गायत्री मंत्र का अर्थ |गायत्री मंत्र के शब्दों की व्याख्या
गायत्री मंत्र
ऊं भुर्भुव: स्व: तत्स वितुर्वरेण्यं
भर्गों देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात
गायत्री मंत्र का अर्थ
“ ॐ
भूर्भुवः स्वः
हे भगवन, आपने
इंसान को जीवन दिया, उसके दुखों का नाश कर व सुख प्रदान
करते हो.
तत्सवितुर्वरेण्यं
सूर्य की तरह उज्जवल व सर्वश्रेष्ठ
भर्गो देवस्यः धीमहि
हमारे कर्मो का उद्धार करें, प्रभु: हमें आत्म ध्यान के काबिल
बनाएं.
धियो यो नः प्रचोदयात् ”
हमारी बुद्धि को प्रार्थना करने की शक्ति दे.
गायत्री मंत्र को प्रार्थना के भाव :-
हे भगवन, आप
सभी के जीवन के करता-धर्ता है,
आप सबके जीवन के दुःख-दर्द का हाल निकालते है,
हमें सुख- शांति का रास्ता दिखने का उपकार
करें.
हे श्रृष्टि के रचियता
कृपया आप हमें शक्ति व बुद्धि का सही रास्ता
प्रदान कर हमारे जीवन को उज्जवल बनाए.
गायत्री मंत्र के शब्दों की व्याख्या
गायत्री मंत्र के पहले नौं शब्द प्रभु के गुणों
की व्याख्या करते हैं
ॐ = प्रणव
भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला
भुवः = दुख़ों का नाश करने वाला
स्वः = सुख़ प्रदाण करने वाला
तत = वह,
सवितुर
= सूर्य की भांति उज्जवल
वरेण्यं = सबसे उत्तम
भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाला
देवस्य = प्रभु
धीमहि = आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)
धियो = बुद्धि, यो = जो, नः = हमारी, प्रचोदयात् = हमें
शक्ति दें (प्रार्थना)