चाणक्य के अनुसार शत्रु से कैसा व्यवहार करना चाहिए
चाणक्य के अनुसार शत्रु से कैसा व्यवहार करना चाहिए
यस्य चाप्रियमिच्छेत तस्य ब्रूयात् सदा प्रियम् ।
व्याधो मृगवधं कर्तुं गीतं गायति सुस्वरम् ॥ ॥ अध्याय-14 श्लोक -1011
शब्दार्थ -
निश्चय ही जिसका अप्रियम, बुरा करने की चाहना, इच्छा हो उसके साथ सर्वदा मधुर बोलना चाहिए, जैसे शिकारी हिरन का वध करने के लिए मधुर स्वर में गीत गाता है।
भावार्थ-
जिसका अप्रिय करने की इच्छा हो उससे सदा मधुर भाषण करना चाहिए, जैसे शिकारी हिरण का शिकार करने के लिए पहले मधुर स्वर में गीत गाता है ( और जब गीत के स्वर पर मस्त होकर हिरन निकट आ जाता है, तब उसे पकड़ लेता है)।
विमर्श -
जिसका अप्रिय करने की इच्छा हो उसके साथ मधुर व्यवहार, मधुर आलाप आदि करके उसे अपने वश में कर लेना चाहिए और समय पाकर उसका नाश कर डालना चाहिए । जब तक समय अपने अनुकूल न हो तब तक शत्रु को अपने कन्धे पर ढा चाहिए, उसका आदर-सत्कार करना चाहिए, परन्तु जब समय अपने अनुकूल आ जाए तब उसे उसी प्रकार नष्ट कर दें जैसे घड़े को पत्थर पर पटककर फोड़ डालते हैं ।