एकवृक्षमसारूढा नाना वर्णाः का अर्थ
एकवृक्षमसारूढा नाना वर्णाः का अर्थ
एकवृक्षमसारूढा नाना वर्णाः विहङ्गमाः । प्रभाते दिक्षु दशसु का तत्र परिदेवना ॥
शब्दार्थ -
विविध रंग-रूपों के पक्षी एक वृक्ष पर बैठते हैं और प्रभातबेला में, प्रातःकाल दस दिशाओं में उड़ जाते हैं, इस विषय में क्या शोक!
भावार्थ-
अनेक रंग और रूपों वाले पक्षी सायंकाल एक वृक्ष पर आकर बैठते हैं। और प्रातःकाल दसों दिशाओं में उड़ जाते हैं, ऐसे ही बन्धु बान्धव एक परिवार में मिलते हैं और बिछुड़ जाते हैं, इस विषय में शोक - रोना-धोना क्या ?
विमर्श - आचार्य चाणक्य के उक्त श्लोक के सन्दर्भ सार के रूप में कहा जा सकता है कि जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है, फिर शोक और दुःख कैसा ?