बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के बारे में जानकारी Bankim Chandra Chattopadhyay GK in Hindi
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के बारे में जानकारी
वह भारत के महान उपन्यासकारों और कवियों में से
एक थे।
उनका जन्म 27 जून, 1838 को उत्तर 24 परगना, नैहाटी, वर्तमान पश्चिम बंगाल के कंठपुरा गाँव में हुआ था।
उन्होंने संस्कृत में वंदे मातरम गीत की रचना
की जिसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों के लिये प्रेरणास्रोत का कार्य किया।
वर्ष 1857 में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ एक मज़बूत विद्रोह
हुआ परंतु बंकिम चंद्र चटर्जी ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और वर्ष 1859 में बी.ए. की परीक्षा पास
की।
कलकत्ता के उपराज्यपाल ने उसी वर्ष बंकिम चंद्र
चटर्जी को डिप्टी कलेक्टर नियुक्त किया।
वह बत्तीस वर्षों तक सरकारी सेवा में
कार्यरत रहे और वर्ष 1891 में सेवानिवृत्त हुए।
8 अप्रैल, 1894 को उनका निधन हो गया।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का भारत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:
उनका महाकाव्य उपन्यास आनंदमठ, संन्यासी विद्रोह (1770-1820) की पृष्ठभूमि से प्रभावित
था।
उन्होंने अपने साहित्यिक अभियान के माध्यम से
बंगाल के लोगों को बौद्धिक रूप से प्रेरित किया।
भारत को अपना राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम आनंदमठ
से मिला।
उन्होंने वर्ष 1872 में एक मासिक साहित्यिक पत्रिका, बंगदर्शन की भी शुरुआत की, जिसके माध्यम से बंकिम
चंद्र चट्टोपाध्याय को एक बंगाली पहचान और राष्ट्रवाद के उद्भव को प्रभावित करने
का श्रेय दिया जाता है।
बंकिम चंद्र चाहते थे कि यह पत्रिका शिक्षित और
अशिक्षित वर्गों के बीच संचार के माध्यम के रूप में कार्य करे।
1880 के दशक के अंत में पत्रिका का प्रकाशन बंद कर दिया गया
परंतु वर्ष 1901 में रवींद्रनाथ
टैगोर के संपादक बनने के बाद इसे फिर से शुरू किया गया।
हालाँकि इसने टैगोर के लेखन को उनके पहले पूर्ण
उपन्यास चोखेर बाली सहित 'नया' बंगदर्शन की राष्ट्रवादी
भावना का पोषण करते हुए अपने मूल दर्शन को बरकरार रखा।
बंगाल विभाजन (वर्ष 1905) के दौरान पत्रिका ने
विरोध और असंतोष की आवाज़ को एक आधार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। टैगोर
का अमार सोनार बांग्ला बांग्लादेश का राष्ट्रगान तब पहली बार बंगदर्शन में
प्रकाशित हुआ था।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का साहित्यिक योगदान:
उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया था और वह इस
विषय में बहुत रुचि रखते थे, लेकिन बाद में बंगाली भाषा को जनता की भाषा बनाने की
ज़िम्मेदारी ली। हालाँकि उनका पहला प्रकाशित काम एक उपन्यास है जो अंग्रेज़ी में था।
उनके प्रसिद्ध उपन्यासों में कपालकुंडला (Kapalkundala) 1866, देवी चौधुरानी (Debi Choudhurani), बिशाब्रीक्षा
(द पॉइज़न ट्री), चंद्रशेखर (1877), राजमोहन की पत्नी और
कृष्णकांतर विल शामिल हैं।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय और संन्यासी विद्रोह
संन्यासी विद्रोह बंगाल में वर्ष 1770-1820 के बीच हुआ था।
बंगाल में वर्ष 1770 के भीषण अकाल के बाद संन्यासी विद्रोह शुरू
हुआ जिससे घोर अराजकता और दुर्दशा उत्पन्न हुई।
हालाँकि विद्रोह का तात्कालिक कारण हिंदुओं और
मुसलमानों दोनों के पवित्र स्थानों हेतु जाने वाले तीर्थयात्रियों पर अंग्रेज़ो
द्वारा लगाए गए प्रतिबंध थे।