पारसी नववर्ष: नवरोज़ |नवरोज़ के बारे में जानकारी | Parsi New Year Navroz Details in Hindi - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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सोमवार, 8 अगस्त 2022

पारसी नववर्ष: नवरोज़ |नवरोज़ के बारे में जानकारी | Parsi New Year Navroz Details in Hindi

 पारसी नववर्ष: नवरोज़ , नवरोज़ के बारे में जानकारी 

पारसी नववर्ष: नवरोज़ |नवरोज़ के बारे में जानकारी | Parsi New Year Navroz Details in Hindi


भारत में 16 अगस्त को नवरोज उत्सव मनाया जा रहा है। 

संपूर्ण विश्व में उत्तरी गोलार्द्ध में वसंत विषुव (वसंत की शुरुआत का प्रतीक) के समय नवरोज़ त्योहार मनाया जाता है।

 

नवरोज़ के बारे में जानकारी 

 

नवरोज़ को पारसी नववर्ष के नाम से भी जाना जाता है। 

फारसी में 'नव' का अर्थ है नया और 'रोज़' का अर्थ है दिन, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'नया दिन'(New Day). 

हालांँकि वैश्विक स्तर पर इसे मार्च में मनाया जाता है। नवरोज़ भारत में 200 दिन बाद आता है और अगस्त के महीने में मनाया जाता है क्योंकि यहांँ पारसी शहंशाही कैलेंडर (Shahenshahi Calendar) को मानते हैं जिसमें लीप वर्ष नहीं होता है।

 

भारत में नवरोज़ को फारसी राजा जमशेद के बाद से जमशेद-ए-नवरोज़ (Jamshed-i-Navroz) के नाम से भी जाना जाता है। राजा जमशेद को शहंशाही कैलेंडर बनाने का श्रेय दिया जाता है।

 

इस त्योहार की खास बात यह है कि भारत में लोग इसे वर्ष  में दो बार मनाते हैं- पहला ईरानी कैलेंडर के अनुसार और दूसरा शहंशाही कैलेंडर के अनुसार जिसका पालन भारत और पाकिस्तान में लोग करते हैं। यह त्योहार जुलाई और अगस्त माह के मध्य आता है।

 

इस परंपरा को दुनिया भर में ईरानियों और पारसियों द्वारा मनाया जाता है।

 

वर्ष 2009 में नवरोज़ को यूनेस्को द्वारा भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल  किया गया था।

 

इस प्रतिष्ठित सूची में उन अमूर्त विरासत तत्त्वों को शामिल किया जाता है जो सांस्कृतिक विरासत की विविधता को प्रदर्शित करने और इसके महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद करते हैं।

 

पारसी धर्म (ज़ोरोएस्ट्रिनिइज़्म)

 

पारसी धर्म/ज़ोरोएस्ट्रिनिइज़्म पारसियों द्वारा अपनाए जाने वाले सबसे पहले ज्ञात एकेश्वरवादी विश्वासों में से एक है। 

इस धर्म की आधारशिला 3,500 वर्ष पूर्व प्राचीन ईरान में पैगंबर जरथुस्त्र (Prophet Zarathustra) द्वारा रखी गई थी। 

यह 650 ईसा पूर्व से 7वीं शताब्दी में इस्लाम के उद्भव तक फारस (अब ईरान) का आधिकारिक धर्म था और 1000 वर्षों से भी अधिक समय तक यह  प्राचीन विश्व के महत्त्वपूर्ण  धर्मों में से एक था।

जब इस्लामी सैनिकों ने फारस पर आक्रमण किया, तो कई पारसी लोग भारत (गुजरात) और पाकिस्तान में आकर बस गए। 

पारसी ('पारसी' फारसियों के लिये गुजराती है) भारत में सबसे बड़ा एकल समूह है।  विश्व में इनकी कुल अनुमानित आबादी 2.6 मिलियन है। 

पारसी अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों में से एक है। 


पारंपरिक नववर्ष के त्योहार

 

चैत्र शुक्लादि: 

यह विक्रम संवत के नववर्ष की शुरुआत को चिह्नित करता है जिसे वैदिक [हिंदू] कैलेंडर के रूप में भी जाना जाता है। 

विक्रम संवत उस दिन से संबंधित है जब सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर एक नए युग का आह्वान किया।

 

गुड़ी पड़वा और उगादि: 

ये त्योहार कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र सहित दक्कन क्षेत्र में लोगों द्वारा मनाए जाते हैं।

 

नवरेह: 

यह कश्मीर में मनाया जाने वाला चंद्र नववर्ष है तथा इसे  चैत्र नवरात्रि के पहले दिन आयोजित किया जाता है।

 

शाजिबू चीरोबा: 

यह मैतेई (मणिपुर में एक जातीय समूह) द्वारा मनाया जाता है जो मणिपुर चंद्र माह शाजिबू  (Manipur lunar month Shajibu) के पहले दिन मनाया जाता है, यह हर वर्ष अप्रैल के महीने में आता है।

 

चेटी चंड: 

सिंधी ‘चेटी चंड’ को नववर्ष के रूप में मनाते हैं। चैत्र माह को सिंधी में 'चेत' कहा जाता है। 

यह दिन सिंधियों के संरक्षक संत उदयलाल/झूलेलाल की जयंती के रूप में मनाया जाता है।

 

बिहू: 

यह साल में तीन बार मनाया जाता है। 

बोहाग बिहू या रोंगाली बिहू, जिसे हतबिहू (सात बिहू) भी कहा जाता है, यह असम तथा पूर्वोत्तर भारत के अन्य भागों में मनाया जाने वाला एक पारंपरिक आदिवासी जातीय त्योहार है। 

रोंगाली या बोहाग बिहू असमिया नववर्ष और वसंत त्योहार है।

 

बैसाखी:

 

इसे भारतीय  किसानों द्वारा धन्यवाद दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

सिख समुदाय के लिये भी इसका धार्मिक महत्त्व है क्योंकि इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह द्वारा खालसा पंथ की नींव रखी गई थी।

 

लोसूंग:

 

इसे नामसूंग के रूप में भी जाना जाता है, यह सिक्किम का नया वर्ष  है। 

यह आमतौर पर वह समय होता है जब किसान खुश होकर अपनी फसल का जश्न मनाते हैं।