निर्विषेणाऽपि सर्पेण कर्तव्या शब्दार्थ भावार्थ
निर्विषेणाऽपि सर्पेण कर्तव्या शब्दार्थ भावार्थ
निर्विषेणाऽपि सर्पेण कर्तव्या महती फणा । विषमस्तु न चाप्यस्तु घटाटोपो भयङ्करः ॥
शब्दार्थ - विषहीन सर्प के द्वारा भी अपना बड़ा भारी फन फैलाना चाहिए, उसमें विष हो अथवा न हो आडम्बर भयंकर होता है ।
भावार्थ - विषहीन सांप को भी अपना बड़ा फन फैलाना चाहिए, उसमें विष है या नहीं, इस बात को कौन जानता है, हाँ आडम्बर से दूसरे लोग भयभीत अवश्य हो जाते हैं।
विमर्श - आचार्य चाणक्य कहते हैं कि शक्तिहीन होने पर भी मनुष्य को शक्तिशाली होने का अवश्य दिखावा करना चाहिए अन्यथा उसे कष्ट पहुंचाने लगेंगे ।