों को नागरिक अधिकार के
निषेध संबंधी भाग-II का प्रावधान जम्मू कश्मीर में स्थायी
रूप से रहने वाले उन लोगों पर लागू नहीं होता जो पाकिस्तान जाकर पुनः राज्य में
विस्थापित हुए हैं। ऐसे सभी व्यक्तियों को भारत का नागरिक माना जाता है।
अनुच्छेद-35A हटाने के औचित्य और 370 के अप्रभावी होने के मायने
वर्तमान उपबंधों के अनुसार यदि जम्मू-कश्मीर की
लड़कियाँ किसी गैर जम्मू-कश्मीर राज्य के लड़के से शादी कर लेती हैं, तो उन्हें भी जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने का
अधिकार नहीं होता है और उनके बच्चों को भी सभी प्रकार के अधिकार से वंचित कर दिया
जाता है। इस प्रकार अनुच्छेद-35A महिला
अधिकारों और समानता के अधिकार का भी हनन करता है।
भारत की आजादी के समय दलित समुदाय के लोग
पश्चिमी पाकिस्तान से आकर यहाँ बस गये थे और उन्हें वहाँ की सरकारी नौकरियों से
वंचित रखा जाता था, इसलिए उन्हें हाथ से मैला ढोने का काम
करना पड़ता था। इस प्रकार अनुच्छेद-35A दलित
अधिकारों का भी हनन करता है। अनुच्छेद 35A के
हटने से वहाँ दलित समुदायों को भी सरकारी नौकरियों में स्थान मिल सकेगा।
भारत के अन्य राज्यों से जो लोग काफी समय से
जम्मू-कश्मीर में अपना रोजगार कर रहे हैं और वहीं रह रहे हैं, उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं है। अतः
अनुच्छेद-35A के हटने से उन्हें भी वोट देने का
अधिकार मिल जाएगा।
अनुच्छेद-35A के लागू रहने से जम्मू-कश्मीर में अन्य राज्यों के लोगों को संपत्ति
खरीदने का कोई अधिकार नहीं था, इसलिए
उससे निवेश प्रभावित होता था। इस अनुच्छेद के हटाये जाने से अब वहाँ पर्याप्त
संख्या में निवेशक आएँगे और निवेश करेंगे, जिससे
रोजगार के अवसर खुलेंगे और जम्मू-कश्मीर का विकास होगा।
अनुच्छेद-35A के हटाये जाने से अब देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार (Equal Rights) मिल गया है। साथ ही अब जाकर सही अर्थों में
भारत का एकीकरण (True Integration)
हुआ है।
अनुच्छेद-35A। के हटाये जाने से अब सुरक्षा स्थितियों को भी बेहतर तरीके से
नियंत्रित किया जा सकेगा।
जम्मू-कश्मीर में लगभग पिछले 70 वर्षों से
हिंसा की घटनाएँ देखने को मिल रही थीं, जिससे
विकास के कार्य अवरूद्ध हो जाते थे। इस अनुच्छेद को हटाये जाने से हिंसा पर लगाम
लगाने और विकास की गतिविधियों को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
अनुच्छेद-35A को हटाने और 370 को अप्रभावी करने के विपक्ष में तर्क
विधि विशेषज्ञों का कहना है कि ‘संविधान सभा’
को विधान सभा के समतुल्य नहीं माना जा सकता है, जैसा
कि सरकार ने किया है। यह तर्कसंगत नहीं है।
साथ ही उनका कहना है कि सरकार ने खुद ही सहमति
ले ली है क्योंकि राज्यपाल तो केन्द्र के ही प्रतिनिधि होते हैं, ना कि वहाँ की जनता के।
इस कदम से कश्मीर के युवाओं में उग्रवाद एवं
अलगाववाद की भावना और पनपेगी।
आज के परिप्रेक्ष्य में अनुच्छेद 370 के द्वारा
दी गयी ‘विशेष दर्जे’ को काफी हद तक मन्द (Dilute) किया गया है,
क्योंकि संविधान के कुल अनुच्छेद 395
में से लगभग 260 अनुच्छेद,
कुल 12 अनुसूचियों में से 7 अनुसूचियाँ
और संघ सूची (97 विषय) में से 94 विषय वहाँ पर लागू होते हैं। वहीं विधि विशेषज्ञों
का कहना है कि जब इस हद तक अनुच्छेद 370 को मन्द किया जा चुका है, तो सरकार को चाहिए था कि एकाएक अनुच्छेद 370 को
अप्रभावी करने के बजाय अगर धीरे-धीरे अनुच्छेद 370 को मंद किया जाता तो यह एक
बेहतर तरीका साबित हो सकता था।
अनुच्छेद-370 के अप्रभावी होने से होने वाले
परिवर्तन
अब जम्मू-कश्मीर में देश के अन्य राज्यों के
लोग भी जमीन खरीद सकेंगे।
जम्मू-कश्मीर का अब अलग झंडा नहीं होगा। वहां
अब तिरंगा झंडा लहराएगा। जम्मू-कश्मीर में अब तिरंगे का अपमान या उसे जलाना या
नुकसान पहुँचाना संगीन अपराध की श्रेणी में आएगा।
अब वहाँ भी भारत का संविधान लागू होगा।
जम्मू-कश्मीर में स्थानीय लोगों को जो विशेष
अधिकार दिए गए हैं वे समाप्त हो जाऐंगे।
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अब अलग-अलग केंद्र
शासित प्रदेश होंगे। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होगी, लेकिन लद्दाख में विधानसभा नहीं होगी।
अब अनुच्छेद-370 का खंड-1 केवल लागू रहेगा। शेष
खंड समाप्त कर दिए गए हैं। खंड-1 भी राष्ट्रपति द्वारा लागू किया गया था।
राष्ट्रपति द्वारा इसे भी हटाया जा सकता है। अनुच्छेद 370 के खंड-1 के मुताबिक
जम्मू और कश्मीर की सरकार से सलाह कर राष्ट्रपति, संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को जम्मू और कश्मीर पर लागू कर सकते
हैं।
जम्मू-कश्मीर की लड़कियों को अब दूसरे राज्य के
लोगों से भी शादी करने की स्वतंत्रता होगी। दूसरे राज्य के पुरुष से शादी करने पर
उनकी नागरिकता खत्म नहीं होगी। जैसा कि अब तक होता रहा है।
जम्मू-कश्मीर सरकार का कार्यकाल अब छह साल का
नहीं, बल्कि पांच वर्ष का ही होगा।
भारत का कोई भी नागरिक अब जम्मू-कश्मीर में
सरकारी नौकरी कर सकेगा। अब तक जम्मू-कश्मीर में केवल स्थानीय लोगों को ही सरकारी
नौकरी का अधिकार था।
इस कदम से भाग-VI (राज्य नीति के निदेशक तत्वों से संबंधित) तथा भाग-VI क (मूल कर्तव्यों से संबंधित) हिन्दू विवाह
(1955), सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) एवं
अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम (1989) राज्य पर लागू होंगे।
रणबीस दंड संहिता के स्थान पर भारतीय दंड
संहिता प्रभावी होगी तथा नए कानून या कानूनों में बदलाव स्वतः जम्मू-कश्मीर में भी
लागू हो जाएंगे।
अनुच्छेद-35A
अनुच्छेद-35A को मई 1954 में राष्ट्रपति के आदेश द्वारा इसे संविधान में जोड़ा
गया।
1954 के जिस आदेश से अनुच्छेद-35A को संविधान में जोड़ा गया था, वह आदेश अनुच्छेद 370 की उपधारा (1) के अंतर्गत
राष्ट्रपति द्वारा पारित किया गया था।
यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर विधान सभा को स्थायी
नागरिक की परिभाषा तय करने का अधिकार देता है।
राज्य जिन नागरिकों को स्थायी अधिवासी घोषित
करता है केवल वही राज्य में संपत्ति खरीदने, सरकारी
नौकरी प्राप्त करने एवं विधानसभा चुनावों में मतदान का अधिकार रखते हैं।
यदि जम्मू-कश्मीर का निवासी राज्य से बाहर के
किसी व्यत्तिफ़ से विवाह करता है तो वह यह नागरिकता खो देगा।
अनुच्छेद 370 का इतिहास
17 अक्तूबर, 1949 को संविधान में शामिल, अनुच्छेद
370 भारतीय संविधान से जम्मू-कश्मीर को छूट देता
है (केवल अनुच्छेद 1 और अनुच्छेद 370 को छोड़कर) और राज्य को अपने संविधान का मसौदा
तैयार करने की अनुमति देता है।
यह तब तक के लिये एक अंतरिम व्यवस्था मानी गई
थी जब तक कि सभी हितधारकों को शामिल करके कश्मीर मुद्दे का अंतिम समाधान हासिल
नहीं कर लिया जाता।
यह राज्य को स्वायत्तता प्रदान करता है और इसे
अपने स्थायी निवासियों को कुछ विशेषाधिकार देने की अनुमति देता है।
राज्य की सहमति के बिना आंतरिक अशांति के आधार
पर राज्य में आपातकालीन प्रावधान पर लागू नहीं होते हैं|
राज्य का नाम और सीमाओं को इसकी विधायिका की
सहमति के बिना बदला नहीं जा सकता है।
राज्य का अपना अलग संविधान, एक अलग ध्वज और एक अलग दंड संहिता (रणबीर दंड
संहिता) है।
राज्य विधानसभा की अवधि छह साल है, जबकि अन्य राज्यों में यह अवधि पाँच साल है।
भारतीय संसद केवल रक्षा, विदेश और संचार के मामलों में जम्मू-कश्मीर के
संबंध में कानून पारित कर सकती है। संघ द्वारा बनाया गया कोई अन्य कानून केवल
राष्ट्रपति के आदेश से जम्मू-कश्मीर में तभी लागू होगा जब राज्य विधानसभा की सहमति
हो।
राष्ट्रपति, लोक
अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकते हैं कि इस अनुच्छेद को तब तक कार्यान्वित नहीं किया
जा सकेगा जब तक कि राज्य विधानसभा इसकी सिफारिश नहीं कर देती है|
अनुच्छेद 35A की जानकारी
अनुच्छेद 35A, जो
कि अनुच्छेद 370 का विस्तार है, राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करने के
लिये जम्मू-कश्मीर राज्य की विधायिका को शक्ति प्रदान करता है और उन स्थायी
निवासियों को विशेषाधिकार प्रदान करता है तथा राज्य में अन्य राज्यों के निवासियों
को कार्य करने या संपत्ति के स्वामित्व की अनुमति नहीं देता है।
इस अनुच्छेद का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर की
जनसांख्यिकीय संरचना की रक्षा करना था।
अनुच्छेद 35A की
संवैधानिकता पर इस आधार पर बहस की जाती है कि इसे संशोधन प्रक्रिया के माध्यम से
नहीं जोड़ा गया था। हालाँकि, इसी
तरह के प्रावधानों का इस्तेमाल अन्य राज्यों के विशेष अधिकारों को बढ़ाने के लिये
भी किया जाता रहा है।
अनुच्छेद 35A और 370 को रद्द करने से संबंधित मुद्दे
वर्तमान में इन अनुच्छेदों से मिले अधिकारों को
कश्मीरियों द्वारा धारित एकमात्र महत्त्वपूर्ण स्वायत्तता के रूप में माना जाता
है। अत: इससे छेड़छाड़ से व्यापक प्रतिक्रिया की संभावना है।
यदि अनुच्छेद 35A को संवैधानिक रूप से निरस्त कर दिया जाता है तो जम्मू-कश्मीर 1954 के पूर्व की स्थिति में वापस आ जाएगा। उस
स्थिति में केंद्र सरकार की राज्य के भीतर रक्षा, विदेश मामलों और संचार से संबंधित शक्तियाँ समाप्त हो जाएंगी।
यह भी तर्क दिया गया है कि अनुच्छेद 370 के तहत राज्य को दी गई कई प्रकार की
स्वायत्तता वैसे भी कम हो गई है और संघ के अधिकांश कानून जम्मू-कश्मीर राज्य पर भी
लागू होते हैं।
इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन (IOA) क्या होता है
विलय का प्रारूप (Instrument
of Accession-IOA) इसलिये
बनाया गया था क्योंकि भारत के दो हिस्से किये जा रहे थे- एक का नाम भारत और दूसरे
का नाम पाकिस्तान, अतः ऐसे में विलय पत्र का होना ज़रूरी था। विलय प्रारूप बनाकर 25
जुलाई, 1947
को गवर्नर जनरल माउंटबेटन की अध्यक्षता में सभी रियासतों को बुलाया गया। इन सभी
रियासतों को बताया गया कि आपको अपना विलय करना है, चाहे हिंदुस्तान में करें या पाकिस्तान में, यह उनका निर्णय है। यह विलय पत्र सभी
रियासतों के लिये एक ही फॉर्मेट में बनाया गया था जिसमें कुछ भी लिखना या काटना
संभव नहीं था। इस विलय पत्र पर रियासतों के प्रमुख राजा या नवाब को अपना नाम, पता, रियासत का नाम और सील लगाकर उस पर हस्ताक्षर
करके गवर्नर जनरल को देना था, जिसे यह निर्णय लेना था कि कौन सी रियासत किस देश के साथ रह सकती है।
26 अक्तूबर, 1947 को महाराजा हरि सिंह द्वारा दस्तखत किये
गए संधि-पत्र को भी इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन कहा जाता है। इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के ज़रिये अमल में आया था। दरअसल कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने
शुरू में स्वतंत्र रहने का फैसला किया था, लेकिन पाकिस्तान के कबायली आक्रमण के बाद
उन्होंने भारत से मदद मांगी तथा कश्मीर को भारत में शामिल करने पर रज़ामंदी जताई।
गौरतलब है कि महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर, 1947 को इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर
किये और गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने 27 अक्तूबर, 1947 को इसे स्वीकार कर लिया। इसमें न कोई शर्त
शामिल थी और न ही रियासत के लिये विशेष दर्जे जैसी कोई मांग। इस वैधानिक दस्तावेज़
पर दस्तखत होते ही समूचा जम्मू और कश्मीर, जिसमें पाकिस्तान के अवैध कब्ज़े वाला इलाका (POK) भी शामिल है, भारत का अभिन्न अंग बन गया।
इस अधिनियम के ज़रिये ब्रिटिश साम्राज्य का
भारत और पाकिस्तान में बँटवारा हुआ और भारत एक स्वतंत्र देश बना। तब करीब 600 रियासतों
की आज़ादी बहाल रखी गई थी। इस अधिनियम में तीन विकल्प दिये गए थे- आज़ाद देश बने
रहें, भारत
में मिल जाएँ या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ। रियासतों के भारत या पाकिस्तान
में विलय का आधार इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन को बनाया गया था। इसके लिये कोई तय
रूपरेखा नहीं थी। इसलिये यह रियासतों पर निर्भर था कि वे किन शर्तों पर भारत
या पाकिस्तान में शामिल होती हैं।