राजा महेंद्र प्रताप सिंह के बारे में जानकारी
राजा
महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म 1 दिसंबर 1886 को हाथरस, उत्तर प्रदेश में
हुआ था।
वह एक स्वतंत्रता
सेनानी, क्रांतिकारी, लेखक, समाज सुधारक और
अंतर्राष्ट्रीयवादी थे।
शिक्षा में योगदान:
वर्ष 1909 में वृंदावन, उत्तर प्रदेश में एक तकनीकी संस्थान प्रेम
महाविद्यालय की स्थापना की। यह स्वदेशी तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये भारत
का पहला पॉलिटेक्निक है।
स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान:
वर्ष 1906 में
कोलकाता में काॅन्ग्रेस अधिवेशन में भाग लिया और स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा दिया।
महेंद्र प्रताप स्वदेशी आंदोलन से भी गहराई से जुड़े थे और स्वदेशी वस्तुओं और
स्थानीय कारीगरों के साथ छोटे उद्योगों को लगातार बढ़ावा देते थे।
महेंद्र प्रताप
ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभाई थी। वर्ष 1915 में प्रथम
विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का विरोध करते हुए काबुल, अफगानिस्तान में
भारत की प्रथम प्रोविज़नल सरकार (जिसके अध्यक्ष वे स्वयं थे) की घोषणा की थी।
उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारत के संघर्ष के क्रम में जर्मनी, जापान तथा रूस जैसे देशों से समर्थन मांगा। कहा जाता है कि बोल्शेविक क्रांति के दो साल बाद वर्ष 1919 में उनकी मुलाकात व्लादिमीर लेनिन से हुई थी। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1940 में जापान में भारतीय कार्यकारी बोर्ड का भी गठन किया।
अंतर्राष्ट्रीयवादी और शांति समर्थक:
महेंद्र प्रताप को शांति हेतु वैश्विक पहल एवं भारत तथा अफगानिस्तान में ब्रिटिश अत्याचारों को सबके सामने लाने में उनके प्रयासों हेतु वर्ष 1932 में नोबेल शांति पुरस्कार हेतु नामांकित किया गया था। इस नामांकन में राजा को “हिंदू देशभक्त”, “वर्ल्ड फेडरेशन के एडिटर” तथा “अफगानिस्तान के अनौपचारिक दूत” के रूप में संदर्भित किया गया। वर्ष 1929 में महेंद्र प्रताप ने बर्लिन में वर्ल्ड फेडरेशन की स्थापना की, जिसका आगे चलकर संयुक्त राष्ट्र के गठन पर प्रभाव पड़ा।
राजनीतिक कॅरियर:
स्वतंत्रता के बाद उन्होंने पंचायती राज के विचार को बढ़ावा देने के क्रम में काफी
मेहनत की तथा मथुरा (वर्ष 1957) से संसद सदस्य के रूप में कार्यभार संभाला।
विरासत:
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी प्रमुख भूमिका हेतु आज भी उनको याद किया जाता है।