प्रश्न 1. मानव भूगोल को परिभाषित करते हुए इसकी प्रकृति को बताइए।
उत्तर- मानव भूगोल, भूगोल विषय की महत्त्वपूर्ण शाखा है। 19वीं शताब्दी में मानव भूगोल को विकास की गति मिली जिसमें जर्मन भूगोलवेत्ताओं का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वर्तमान मानव भूगोल के जनक जर्मन विद्वान फ्रेडरिक रैटजेल को माना जाता है।
मानव भूगोल मनुष्य तथा प्रकृति की परस्पर प्रक्रियाओं के फलस्वरूप पृथ्वी की सतह पर होने वाले परिवर्तनों से सम्बन्धित है। मानव भूगोल को अनेक विद्वानों ने भिन्न प्रकार से परिभाषित किया है। प्रमुख विद्वान एवं उनके द्वारा दी गई परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
रैटजेल के अनुसार, "मानव भूगोल मानव समाजों और धरातल के बीच सम्बन्धों का संश्लेषित अध्ययन है।"
रैटजेल ने अपनी परिभाषा में मानव समाज और भौतिक वातावरण के संश्लेषण पर जोर दिया।
एलन सी. सेम्पल के अनुसार, "मानव भूगोल अस्थिर पृथ्वी और क्रियाशील मानव के बीच परिवर्तनशील सम्बन्धों का अध्ययन है।"
सेम्पल का मानना है कि पृथ्वी निरन्तर परिवर्तनशील है। इसी प्रकार मानव सदैव क्रियाशील रहता है। अतः दोनों के सम्बन्ध भी परिवर्तनशील हैं। इसका अध्ययन ही मानव भूगोल है।
पॉल विडाल-डी-ला ब्लाश के अनुसार,
"मानव भूगोल हमारी पृथ्वी को नियंत्रित करने वाले भौतिक नियमों तथा इस पर रहने वाले जीवों के मध्य सम्बन्धों के अधिक संश्लेषित ज्ञान से उत्पन्न संकल्पना को प्रस्तुत करता है। "इस परिभाषा के अनुसार, मानव भूगोल पृथ्वी एवं मानव के बीच सम्बन्धों का अध्ययन है। भौतिक पर्यावरण के तत्व एक-दूसरे से अन्योन्य-क्रिया करते हैं। हाइट और रैनट नामक अमरीकी भूगोलवेत्ताओं के अनुसार, "मानव भूगोल मानव जीवन और भौतिक शक्तियों के तत्वों तथा कारकों के सम्बन्धों की व्याख्या करता है।"
इस परिभाषा के अनुसार, मानव भूगोल मनुष्य और प्रकृति के अंतर्सम्बन्ध का अध्ययन है। इसका उद्देश्य मानव समाज की रचना और उसके व्यवहार का अध्ययन करना है।
मानव भूगोल की प्रकृति-
- मानव भूगोल की प्रकृति के अन्तर्गत न केवल मनुष्य और उसका भौतिक वातावरण का आर्थिक सम्बन्ध ही सम्मिलित किया जाता है, वरन् मूल भूगोल से सम्बन्धित अन्य शाखाओं-सामाजिक भूगोल, आर्थिक भूगोल, राजनीतिक भूगोल आदि का मानव की कार्यक्षमता, स्वास्थ्य, शिक्षा, कला, विज्ञान, सरकार, राजनीति और धर्म पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन किया जाता है।
- भू-आकृतियाँ, मृदाएँ, जल, जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति, विविध प्राणिजात, वनस्पति-जात, चट्टानें और खनिज भौतिक पर्यावरण के तत्व हैं। भौतिक पर्यावरण द्वारा दिये गये मंच पर मानव अपने कार्यकलापों के द्वारा अपनी सुख-सुविधाओं और विकास के लिए कुछ लक्षणों को उत्पन्न करता है। घर, गाँव, खेत, नगर, नहरें, पुल, स्कूल, सड़कें आदि वस्तुएँ ही मानवीय लक्षण हैं। मानव निर्मित परस्थितियों से ही मानव के सांस्कृतिक विकास की झलक मिलती है। इसलिए मानव भूगोल की प्रवृत्ति परिवर्तनशील एवं विकासोन्मुख होती है।
प्रश्न 2. मानव भूगोल की महत्त्वपूर्ण शाखाओं/क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- मानव और प्रकृति की अन्तक्रियाओं के फलस्वरूप अनेक प्रकार के सांस्कृतिक लक्षण जन्म लेते हैं; जैसे- गाँव, कस्बा, नगर, सड़कें, कृषि, उद्योग आदि। इन्हीं सभी लक्षणों की स्थिति तथा वितरण का अध्ययन मानव भूगोल में आता है। मानव भूगोल की महत्त्वपूर्ण शाखाएँ/क्षेत्र निम्न हैं :
(i) सामाजिक भूगोल-
सामाजिक भूगोल, मानव भूगोल की एक प्रमुख शाखा है। इसमें विभिन्न समूहों और उनके पर्यावरण के बीच सम्बन्धों की समीक्षा की जाती है। सामाजिक भूगोल के प्रमुख उपक्षेत्र में व्यवहारवादी भूगोल, सांस्कृतिक भूगोल, लिंग भूगोल, सामाजिक कल्याण का भूगोल, अवकाश का भूगोल, ऐतिहासिक भूगोल एवं चिकित्सा भूगोल आदि सम्मिलित हैं।
(ii) नगरीय भूगोल -
नगरीय भूगोल, भौगोलिक वातावरण के संदर्भ में नगरीय स्थानों का अध्ययन है। इसके साथ ही नगरों की उत्पत्ति, उनकी वृद्धि और विकास, उनके कार्य, आर्थिक प्रक्रिया आदि भी शामिल हैं।
iii) राजनीतिक भूगोल-
राजनीतिक भूगोल में राष्ट्रों अथवा राज्यों की सीमा, विस्तार, उनके विभिन्न घटकों तथा शासित भू-भागों का अध्ययन किया जाता है। इसके प्रमुख उपक्षेत्र में निर्वाचन भूगोल तथा सैन्य भूगोल सम्मिलित किये जाते हैं।
(iv) आवास भूगोल-
आवास भूगोल मानव द्वारा बसाई गई पृथ्वी की सतह का अध्ययन करती है। इसका नगर व ग्रामीण नियोजन से घनिष्ठ सम्बन्ध है।
(v) जनसंख्या भूगोल-
मानव भूगोल की इस शाखा में जनसंख्या, उसके वितरण, घनत्व, जन्म-दर एवं मृत्यु दर, साक्षरता, आयु, लिगानुपात, प्रवास तथा जनसंख्या वृद्धि जैसी विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है। जनसंख्या भूगोल का जनांकिकी यनिष्ठ सम्बन्ध है।
(vi) आर्थिक भूगोल-
मानव भूगोल की इस शाखा में मानवीय क्रियाकलापों में विभिन्नता का अध्ययन किया जाता है तथा इन क्रियाओं द्वारा वस्तुओं के उत्पादन, वितरण तथा विनिमय का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत संसाधन भूगोल, कृषि भूगोल, उद्योग भूगोल, विपणन भूगोल, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का भूगोल एवं पर्यटन भूगोल आदि को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 3. मानव भूगोल के विभिन्न उपागमों का विकास क्रम बताइए।
उत्तर-मानव भूगोल को भौगोलिक ज्ञान की एक नवीन शाखा माना जाता है। परन्तु प्राचीनकाल से विचारकों और भूगोलवेत्ताओं का ध्यान इस ओर आकर्षित होता रहा है तथा विभिन्न क्षेत्रों में उन्होंने सामाजिक प्रगति के पीछे भौगोलिक घटकों को मुख्यरूप से उत्तरदायी कारक माना है। समय के साथ-साथ मानव भूगोल के उपागमों में परिवर्तन आता गया जो मानव भूगोल की परिवर्तनशील प्रकृति का द्योतक है। उपनिवेशवाद के युग से लेकर आधुनिक युग तक मानव भूगोल ने बहुत उन्नति की है। मानव भूगोल के विकास की भिन्न अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं-
(i) आरम्भिक उपनिवेश काल-
इस काल का समय 15वीं से 17वीं शताब्दी तक माना जाता है। इस काल में मानव भूगोल के अध्ययन में अन्वेषण एवं विवरण उपागम का विकास हुआ। इस अवधि में साम्राज्य एवं व्यापारिक क्षेत्रों के विस्तार हेतु नए-नए देशों की खोज व अन्वेषण को प्रोत्साहन दिया गया तथा प्राप्त भौगोलिक ज्ञान को मानवीय पक्षों के वर्णन में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ।
(ii) उत्तर उपनिवेश काल-
मानव भूगोल में उत्तर उपनिवेश काल का समय 18ीं से 19वीं शताब्दी तक का माना जाता है। इस समय प्रादेशिक उपागम का विकास हुआ। इस उपागम के द्वारा प्रदेश के सभी पक्षों का विस्तृत वर्णन किया जाता था। जिसका उद्देश्य यह था कि समस्त प्रदेश पृथ्वी के भाग हैं। अतः पृथ्वी की पूर्ण जानकारी के लिए समस्त प्रदेशों का समझना आवश्यक है।
(iii) अंतर-युद्ध अवधि के मध्य 1930 का दशक-
अंतर-युद्ध अवधि के मध्य 1930 के दशक में मानव भूगोल में क्षेत्रीय विभेदन उपागम का विकास हुआ। इस उपागम में कोई प्रदेश मानवीय तथा भौतिक पक्षों की दृष्टि से किस प्रकार और क्यों अन्य प्रदेश से विलक्षणता रखता है, की पहचान करने पर बल दिया गया।
(iv) 1950 के दशक के अंत से 1960 के दशंक के अंत तक
इस काल में मानव भूगोल में स्थानिक संगठन उपागम का विकास हुआ। इस काल में कम्प्यूटर तथा परिष्कृत सांख्यिकीय विधियों द्वारा भौतिकी के नियमों का मानवीय परिघटनाओं के विश्लेषण में प्रयोग किया गया। इस उपागम का मुख्य उद्देश्य मानवीय क्रियाओं के मानचित्र योग्य प्रतिरूपों की पहचान करना था।
(v) 1970 का दशक-
इस काल में मानव भूगोल के अध्ययन का उपागम जनकल्याण दृष्टिकोण था। इस काल में मात्रात्मक क्रान्ति से उत्पन्न असंतुष्टि और अमानवीय रूप से भूगोल के अध्ययन के चलते मानव भूगोल में सन् 1970 में तीन नवीन विचारधाराओं का उदय हुआ। मानवतावादी आमूलवादी तथा व्यवहारवादी विचारधाराओं के माध्यम से मानव भूगोल के क्षेत्रों का अध्ययन होने लगा। इन विचारधाराओं के उदय से मानव भूगोल में सामाजिक-राजनीतिक पक्ष अधिक प्रासंगिक बन गये। मानव जीवन की गुणवत्ता में अभिवृद्धि करना इन विचारधाराओं का प्रमुख लक्ष्य था।
(vi) 1990 का दशक एवं उसके बाद
इस काल के दौरान भूगोल में उत्तर आधुनिकवाद उपागम का विकास हुआ। इस काल में वृहद् सामान्यीकरण तथा मानवीय दशाओं की व्याख्या करने वाले वैश्विक सिद्धान्तों की उपयोगिता पर प्रश्न उठने लगे। इसमें अपने आप में प्रत्येक सन्दर्भ की समझ के महत्त्व पर अधिक बल दिया गया।