संस्कृति मंत्री सुश्री उषा ठाकुर ने आज
राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरातत्वविद प्रो. विदुला जायसवाल को
वाराणसी में वीडियो क्रांफ्रेंसिंग के माध्यम से डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर
राष्ट्रीय सम्मान 2015-16 से सम्मानित किया। संचालनालय पुरातत्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय द्वारा
स्थापित यह सम्मान संस्कृति मंत्री की ओर से पुरातत्व अधिकारी डॉ. रमेश यादव ने
प्रो. जायसवाल के वाराणसी स्थित निवास पर 2 लाख रुपये की राशि और प्रशस्ति-पत्र के
रूप में दिया।
सुश्री ठाकुर ने कहा कि सदियों तक विदेशी
ताकतों के अधीन रहे देश में राष्ट्रीयता का अभिमान जगाने की जिम्मेदारी जिस तरह से
पुरातत्वविदों ने उठाई है उसका नवीनतम उदाहरण अयोध्या में रामलला का मंदिर है।
जहाँ कुछ लोगों ने इस राम जन्म स्थली को कानून के दायरे में लाकर खड़ा कर दिया था, पुरातत्वविदों ने प्रमाणों के माध्यम
से उसकी पुन:स्थापना की। देश उनका सदैव ऋणी रहेगा। संस्कृति मंत्री ने कहा कि
भारतीय पुरातत्व विभाग के 100 वर्ष से अधिक हो चुके हैं किन्तु आज भी यह धरा अनेक
साक्ष्यों को अपने में समाहित किये हुए हैं जिनको सामने लाने की आवश्यकता है।
पुरातत्वविदों को अभी लम्बी और कठिन दूरी तय करनी है।
प्रो. विदुला जायसवाल ने कहा कि पुरातत्व को
विशिष्ट पहचान देने के लिये वह मध्यप्रदेश शासन की आभारी हैं। उन्होंने कहा कि
उन्हें स्व. वाकणकर के साथ भीम बैठका उत्खनन के समय काम करने का सौभाग्य मिला। डॉ.
वाकणकर बिना किसी सुविधा का इन्तजार किये अपने काम पर जुट जाते थे, जो आज के अधिकारियों के लिये एक उदाहरण
है।
वाराणसी में वर्ष 1947 में जन्मी प्रो. विदुला
जायसवाल के पितामह डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल भी सुप्रसिद्ध पुरातत्वविद और
इतिहासकार थे। प्रो. विदुला जायसवाल ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से वर्ष 1973
में शोध विषय ' ए
स्टडी ऑफ प्रिपेयर्ड कोर टेक्नीक इन पेल्योलिथिक कल्चर ऑफ इंडिया' पर पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की।
उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण नई दिल्ली में 1977 से 1979 तक और बनारस
हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में 1979
से 2001 तक कार्य किया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से वर्ष 2012 में सेवानिवृत्ति
के बाद ज्ञान प्रवाह वाराणसी में डॉ. आर.सी. शर्मा पीठ पर अवस्थित हैं। प्रो.
जायसवाल सेन्ट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ आर्कियोलॉजी, 'एन्थ्रोपोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और
विश्वविद्यालय अनुदान की चयन व परीक्षा समितियों की सदस्य रही हैं। प्रो. जायसवाल
के निर्देशन में उत्तरप्रदेश एवं बिहार के अनेक स्थलों पर पुरातत्वीय उत्खनन कार्य
कराये गये हैं। पुर्तगाल, इग्लैण्ड, कनाडा, बुल्गारिया, बांगलादेश आदि देशों में व्याख्यान प्रस्तुत करने वाली प्रो. विदुला
जायसवाल के निर्देशन में राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों के वित्तीय सहयोग
से 25 शोध परियोजनाओं के कार्य पूर्ण हुए हैं। अब तक 21 पुस्तकों की रचना करने
वाली प्रो. जायसवाल की पुरातात्विक व्याख्या 'इथेनो-आर्कियोलाजी एण्ड इथेनों आर्ट
हिस्ट्री' की
विधाओं के प्रयोग के लिये विशेष ख्याति है।